'डेथ टू अमेरिका' का नारा, क्या ईरान की असल मंशा वही है जो दुनिया समझ रही? जानिए विदेश मंत्री ने क्या कहा

    ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने हाल ही में इस नारे को लेकर कुछ स्पष्टता दी है, ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इसे लेकर बनी गलत धारणाओं को दूर किया जा सके.

    Slogan of Death to America Iran real intention Foreign Minister
    ईरान के विदेश मंत्री | Photo: ANI

    'डेथ टू अमेरिका' (अमेरिका की मौत) – यह नारा पिछले कई दशकों से ईरान में और वहां के प्रभावशाली क्षेत्रों जैसे यमन, सीरिया, और लेबनान में सुनने को मिलता रहा है. इस नारे ने ना सिर्फ ईरान के भीतर राजनीतिक और सांस्कृतिक संदर्भों को जन्म दिया, बल्कि विदेशों में भी एक गलत धारणाओं को जन्म दिया. खासकर अमेरिका और इजराइल के साथ रिश्तों में यह नारा एक गर्मागर्म बहस का कारण बन चुका है. इस नारे ने अमेरिका और ईरान के बीच दुश्मनी को और भी गहरा किया है, और कई बार इसने ईरान के खिलाफ नकारात्मक प्रचार को जन्म दिया है.

    हालांकि, ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने हाल ही में इस नारे को लेकर कुछ स्पष्टता दी है, ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इसे लेकर बनी गलत धारणाओं को दूर किया जा सके. क्या ईरान वास्तव में अमेरिकी नागरिकों और इजराइल को खत्म करने की कोशिश कर रहा है, या यह नारा सिर्फ अमेरिका की बाहरी नीति और इजराइल के साथ उसके रिश्तों की आलोचना है?

    "डेथ टू अमेरिका" का असल मतलब

    अराघची ने इस नारे को लेकर सफाई दी है कि "डेथ टू अमेरिका" का अर्थ यह नहीं है कि ईरान अमेरिकी नागरिकों या देश को खत्म करना चाहता है. ईरान के नेताओं का कहना है कि यह नारा अमेरिका की साम्राज्यवादी और कब्जे की नीतियों के खिलाफ एक विरोध के रूप में है. अराघची के अनुसार, "हमारे सर्वोच्च नेता और अन्य अधिकारी हमेशा यही कहते रहे हैं कि 'डेथ टू अमेरिका', लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अमेरिकियों को मारने की बात कर रहे हैं. यह नारा अमेरिका के दबाव वाली नीतियों और उसकी वैश्विक प्रभुत्व की मानसिकता की मौत की तरफ इशारा करता है."

    अराघची का यह बयान उस व्यापक गलतफहमी को दूर करने का प्रयास करता है, जो अमेरिका और ईरान के रिश्तों को लेकर बनी हुई है. दरअसल, यह नारा ना सिर्फ एक राजनीतिक विरोध है, बल्कि यह अमेरिका द्वारा दूसरे देशों की आंतरिक नीति में दखल देने, युद्धों को बढ़ावा देने और उसकी ‘कंट्रोल’ वाली विदेश नीति के खिलाफ ईरान की आवाज है.

    क्या 'मिटाने' की बात सच है?

    अराघची ने यह भी स्पष्ट किया कि ईरान इजराइल को ‘नक्शे से मिटाने’ की कोई योजना नहीं बना रहा है. हालांकि, यह बयान देते हुए उन्होंने ईरान के शीर्ष नेताओं की इजराइल के बारे में की गई पूर्व टिप्पणी को नजरअंदाज नहीं किया. पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने 2005 में एक सम्मेलन में कहा था कि "इजराइल को मानचित्र से मिटा दिया जाना चाहिए", जो आज भी कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बहस का विषय है.

    इसका मतलब यह नहीं है कि ईरान का इरादा इजराइल को भौतिक रूप से नष्ट करने का है, बल्कि यह बयान इजराइल की नीतियों और उसकी भूमिका को लेकर ईरान की तीव्र आलोचना का हिस्सा था. ईरान के नेताओं ने हमेशा इजराइल की नीतियों को लेकर अपनी आपत्ति जताई है, विशेषकर फिलिस्तीन के मुद्दे पर. यह एक लंबा विवाद है जिसमें क्षेत्रीय शक्ति की राजनीति, धार्मिक विचारधारा और सामाजिक-आर्थिक मुद्दे जुड़े हुए हैं.

    अमेरिकी नागरिकों और इजराइल के प्रति ईरान का नजरिया

    अराघची ने जोर देकर कहा कि उनका देश किसी भी देश के नागरिकों के खिलाफ हिंसा की कोई योजना नहीं बना रहा है. ईरान के दृष्टिकोण में, उनका विरोध अमेरिका और इजराइल की नीतियों के प्रति है, ना कि वहां के नागरिकों के खिलाफ. यही कारण है कि "डेथ टू अमेरिका" और "डेथ टू इजराइल" जैसे नारे मुख्य रूप से सत्ता और सरकारों की आलोचना के प्रतीक हैं, न कि किसी देश की पूरी जनता के खिलाफ. यह ध्यान में रखते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि विश्व समुदाय इन नारों को सही संदर्भ में समझे और ना कि केवल एक संकीर्ण दृष्टिकोण से. इन नारों का असल उद्देश्य राजनीतिक और कूटनीतिक विवादों को व्यक्त करना है, न कि किसी प्रकार की शारीरिक हिंसा या युद्ध का आह्वान.

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