US के परमाणु कंट्रोल एजेंसी सर्वर में घुसा चीन, 100 से ज्यादा संगठनों को बनाया शिकार; क्या करेंगे ट्रंप?

    इस साइबर हमले के केंद्र में था "टूलशेल", एक गंभीर जीरो-डे कमजोरी जो हैकर्स को शेयरपॉइंट सर्वर पर हमला करने का रास्ता देती है.

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    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    आप कल्पना कीजिए, एक ऐसी खामोशी में हुई घुसपैठ, जो पूरी दुनिया के सबसे सुरक्षित डेटा सेंटर और सरकारी संस्थानों के डिजिटल तंत्र में हो सकती है. ठीक ऐसा ही हुआ है जब माइक्रोसॉफ्ट के शेयरपॉइंट डॉक्यूमेंट मैनेजमेंट सॉफ़्टवेयर में एक गंभीर "जीरो-डे" कमजोरी का पता चला, जिसने हजारों सर्वरों को असुरक्षित बना दिया और साइबर जासूसी के एक नए और बड़े अभियान को जन्म दिया. इस हमले में 100 से ज्यादा संगठनों को निशाना बनाया गया, जिसमें अमेरिका की नेशनल न्यूक्लियर सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन (NNSA) भी शामिल है.

    शेयरपॉइंट का यह कमजोर लिंक क्या था?

    इस साइबर हमले के केंद्र में था "टूलशेल", एक गंभीर जीरो-डे कमजोरी जो हैकर्स को शेयरपॉइंट सर्वर पर हमला करने का रास्ता देती है. इस कमजोरी का फायदा उठाकर हैकर्स ने सर्वरों पर क्रिप्टोग्राफिक कीज चुराईं और वेबशेल्स तैनात कर दिए. इन वेबशेल्स की मदद से उन्हें सर्वर पर पूरी तरह से नियंत्रण मिल गया. यह उस तरह की स्थिति है, जहां किसी ने आपके घर के अंदर घुसकर सभी तिजोरियां खोल दी हों.

    हालांकि, माइक्रोसॉफ्ट ने इस समस्या को सुधारने के लिए एक पैच जारी किया था, लेकिन साइबर सुरक्षा फर्मों ने इसे अपर्याप्त पाया. हैकर्स ने इस पैच को जल्दी ही बायपास कर लिया और नया हमला करने के तरीके विकसित कर लिए. अब तक, खतरा पूरी तरह से टला नहीं है, और माइक्रोसॉफ्ट ने इस मुद्दे को लेकर और भी अपडेट्स जारी किए हैं.

    खतरा कितना बड़ा था?

    हमले का दायरा कुछ इस कदर था कि सरकारी संस्थाओं से लेकर बड़े निगमों तक कोई भी इस साइबर हमले से बच नहीं पाया. अनुमान है कि अब भी 8,000 से अधिक शेयरपॉइंट सर्वर असुरक्षित हैं, और इन सर्वरों में सक्रिय शोषण जारी है. अमेरिकी साइबर सुरक्षा और इन्फ्रास्ट्रक्चर सिक्योरिटी एजेंसी (CISA) ने सभी संगठनों से आग्रह किया है कि वे तुरंत नवीनतम पैच लागू करें और अपने सिस्टम की गहरी जांच करें.

    CISA का कहना है कि केवल पैचिंग ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि हैकर्स द्वारा चुराई गई क्रिप्टोग्राफिक कीज उन्हें भविष्य में फिर से सिस्टम में घुसपैठ करने की अनुमति दे सकती हैं. इसका मतलब है कि संगठनों को केवल तकनीकी सुधार नहीं, बल्कि अपनी सुरक्षा प्रणाली की पूरी समीक्षा करनी होगी.

    साइबर जासूसी और इसके दूरगामी परिणाम

    इस साइबर हमले के पीछे चीन से जुड़े हैकिंग समूहों "लिनेन टाइफून" और "वायलेट टाइफून" के होने का अनुमान लगाया जा रहा है. हालांकि बीजिंग ने इन आरोपों से इंकार किया है, लेकिन यह घटना यह साफ करती है कि सरकारों और बड़ी कंपनियों के लिए साइबर जासूसी एक बहुत बड़ा खतरा बन चुकी है.

    यह सिर्फ एक सुरक्षा खामी नहीं है, बल्कि यह डिजिटल युग में खतरों की वास्तविकता को सामने लाती है. अब, हर संगठन को न सिर्फ पैच लागू करने के बजाय, अपने सिस्टम को गहराई से जांचने और अपने क्रिप्टोग्राफिक कीज़ को बदलने की सलाह दी जा रही है.

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