भारत और चीन के बीच रिश्ते हमेशा जटिल रहे हैं, और पिछले कुछ वर्षों में इन रिश्तों में तनाव भी देखने को मिला है. खासकर 2000 में गलवान घाटी की घटना के बाद से, दोनों देशों के बीच टकराव की स्थिति रही है. हालांकि, अब दोनों देशों के बीच संवाद और कूटनीतिक प्रयासों से रिश्तों को सुधारने की दिशा में कई सकारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं. बीते साल रूस में पीएम नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात और उसके बाद हुई चर्चाओं ने रिश्तों को सामान्य करने का रास्ता खोला.
लेकिन यही नहीं, भारत अपनी सैन्य तैयारियों को भी नजरअंदाज नहीं कर रहा है. चाहे चीन से लगती सीमा पर हो या फिर कहीं और, भारत अपने रक्षा बुनियादी ढांचे को मजबूती देने के लिए लगातार कदम उठा रहा है. हाल ही में भारत ने पूर्वी लद्दाख में एक बड़ा कदम उठाया है, जो चीन के लिए चौंकाने वाला हो सकता है.
न्योमा एयरफील्ड: भारतीय सेना के लिए एक नई ताकत
न्योमा एयरफील्ड, जो लद्दाख के पूर्वी क्षेत्र में स्थित है, को इस साल अक्टूबर तक पूरी तरह से चालू कर दिया जाएगा. यह समुद्र तल से 13,710 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, और यह दुनिया के सबसे ऊंचे एयरफील्ड्स में से एक है. इस एयरफील्ड का चालू होना भारतीय वायुसेना के लिए एक बड़ा रणनीतिक कदम साबित हो सकता है, खासकर जब भारत और चीन के बीच एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) पर तनाव बढ़ा हुआ है.
इस परियोजना को 230 करोड़ रुपये की लागत से भारतीय सीमा सड़क संगठन (BRO) द्वारा पूरा किया गया है. एयरफील्ड को आधुनिक तकनीकों के साथ अपग्रेड किया गया है, जिसमें 2.7 किलोमीटर लंबा रनवे, डिस्पर्सल क्षेत्र, टर्निंग पैड्स और अत्याधुनिक एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) सिस्टम शामिल हैं. इसके अलावा, यहां हैंगर, क्रैश बे, वॉच टावर और सैनिकों के लिए आवास सुविधाएं भी तैयार की गई हैं.
रणनीतिक बढ़त के लिए अहम
न्योमा एयरफील्ड का चालू होना भारत-चीन सीमा (LAC) पर एक रणनीतिक बढ़त प्रदान करेगा. यह भारत को एलएसी के पास सैन्य गतिविधियों को तेज करने में मदद करेगा और यहां तैनात सैनिकों तक आवश्यक सामान जल्दी पहुंचाने की सुविधा प्रदान करेगा. एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, यह एयरफील्ड भारी परिवहन विमानों और लड़ाकू जेट्स के लिए पूरी तरह से तैयार है, और यहां दोनों दिशाओं से फ्लाइट लैंड और टेकऑफ कर सकती हैं.
यह एयरफील्ड लद्दाख क्षेत्र के अन्य एयरफील्ड्स जैसे लेह, कारगिल, और थोइस के बाद एक और महत्वपूर्ण हवाई अड्डा होगा, जो भारतीय वायुसेना की उपस्थिति को और मजबूती देगा. 1962 में इसे एक एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड (ALG) के रूप में स्थापित किया गया था, लेकिन बाद में यह बंद हो गया था. 2009 में इसे फिर से सक्रिय किया गया था, और अब यह एयरफील्ड अपनी पूर्ण क्षमता के साथ काम करेगा.
चीन के एयरफील्ड्स के मुकाबले भारत की तैयारी
चीन ने पिछले कुछ वर्षों में एलएसी के साथ अपनी सैन्य क्षमता को काफी बढ़ाया है. चीन ने हटन, काशगर, शिगात्से, बांग्डा, निंगची और होपिंग जैसे एयरफील्ड्स पर नए रनवे, शेल्टर और गोला-बारूद भंडारण की सुविधाएं विकसित की हैं. इसके अलावा, हेलीपोर्ट्स और सैन्य बुनियादी ढांचे पर भी जोर दिया गया है. भारत ने न्योमा एयरफील्ड को एक फॉरवर्ड स्टेजिंग ग्राउंड के रूप में उपयोग करने की योजना बनाई है, जो 2026 तक लड़ाकू विमानों के संचालन के लिए पूरी तरह तैयार हो जाएगा.
यह परियोजना भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उसे एलएसी के पास तेजी से सैन्य गतिविधियां बढ़ाने की ताकत देगा. हालांकि, इस परियोजना के लिए ऊंचाई और दुर्गम इलाका एक बड़ी चुनौती था. कम ऑक्सीजन और दुर्लभ हवा के कारण विमानों की क्षमता पर असर पड़ सकता था, लेकिन BRO ने उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल कर इस चुनौती को पार किया है.
एलएसी पर बढ़ती सैन्य तैयारियां
न्योमा एयरफील्ड के चालू होने से भारत को एलएसी के पास अपनी सैन्य तैयारियों को और तेज करने में मदद मिलेगी. इस एयरफील्ड के पूरा होने के बाद, यह भारत को चीन के साथ सैन्य संतुलन बनाए रखने में मदद करेगा, खासकर जब चीन ने एलएसी के पार अपने हवाई अड्डों को मजबूत किया है. यह भारत के लिए एक बड़ा कदम होगा, क्योंकि यह चीन की सैन्य गतिविधियों का जवाब देने के लिए तैयार रहेगा.
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