साल 2000 में क्‍ल‍िंटन तो 2025 में वेंस का भारत दौरा... आतंकवादियों ने इसी समय क्‍यों किया हमला?

    जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए ताजा आतंकी हमले ने एक बार फिर देश को झकझोर दिया है. लेकिन इससे भी ज़्यादा जो चौंकाने वाली बात है, वह है हमले की टाइमिंग. अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत में मौजूद हैं और ठीक ऐसे ही साल 2000 में जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत दौरे पर थे, तब भी आतंकियों ने बड़ा हमला किया था.

    Clinton visited India in 2000 and Vance in 2025 Why did the terrorists attack at this time
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: PTI

    श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए ताजा आतंकी हमले ने एक बार फिर देश को झकझोर दिया है. लेकिन इससे भी ज़्यादा जो चौंकाने वाली बात है, वह है हमले की टाइमिंग. अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत में मौजूद हैं और ठीक ऐसे ही साल 2000 में जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत दौरे पर थे, तब भी आतंकियों ने बड़ा हमला किया था.

    तो सवाल ये उठता है कि क्या ये सब सिर्फ संयोग है, या कोई सोची-समझी साजिश?

    एक तीर, दो निशाने

    पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी और सेना हमेशा ऐसे मौके की तलाश में रहती है, जब वो सीमा पार आतंक को भड़काकर दोहरे फायदे का खेल खेल सकें:

    • भारत की छवि को नुकसान पहुंचाना, खासकर तब जब विदेशी नेता दौरे पर हों.
    • अपने घर में चल रही परेशानियों से ध्यान हटाना.

    वर्तमान में पाकिस्तान की हालत क्या है, ये किसी से छुपा नहीं. वहां आटे की कतारों से लेकर फौज पर हमलों तक, हालात पूरी तरह बेकाबू हैं. ऐसे में एक ‘नापाक स्क्रिप्ट’ फिर से लिखी गई- पहलगाम में निहत्थे सैलानियों को निशाना बनाकर.

    पहलगाम: सैलानी, सुंदरता और साजिश

    पहलगाम, जिसे आमतौर पर ‘स्वर्ग का टुकड़ा’ कहा जाता है, इस बार साजिश का मैदान बना. हमला अचानक नहीं था—ये एक प्लान्ड स्ट्राइक थी, जिसकी टाइमिंग साफ बताती है कि इसका मकसद सिर्फ मासूम लोगों को मारना नहीं था, बल्कि इंटरनेशनल हेडलाइन्स बटोरना भी था.

    जैसे ही हमला हुआ, लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों का नाम सामने आया. वहीं पाकिस्तान का ‘प्रोपेगेंडा इंजन’ फौरन चालू हो गया—“देखिए, कश्मीर में लोग खुद ही हथियार उठा रहे हैं.” लेकिन दुनिया अब जान चुकी है कि इन संगठनों के पीछे पाकिस्तानी ISI का हाथ होता है.

    अंतरराष्ट्रीय मंच पर शोर मचाना मकसद

    इस बार भी हमले में विदेशी नागरिकों के मारे जाने की खबर ने इसे दुनिया भर की सुर्खियों में ला दिया. यही तो पाकिस्तान का एजेंडा था—कश्मीर को फिर से इंटरनेशनल डिबेट में लाना.

    साथ ही पाकिस्तान में जो हालात हैं—महंगाई, बेरोज़गारी, आतंरिक संघर्ष—उससे लोगों का ध्यान हटाने के लिए ये ‘ड्रामा’ जरूरी था. हमला करके, भारत को विलेन और खुद को पीड़ित बताने का उनका पुराना ‘प्लेबुक’ फिर खोला गया.

    अंदरूनी हालात और ‘बाहरी’ दुश्मन

    जब पाकिस्तानी सेना को लगता है कि लोग सड़कों पर उतरने वाले हैं, तब वो “भारत हमला कर सकता है!” जैसी बातें फैलाना शुरू कर देती है. इससे जनता डरती है, और असल मुद्दे जैसे महंगाई, भ्रष्टाचार और नाकामी—पर्दे के पीछे चले जाते हैं.

    ठीक यही स्क्रिप्ट साल 2000 में भी चली थी, जब बिल क्लिंटन भारत में थे और ठीक उसी दौरान जम्मू-कश्मीर में नरसंहार हुआ.

    इस बार क्या बदलेगा?

    अब देखना यह होगा कि इस बार पाकिस्तान की ये चाल कितनी सफल होती है. क्या दुनिया अब भी उस पर भरोसा करेगी? या फिर भारत इस बार आतंक के खिलाफ निर्णायक कदम उठाएगा?

    एक बात तो तय है, पहलगाम की खूबसूरती पर जो खून के छींटे पड़े हैं, वो सिर्फ एक अलर्ट नहीं, एक चुनौती भी हैं. चुनौती ये समझने की कि: ये हमला सिर्फ एक जगह पर नहीं, बल्कि भारत की छवि, अखंडता और आत्मा पर है.

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