भारत और चीन के बीच कूटनीतिक गतिविधियों ने अचानक तेज़ी पकड़ ली है. 23 जून को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल बीजिंग पहुंचे. इसके दो दिन बाद 25 जून को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चीन के किंगदाओ शहर पहुंचे. अब 13 जुलाई को विदेश मंत्री एस जयशंकर भी शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने चीन रवाना होने वाले हैं. यह सब कुछ ऐसे समय में हो रहा है जब भारत-चीन रिश्ते गलवान संघर्ष के बाद ठंडे पड़े हुए थे.
गलवान के बाद पहला अहम चीन दौरा
एस जयशंकर की यह यात्रा इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि यह 2020 के बाद उनकी पहली चीन यात्रा है. पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर हुई हिंसक झड़पों ने दोनों देशों के रिश्तों को गहरे संकट में डाल दिया था. करीब चार साल तक दोनों देशों के बीच संवाद सीमित रहा और तनाव बना रहा. मगर पिछले कुछ महीनों में हालात बदलते दिखाई दे रहे हैं. डोभाल और राजनाथ के हालिया दौरे और अब जयशंकर की यात्रा इस बदलाव का संकेत दे रही है.
डोभाल और राजनाथ ने पहले ही जमीन तैयार कर दी थी
डोभाल ने बीते दिसंबर और फिर जून में बीजिंग का दौरा किया. उन्होंने सीमा विवाद को लेकर विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता में हिस्सा लिया. वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक में शिरकत की. इन दोनों दौरों के बाद अब जयशंकर का बीजिंग जाना दर्शाता है कि भारत और चीन के बीच संवाद की रफ्तार अब फिर से तेज हो रही है.
कूटनीतिक जमीनी कामकाज शुरू
एससीओ की बैठकों को चीन और भारत जैसे पड़ोसी देशों के बीच संवाद का मौका माना जाता रहा है. इस बार जयशंकर न सिर्फ शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में हिस्सा लेंगे, बल्कि चीनी विदेश मंत्री वांग यी से द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे. माना जा रहा है कि इस बातचीत में सीमा विवाद, व्यापार, मानसरोवर यात्रा और अन्य द्विपक्षीय मसलों पर चर्चा होगी.
दिखाई दे रही हैं विश्वास बहाली की कोशिशें
भारत और चीन के बीच हाल के महीनों में कुछ सकारात्मक घटनाएं भी हुई हैं. कैलाश मानसरोवर यात्रा को पांच साल बाद फिर शुरू किया गया है. सीमा पर कुछ इलाकों से चीनी सैनिकों की वापसी भी हुई है. व्यापार और लोगों के बीच संपर्क को फिर से बढ़ाने की कोशिशें हो रही हैं. इन सबका उद्देश्य दोनों देशों के बीच विश्वास की बहाली है.
अब भी बने हुए हैं गहरे मतभेद
हालांकि जानकारों का कहना है कि विश्वास बहाल करने की कोशिशों के बावजूद भारत और चीन के बीच कई गंभीर मुद्दे अब भी कायम हैं. भारत की अमेरिका के साथ बढ़ती रणनीतिक साझेदारी, दक्षिण चीन सागर में चीन का रवैया, तिब्बत को लेकर भारत का रुख और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर भारत का विरोध जैसे मसले दोनों देशों के बीच दूरियां बनाए हुए हैं.
क्या नई शुरुआत संभव है
जयशंकर की इस यात्रा और वांग यी के संभावित भारत दौरे से उम्मीद की जा रही है कि कम से कम सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने को लेकर कुछ ठोस समझ बन सकती है. हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि दोनों देश अपने पुराने रिश्तों की गर्मजोशी तक लौट पाएंगे. लेकिन इतना तय है कि इस बार संवाद के रास्ते पर ठोस कदम उठाए जा रहे हैं. और यही किसी भी भरोसेमंद रिश्ते की पहली शर्त होती है.
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