नई दिल्लीः भारत की रक्षा तकनीक अब सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह वैश्विक मंच पर खुद को साबित करने की तैयारी में है. इसी कड़ी में एक अहम कदम है DRDO द्वारा विकसित किया गया ‘कावेरी जेट इंजन’, जिसका परीक्षण अब रूस की जमीन पर हो रहा है. यह इंजन भारत के आगामी लंबी दूरी के मानव रहित लड़ाकू ड्रोन (UCAV) में इस्तेमाल किया जाएगा, जो देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है.
कावेरी का सफर
‘कावेरी इंजन’ की परिकल्पना 1980 के दशक में हुई थी. इसे खास तौर पर भारत के लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट ‘तेजस’ के लिए डिज़ाइन किया गया था. हालांकि शुरुआती परीक्षणों में यह आवश्यक थ्रस्ट-टू-वेट रेशियो हासिल नहीं कर पाया और तेजस में इसका प्रयोग नहीं हो सका. इसके कारण भारत को अमेरिकी GE F404 इंजन की ओर रुख करना पड़ा.
लेकिन कावेरी की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. 2016 में एक फ्रांसीसी रक्षा कंपनी के सहयोग से इसे फिर से डिज़ाइन किया गया, और इसका फोकस अब मानव रहित स्टील्थ ड्रोन की ओर मोड़ दिया गया.
क्या खास है कावेरी में?
उच्च तापमान पर काम करने में सक्षम
बेहतर कूलिंग और एयरोडायनामिक डिज़ाइन इन खूबियों की वजह से DRDO इसे पांचवीं पीढ़ी का इंजन मान रहा है. यही नहीं, इसका डिज़ाइन भारतीय वायुसेना के भविष्य के स्टील्थ ड्रोन ‘घातक’ के लिए खासतौर पर उपयुक्त बताया गया है.
रूस में परीक्षण
DRDO की एक टीम इस समय रूस में कावेरी इंजन का परीक्षण कर रही है. यह परीक्षण उच्च ऊंचाई और उड़ान की वास्तविक परिस्थितियों में इंजन के प्रदर्शन को मापने के लिए किया जा रहा है. इसमें इंजन की विश्वसनीयता, लंबी अवधि की कार्यक्षमता और विमान प्रणालियों के साथ एकीकरण जैसी प्रमुख बातें शामिल हैं. यदि यह परीक्षण सफल रहता है, तो यह भारत के रक्षा क्षेत्र के लिए टेक्नोलॉजिकल लिफ्ट-ऑफ जैसा होगा. साथ ही, यह तुर्की से आधुनिक ड्रोन प्राप्त कर रहे पाकिस्तान के लिए रणनीतिक चिंता का विषय भी बन सकता है.
रक्षा क्षेत्र में नया अध्याय
विशेषज्ञ मानते हैं कि कावेरी इंजन की सफलता भारत को रक्षा उत्पादन में स्वदेशीकरण की दिशा में नई राह दे सकती है. यह भारतीय उद्योगों और स्टार्टअप्स के लिए भी एक प्रेरणा बनेगा. विशेषज्ञों ने सरकार से इस परियोजना को और ज्यादा फंडिंग देने की अपील की है ताकि भारत का यह इंजन वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सके.
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