राफेल, SU-57 से लेकर जेट इंजन तक... भारत ने हथियार खरीद के लिए बदले इमरजेंसी नियम, अब नहीं होगी देरी

    केंद्र सरकार ने वो कड़ा फैसला लिया है, जिसका इंतज़ार भारत की सेनाएं और हर जागरूक नागरिक लंबे समय से कर रहा था.

    India changed emergency rules for arms purchase
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    नई दिल्ली: भारत अब इंतज़ार नहीं करना चाहता. तेजस के इंजन, राफेल जैसे लड़ाकू विमान, रूस के Su-57 या इजरायल की आयरन डोम प्रणाली जैसी अहम रक्षा ज़रूरतों के लिए जो इंतज़ार पहले वर्षों में मापा जाता था, अब उसकी मोहलत सिर्फ 12 महीने तक की रह गई है.

    केंद्र सरकार ने वो कड़ा फैसला लिया है, जिसका इंतज़ार भारत की सेनाएं और हर जागरूक नागरिक लंबे समय से कर रहा था. अब रक्षा खरीद के आपातकालीन प्रावधानों में ऐसा बदलाव किया गया है जो सेना की ताकत को केवल कागज़ों तक नहीं, बल्कि ज़मीन पर हकीकत में बदलने का रास्ता खोलेगा.

    क्या हैं नए बदलाव और क्यों हैं ज़रूरी?

    लंबे समय से भारत की रक्षा खरीद प्रक्रिया जटिल, धीमी और लालफीताशाही से भरी हुई रही है. हर बार जब देश की सीमाओं पर तनाव बढ़ा, जब दुश्मन आंखें दिखाने लगा, तब हमारे सैनिकों की एक ही मांग थी कि तेज़ी से संसाधन उपलब्ध कराओ.

    सरकार ने अब रक्षा खरीद की उस ‘आपातकालीन प्रक्रिया’ को नया रूप दिया है, जिसके तहत किसी भी सैन्य सौदे को 12 महीनों के अंदर पूरा करना अनिवार्य होगा. अगर इस अवधि में डील पूरी नहीं हुई, तो वह अपने आप रद्द मान ली जाएगी.

    इस बदलाव से यह तय होगा कि तेजस फाइटर जेट्स के लिए इंजन, राफेल के अपग्रेड्स, और रूस के अत्याधुनिक Su-57 से जुड़ी डील्स अब फाइलों में उलझकर धूल नहीं खाएंगी.

    रक्षा सौदों में 69 हफ्ते की कटौती

    भारत सरकार के रक्षा सचिव ने हाल ही में एक कार्यक्रम में बताया कि पूरे रक्षा खरीद प्रोसेस में 69 हफ्ते की कटौती की जा चुकी है. यह बदलाव सिर्फ कागज़ों पर नहीं, बल्कि हकीकत में सेना की ताकत को तय करने वाला है.

    पहले रक्षा खरीद की पारंपरिक प्रक्रिया में एक लंबा और थकाऊ सफर होता था- RFI (Request for Information), SQR (Service Quality Requirements), DAC (Defence Acquisition Council) की मंजूरी, RFP (Request for Proposal), फिर तकनीकी ट्रायल्स और अंत में कॉन्ट्रैक्ट.

    लेकिन अब इस प्रक्रिया को इतना आसान और चुस्त बना दिया गया है कि सेना जरूरत बताए, और सौदा तेजी से पूरा हो जाए. ये बदलाव देश की सुरक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी सुधार का संकेत हैं.

    अब भारत की खुद की वायु रक्षा प्रणाली

    भारत अब सिर्फ विदेशी तकनीक पर निर्भर नहीं रहना चाहता. रूस के S-400 और इज़रायल की आयरन डोम जैसी प्रणालियों के अनुभव से भारत ने सीखा है कि वायु रक्षा में आत्मनिर्भरता सबसे बड़ी जरूरत है.

    नई आपातकालीन खरीद प्रणाली और सख्त समयसीमा से उन परियोजनाओं को भी तेज़ी मिलेगी, जिनमें भारत अपने दम पर रक्षा प्लेटफॉर्म विकसित कर रहा है. इससे न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा मज़बूत होगी, बल्कि आत्मनिर्भर भारत का सपना भी एक नई ऊंचाई पर पहुंचेगा.

    रक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता की शुरुआत

    रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP)-2020 को सरल बनाने के लिए सरकार ने एक विशेष पैनल का गठन किया है, जिसकी अगुवाई महानिदेशक (अधिग्रहण) कर रहे हैं.

    यह पैनल नई तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल, परीक्षणों की प्रक्रिया में तेजी, अनुबंधों के प्रबंधन और व्यापार में आसानी जैसे विषयों पर काम कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि ये सुधार न सिर्फ रक्षा खरीद को सरल बनाएंगे, बल्कि भ्रष्टाचार और देरी की संभावनाओं को भी खत्म करेंगे.

    जरूरत पड़ी तो लिया गया एक्शन

    आपातकालीन रक्षा खरीद की शुरुआत कोई नई बात नहीं है. जून 2020 में गलवान घाटी संघर्ष के बाद सरकार ने सेना को 300 करोड़ रुपये तक की तात्कालिक खरीद की मंजूरी दी थी.

    इससे पहले भी 2016 की उरी सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद, तत्काल जरूरतों को देखते हुए खरीद शक्तियां सेना को सौंपी गई थीं.

    लेकिन अब जो बदलाव हुआ है, वो सिर्फ तात्कालिक नहीं, बल्कि एक स्थायी नीति बदलाव है जो सेना की तैयारी को हमेशा के लिए तेज़ और असरदार बना देगा.

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