Tech News: तकनीक के भरोसे इंसान को बाहर का रास्ता दिखाना आज के दौर का नया ट्रेंड बन गया है, लेकिन स्वीडन की फिनटेक कंपनी ‘क्लार्ना’ की कहानी बताती है कि हर काम मशीन नहीं कर सकती. इंसान की जगह AI को बिठाकर कंपनी ने भले ही करोड़ों की बचत कर ली, लेकिन जब बात ग्राहक सेवा की गुणवत्ता की आई, तो AI की पोल खुल गई.
क्लार्ना ने कभी बड़े गर्व से एलान किया था कि उसका AI सिस्टम 700 कर्मचारियों का काम अकेले कर रहा है. लेकिन अब वही कंपनी दो साल बाद फिर से इंसानों की तलाश में है. क्यों? क्योंकि मशीनें भले ही तेज़ हों, लेकिन वो "सुन" और "समझ" नहीं सकतीं और ग्राहक सिर्फ जवाब नहीं, समझ भी चाहते हैं.
क्लार्ना में क्या हुआ था?
2023 में, क्लार्ना ने AI और ऑटोमेशन को अपनाते हुए भारी छंटनी की. ग्राहक सेवा, उत्पादन और डेटा विश्लेषण जैसे विभागों में इंसानों की जगह AI को दी गई. कंपनी ने दावा किया कि इससे $10 मिलियन (लगभग ₹85 करोड़) की बचत हुई. OpenAI के टूल्स के सहयोग से क्लार्ना ने अपने कस्टमर सपोर्ट सिस्टम को पूरी तरह से ऑटोमेट कर दिया, और हायरिंग भी रोक दी गई. कंपनी के CEO सेबेस्टियन सिएमियाटकोव्स्की ने कहा था कि AI मानव कर्मचारियों जितना ही बेहतर काम कर रहा है.
वहीं, 2024 आते-आते तस्वीर बदलने लगी. Futurism को दिए इंटरव्यू में क्लार्ना के CEO ने खुद कबूल किया कि AI द्वारा दी गई सेवाओं की गुणवत्ता उम्मीद से बहुत नीचे थी. ग्राहक संतुष्टि में गिरावट आई और ब्रांड की छवि को भी नुकसान पहुंचा. उन्होंने माना कि लोगों को यह भरोसा होना चाहिए कि अगर उन्हें ज़रूरत पड़ी, तो उनके सवालों का जवाब देने के लिए "इंसान" मौजूद होगा. AI ने लागत तो घटाई, लेकिन भरोसा भी साथ ले गया.
इंसानों की वापसी की तैयारी
अब क्लार्ना एक बार फिर हायरिंग करने जा रही है, खासकर उन पदों पर जहां निर्णय क्षमता, सहानुभूति और संवेदनशीलता की ज़रूरत होती है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी अब एक नया मॉडल आज़मा रही है, जिसमें कर्मचारी रिमोट वर्किंग कर सकेंगे. क्लार्ना में कर्मचारियों की संख्या जहां 2022 में 5,500 थी, वहीं 2024 तक यह घटकर सिर्फ 3,400 रह गई थी. अब इस आंकड़े को फिर बढ़ाने की कोशिश शुरू हो चुकी है.
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