भारत अब अमेरिका के साथ मिलकर एक ऐसी अत्याधुनिक एंटी-टैंक मिसाइल बनाने की दिशा में कदम बढ़ा चुका है, जो रूस और चीन जैसे देशों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सैन्य ताकत साबित हो सकती है. इस मिसाइल का नाम है जेवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM), जिसे अमेरिका ने यूक्रेन को रूस के खिलाफ अपनी रक्षा को मजबूत करने के लिए दिया था. अब भारत ने भी अमेरिका से इस मिसाइल के ज्वाइंट प्रोडक्शन के लिए एक औपचारिक "लेटर ऑफ रिक्वेस्ट" भेजा है, जिससे यह साफ है कि भारत इस शक्तिशाली मिसाइल को खुद बनाना चाहता है.
जेवलिन मिसाइल: अत्याधुनिक एंटी-टैंक हथियार
जेवलिन मिसाइल दुनिया की सबसे एडवांस थर्ड जनरेशन की एंटी-टैंक मिसाइलों में से एक मानी जाती है. इस मिसाइल का प्रमुख फायदा यह है कि यह दुश्मन के टैंकों को छिपे हुए स्थानों से निशाना बनाकर नष्ट कर सकती है. विशेष रूप से यह "टॉप-अटैक" क्षमता से लैस होती है, जिससे यह दुश्मन के टैंक के सबसे कमजोर हिस्से को निशाना बनाती है. यानी टैंक का ऊपर वाला हिस्सा, जिसे सामान्यतः सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है. यह तकनीक इसे एक अत्यधिक प्रभावी हथियार बनाती है, खासकर जमीनी युद्ध मेंजब रूस ने अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाते हुए सैकड़ों टैंकों को यूक्रेन में भेजा, तो अमेरिका ने इन्हीं जेवलिन मिसाइलों को यूक्रेन को सौंपा. यूक्रेनी सैनिकों ने इन मिसाइलों का इस्तेमाल कर रूस के टैंकों को तबाह कर दिया, जिससे रूस को अपनी अग्रिम पंक्तियों से टैंक वापस हटाने पड़े.
भारत का कदम: आत्मनिर्भरता की ओर
भारत ने अब अमेरिकी अधिकारियों को आधिकारिक पत्र भेजा है, जिसमें जेवलिन मिसाइल के ज्वाइंट प्रोडक्शन के लिए अनुमति मांगी गई है. भारतीय अधिकारियों का कहना है कि इस साझेदारी से भारत को अपनी एंटी-टैंक मिसाइल निर्माण क्षमता को बढ़ाने का मौका मिलेगा, और इससे देश की विदेशी हथियारों पर निर्भरता भी कम हो जाएगी. यह भारत के "मेक इन इंडिया" पहल के तहत एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है.
भारत की सेना को ऐसे हल्के और प्रभावी मिसाइल सिस्टम की जरूरत है, जिसे ऊंचाई पर तैनात सैनिक भी आसानी से ऑपरेट कर सकें. जेवलिन मिसाइल की विशेषता यह है कि इसे एक या दो सैनिक बिना किसी वाहन या लॉन्चर के आसानी से चला सकते हैं. यह उसे पहाड़ी और दुर्गम इलाकों में तैनात सैनिकों के लिए आदर्श बना देता है.
रक्षा साझेदारी में नया मोड़
भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग पहले से ही मजबूत हो चुका है, और अब जेवलिन मिसाइल के ज्वाइंट प्रोडक्शन से इस सहयोग को एक नई गति मिल सकती है. हाल ही में, भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ से टेलीफोन पर बातचीत की थी, जिसमें दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की गई थी. इससे पहले, दोनों देशों के बीच GE-414 जेट इंजन के उत्पादन को लेकर भी महत्वपूर्ण बातचीत हुई थी.
रेथियॉन और लॉकहीड मार्टिन जैसी अमेरिकी कंपनियां जेवलिन मिसाइल का उत्पादन करती हैं. यदि भारत इसे खुद बनाता है, तो इससे देश को एंटी-टैंक तकनीक में महत्वपूर्ण उन्नति मिलेगी. इन कंपनियों का दावा है कि 2019 तक, जेवलिन मिसाइलों ने 5000 से ज्यादा सफल मिशन पूरे किए हैं.
जेवलिन मिसाइल की क्षमता और विशेषताएँ
जेवलिन मिसाइल की सबसे बड़ी खासियत है इसका "फायर-एंड-फॉरगेट" सिस्टम, जो ऑपरेटर को लक्ष्य लॉक करने के बाद उसे छोड़ने की अनुमति देता है. एक बार मिसाइल का लक्ष्य लॉक हो जाए, तो ऑपरेटर को इसे ट्रैक करने की जरूरत नहीं होती. यह मिसाइल कंधे से दागी जाने वाली एंटी-टैंक मिसाइल है, जिसका वजन लगभग 22 किलो है और लंबाई 1.1 मीटर के आसपास है.
इसकी रेंज 65 मीटर से लेकर 2.5 किलोमीटर तक होती है, और इसके नए संस्करण की रेंज 4 किलोमीटर तक बढ़ सकती है. यह मिसाइल उच्च विस्फोटक सामग्री से लैस होती है और इसकी गति Mach-1 सबसोनिक होती है. इसकी प्रति यूनिट कीमत 1.75 लाख डॉलर से लेकर 2.5 लाख डॉलर तक होती है, लेकिन अगर भारत इसका उत्पादन करता है, तो इसकी कीमत में कमी आ सकती है.
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