गाज़ा में डेढ़ साल से चल रहे संघर्ष में अब इज़रायल ने एक नई रणनीति अपनाई है, जो युद्ध की दिशा और दशा दोनों बदल सकती है. जहां अब तक इज़रायली सेना हवाई हमलों और ज़मीनी अभियानों के ज़रिए हमास को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी, वहीं अब एक बिना ड्राइवर वाला बुलडोजर, जिसे 'रोबडोजर' कहा जा रहा है, युद्ध के मैदान में उतारा गया है.
क्या है 'रोबडोजर' और क्यों है खास?
'रोबडोजर' असल में डी9 बुलडोजर का रिमोट कंट्रोल वर्जन है, जिसे इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज ने विकसित किया है. इसे दूर से ऑपरेट किया जा सकता है, जिससे सैनिकों की जान को खतरा नहीं होता. टैंक जैसी मजबूती से लैस यह मशीन हमास के ठिकानों को तोड़ने, मलबा हटाने, और संभावित छिपे हुए लड़ाकों को बेनकाब करने में इस्तेमाल की जा रही है.
टाइम्स ऑफ इज़रायल की रिपोर्ट के मुताबिक, इज़रायली डिफेंस फोर्स (IDF) गाज़ा के साथ-साथ लेबनान में भी इसका सीमित प्रयोग कर रही है—यह इस तकनीक की बढ़ती अहमियत को दर्शाता है.
सेना को राहत, हमास को टक्कर
इज़रायली सेना के लिए यह तकनीक एक बड़ी राहत बनकर आई है. जिन इलाकों में हमास के लड़ाकों के होने की आशंका होती है और ज़मीनी कार्रवाई में जोखिम ज्यादा होता है, वहां अब रोबडोजर का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे सैन्य अभियान अधिक सुरक्षित और प्रभावी हो गए हैं.
सिर्फ इज़रायल ही नहीं, हाल ही में अमेरिका के अलबामा में एक सैन्य प्रदर्शनी में भी रोबडोजर को पेश किया गया, जहां रक्षा विशेषज्ञों ने इसकी जमकर तारीफ की. उनका मानना है कि यह तकनीक आने वाले समय में युद्ध के नियम बदल सकती है, और मशीनों को मैदान में मुख्य भूमिका सौंप सकती है.
लेकिन क्या सब कुछ है सकारात्मक?
जहां एक ओर यह तकनीक युद्ध को सुरक्षित और प्रभावी बना रही है, वहीं मानवाधिकार विशेषज्ञों और नीति-निर्माताओं के लिए यह चिंता का विषय भी है. खासतौर से घनी आबादी वाले इलाकों में, जहां गलती की गुंजाइश ज्यादा होती है, रोबोटिक मशीनों के ज़रिए ऑपरेशन करना निर्दोष नागरिकों की जान को खतरे में डाल सकता है. इंसानी निगरानी की कमी के चलते मानवाधिकार कानूनों की चुनौती भी सामने आ सकती है.
ब्रिटेन की हेनरी जैक्सन सोसाइटी के रिसर्च फेलो और रिटायर्ड मेजर एंड्रयू फॉक्स का मानना है कि इज़रायली सेना पहली ऐसी सेना है जो युद्ध के मैदान में रिमोट कंट्रोल हथियारों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर रही है. वहीं अमेरिका के मॉडर्न वॉर इंस्टीट्यूट (वेस्ट पॉइंट) के जॉन स्पेंसर ने इसे "युद्ध का भविष्य" करार दिया है.
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