बांग्लादेश में राखीन कॉरिडोर पर घमासान, आमने-सामने आए चीन और अमेरिका, भारत को सतर्क रहने की जरुरत

    दक्षिण एशिया एक बार फिर भू-राजनीतिक तकरार का अखाड़ा बनता दिख रहा है. इस बार विवाद का केंद्र बना है राखीन कॉरिडोर

    Clashes erupt over Rakhine Corridor in Bangladesh
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- Social Media

    ढाका: दक्षिण एशिया एक बार फिर भू-राजनीतिक तकरार का अखाड़ा बनता दिख रहा है. इस बार विवाद का केंद्र बना है राखीन कॉरिडोर—एक मानवीय गलियारा, जो बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार से म्यांमार के अशांत राखीन राज्य तक प्रस्तावित है. इस परियोजना ने न केवल बांग्लादेश के भीतर राजनीतिक और सैन्य मतभेद उभार दिए हैं, बल्कि वैश्विक महाशक्तियों अमेरिका और चीन को भी आमने-सामने ला खड़ा किया है. ऐसे में भारत इस पूरे घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रहा है.

    सरकार बनाम सेना: बांग्लादेश में बढ़ता टकराव

    बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने इस अमेरिकी समर्थित गलियारे को लेकर सहमति जताई थी. परंतु बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमान ने इस प्रस्ताव का खुलकर विरोध करते हुए इसे "राष्ट्रीय संप्रभुता पर हमला" और "खूनी कॉरिडोर" करार दिया.

    सेना प्रमुख ने न केवल इस परियोजना को खतरनाक बताया, बल्कि यह भी आरोप लगाया कि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर उनसे कोई सलाह-मशविरा नहीं किया गया.
    उनकी नाराजगी के बाद सरकार को बैकफुट पर जाना पड़ा और यह सफाई देनी पड़ी कि अभी इस प्रस्ताव पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है.

    यह घटना न केवल बांग्लादेश की राजनीतिक-सैन्य संरचना में दरार को उजागर करती है, बल्कि देश की विदेश नीति के दोराहे को भी दर्शाती है.

    राखीन कॉरिडोर क्या है और क्यों बना तनाव?

    राखीन कॉरिडोर एक प्रस्तावित मानवीय और लॉजिस्टिक मार्ग है, जो बांग्लादेश के कॉक्स बाजार से म्यांमार के राखीन राज्य तक फैलेगा. इस गलियारे के ज़रिए युद्ध प्रभावित क्षेत्र में फंसे रोहिंग्या समुदाय और अन्य नागरिकों तक मदद पहुंचाने का दावा किया जा रहा है.

    • हालांकि, असल विवाद इस मानवीय पहल की भू-राजनीतिक नीयत पर है.
    • अमेरिका इसे जुंटा विरोधी गुटों की सहायता का माध्यम बनाना चाहता है.

    जबकि म्यांमार की मौजूदा सैन्य सरकार, जो चीन समर्थित है, इस परियोजना को संदेह की निगाह से देख रही है.

    अमेरिका बनाम चीन: नई शीत युद्ध रेखा?

    • इस विवाद से साफ है कि बांग्लादेश अब केवल घरेलू मुद्दों तक सीमित नहीं रहा.
    • यह अमेरिका और चीन के बीच चल रहे रणनीतिक प्रभाव के खेल का हिस्सा बन चुका है.
    • अमेरिका चाहता है कि वह दक्षिण एशिया में नरम शक्ति (Soft Power) के जरिए अपना प्रभाव बढ़ाए, खासकर म्यांमार जैसे अस्थिर क्षेत्रों में.

    चीन, जो म्यांमार के सैन्य शासन का करीबी है, इस गलियारे को अमेरिकी दखल का जरिया मानता है और बांग्लादेश को इससे दूर रहने का परोक्ष दबाव बना रहा है.

    भारत की स्थिति: सतर्क, लेकिन संयमित

    • भारत इस पूरे घटनाक्रम को "साइलेंट वॉचडॉग" की तरह देख रहा है.
    • भारत के लिए यह कॉरिडोर न सिर्फ पूर्वोत्तर की सुरक्षा, बल्कि रोहिंग्या मुद्दे और बंगाल की खाड़ी में चीन की बढ़ती मौजूदगी के लिहाज से भी बेहद अहम है.
    • भारत नहीं चाहता कि अमेरिका या चीन, दोनों में से कोई भी, दक्षिण एशिया में असंतुलन पैदा करे.

    बांग्लादेश में बदला मूड?

    हाल के घटनाक्रमों से संकेत मिलते हैं कि मोहम्मद यूनुस, जो पहले अमेरिका समर्थक माने जा रहे थे, अब चीन के साथ तालमेल बढ़ा रहे हैं.

    • उन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए बीजिंग को चुना.
    • उसके बाद सेना प्रमुख जनरल वाकर उज जमान ने भी चीन का दौरा किया.

    यह बदलाव स्पष्ट करता है कि बांग्लादेश एकतरफा अमेरिकी समर्थन के बजाय बैलेंस्ड डिप्लोमेसी की ओर झुक रहा है.

    ये भी पढ़ें- 'नकल के लिए अक्ल चाहिए, इनके पास वो भी नहीं...' असदुद्दीन ओवैसी ने कुवैत में खोली पाकिस्तान की पोल