13 साल के लंबे अंतराल के बाद पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार की बांग्लादेश यात्रा ने एक बार फिर 1971 के घावों को कुरेद दिया है. इस दौरे को लेकर पाकिस्तान में बड़ी उम्मीदें लगाई जा रही थीं कि इससे दोनों देशों के रिश्तों में नया मोड़ आएगा. लेकिन ढाका पहुंचते ही जिस अंदाज में बांग्लादेश ने पुराने मुद्दों को उठाया, उससे साफ हो गया कि रिश्तों की गर्मजोशी सिर्फ दिखावे भर की थी.
दरअसल, पाकिस्तान इस दौरे को दक्षिण एशिया में अपनी कूटनीतिक चाल के तौर पर देख रहा था. भारत पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाने के लिए उसने बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को नया रूप देने की कोशिश की. इशाक डार की यह यात्रा इसलिए भी खास थी क्योंकि 2012 में हिना रब्बानी खार की यात्रा के बाद यह पहला उच्च स्तरीय दौरा था.
पाकिस्तानियों ने उठाई मांग
लेकिन ढाका में तस्वीर कुछ और ही निकली. जैसे ही इशाक डार वहां पहुंचे, बांग्लादेश ने पुराने जख्मों को फिर से कुरेदना शुरू कर दिया. 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान की सेना द्वारा की गई ज्यादतियों को लेकर माफी की मांग फिर से उठाई गई. इशाक डार ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि 1974 में एक समझौता हो चुका है और जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के कार्यकाल में इस पर फिर से बात हो चुकी है. उन्होंने दावा किया कि इन मुद्दों को दो बार सुलझाया जा चुका है.लेकिन उनकी यह सफाई ज्यादा देर नहीं टिक सकी. बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन, जिन्होंने खुद इशाक डार से मुलाकात की थी, ने उनके दावे को सिरे से खारिज कर दिया.
लोगों की वापसी की मांग कर रहे
तौहीद हुसैन ने साफ कहा कि, "हम वित्तीय मामलों और खातों के निपटारे, नरसंहार के लिए माफी और फंसे हुए लोगों की वापसी की मांग करते हैं. अगर इशाक डार की बात सच होती, तो यह मुद्दे कब के खत्म हो चुके होते." उन्होंने यह भी कहा कि यह कोई औपचारिक द्विपक्षीय बैठक नहीं थी और इतने जटिल मुद्दों का हल एक मुलाकात में निकालना संभव नहीं.
यह बयान साफ संकेत है कि पाकिस्तान की ‘भारत को घेरने की नीति’ इस बार भी असफल रही. कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को वहां वो समर्थन नहीं मिला जिसकी उसे उम्मीद थी. ढाका ने अपने रुख से बता दिया कि वो 1971 की घटनाओं को भुला नहीं है और बिना माफी और समाधान के आगे बढ़ने को तैयार नहीं.
‘मैत्री का संदेश’ बताने में जुटे थे
पाकिस्तान की यह रणनीति, जिसमें वो बांग्लादेश को साथ लेकर भारत पर दबाव बनाने की सोच रहा था, ढाका की दो टूक प्रतिक्रिया के बाद उलटी पड़ गई. एक ओर जहां इशाक डार इस यात्रा को ‘मैत्री का संदेश’ बताने में जुटे थे, वहीं बांग्लादेश ने अतीत की जिम्मेदारी उठाने की पुरानी मांग फिर दोहरा दी. अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या पाकिस्तान इस पर गंभीर पहल करेगा या फिर यह कूटनीतिक कवायद भी अतीत की तरह सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाएगी.
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