ट्रंप के बाद जेडी वेंस ने IAF को दिया F-35 फाइटर जेट का ऑफर, भारत-अमेरिका के बीच होगी बड़ी डील!

    पहले ट्रंप और अब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस दोनों भारत को अमेरिका का सबसे एडवांस लड़ाकू विमान F-35 देने का प्रस्ताव दे चुके हैं. जयपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान वेंस ने साफ-साफ कहा, “अगर भारत अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग को और मजबूत करता है, तो F-35 जैसे अत्याधुनिक फाइटर जेट उसका इंतज़ार कर रहे हैं.”

    After Trump JD Vance offered F-35 fighter jet to IAF there will be a big deal between India and America
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    वॉशिंगटन: पहले ट्रंप और अब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस दोनों भारत को अमेरिका का सबसे एडवांस लड़ाकू विमान F-35 देने का प्रस्ताव दे चुके हैं. जयपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान वेंस ने साफ-साफ कहा, “अगर भारत अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग को और मजबूत करता है, तो F-35 जैसे अत्याधुनिक फाइटर जेट उसका इंतज़ार कर रहे हैं.”

    बात सुनने में जितनी हाई-टेक और लुभावनी लगती है, हकीकत उतनी ही पेचीदा और व्यावहारिक है. भारत इस ‘ऑफर’ को लेकर अब तक चुप है—और उसके पीछे वाजिब वजहें हैं.

    लड़ाकू विमानों की जरूरत तो है...

    भारतीय वायु सेना को फिलहाल मिग-21 और जगुआर जैसे पुराने विमानों की जगह लेने वाले फाइटर जेट्स की शक्तिशाली खेप चाहिए. मिराज की सेवा सीमा लगभग खत्म हो चुकी है और तेजस भी फिलहाल सिंगल-इंजन और सीमित संख्या के कारण पूरी जिम्मेदारी नहीं उठा सकता.

    लेकिन जब विकल्पों की बात आती है, तो भारत के पास फ्रांस का राफेल, रूस का Su-35/Su-57, और स्वीडन का ग्रिपेन जैसे नाम पहले से मौजूद हैं.

    फिर F-35 क्यों नहीं?

    1. उपलब्धता नहीं, उलझन ज़्यादा

    अमेरिका का F-35 दुनिया का सबसे हाईटेक फाइटर जेट तो है, लेकिन ‘हाई-मेंटेनेंस प्रोडक्ट’ भी है. दक्षिण कोरिया, जापान, ब्रिटेन—जिन-जिन देशों ने इसे खरीदा है, सब परेशान हैं.

    दक्षिण कोरिया की संसद में खुलासा हुआ था कि उनके 40 में से F-35 विमानों ने 18 महीनों में 172 बार उड़ान नहीं भरी, और कई बार मिशन बीच में छोड़ने पड़े.
    एलन मस्क तक इसे "इनोवेशन की कब्र" बता चुके हैं.

    2. कीमत पर बात नहीं बनती

    F-35 सिर्फ हाईटेक नहीं, हाई बजट भी है. भारत को कम से कम 100 से ज़्यादा जेट्स चाहिए, और उस स्केल पर अगर F-35 जैसे विमानों का सौदा किया जाए, तो बिलियन डॉलर की बात मिनटों में ट्रिलियन तक जा सकती है.

    सिर्फ खरीदना ही महंगा नहीं है, इसका मेंटेनेंस, ऑपरेशनल लागत और लॉजिस्टिक्स सपोर्ट भी भारत के बजट पर बड़ा बोझ बन सकता है.

    3. तकनीकी निर्भरता

    F-35 अमेरिकी तकनीक का ब्रांड है—और इसमें हर स्क्रू से लेकर कोड तक पर अमेरिका की मोहर है. ऐसे में भारत की रणनीतिक और तकनीकी स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है.

    जहां भारत अब आत्मनिर्भर रक्षा नीति की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है, वहां क्लोज्ड-सोर्स, अमेरिकी कंडीशनों के साथ आने वाले प्लेटफॉर्म्स को लेना आसान नहीं.

    भारत के लिए बेहतर विकल्प क्या?

    भारत पहले ही राफेल के साथ सकारात्मक अनुभव हासिल कर चुका है. इसके अलावा रूस के Su-57 जैसे फिफ्थ जेनरेशन फाइटर, और फ्रांस-भारत संयुक्त रूप से विकसित हो रहे AMCA प्रोजेक्ट भी F-35 से बेहतर, और कम जटिल विकल्प हैं.

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