पाकिस्तान के दोस्त तुर्की के पीछे चीन ने लगाए 7 जासूस, एर्दोगन के गढ़ में क्या ढूंढ रहे थे? जानिए कैसे हुआ खुलासा

    तुर्किए और चीन की दोस्ती की आड़ में एक हैरान कर देने वाली साजिश का पर्दाफाश हुआ है, जिसने अंतरराष्ट्रीय खुफिया जगत में हलचल मचा दी है.

    China put 7 spies behind Pakistan friend Turkey Erdogan
    एर्दोगन-जिनपिंग | Photo: ANI

    तुर्किए और चीन की दोस्ती की आड़ में एक हैरान कर देने वाली साजिश का पर्दाफाश हुआ है, जिसने अंतरराष्ट्रीय खुफिया जगत में हलचल मचा दी है. तुर्किए की प्रतिष्ठित खुफिया एजेंसी MIT (नेशनल इंटेलिजेंस ऑर्गेनाइजेशन) ने सात चीनी नागरिकों के एक बेहद परिष्कृत साइबर जासूसी नेटवर्क को पकड़ने में सफलता हासिल की है. इन जासूसों पर आरोप है कि वे हाई-टेक 'घोस्ट बेस स्टेशन' यानी फर्जी मोबाइल टावर लगाकर न केवल तुर्की के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों की निगरानी कर रहे थे, बल्कि देश में रह रहे उइगर मुसलमानों की भी जासूसी कर रहे थे.

    खुलासे की शुरुआत ऐसे हुई

    ये पूरा नेटवर्क इतना पेशेवर तरीके से तैयार किया गया था कि शुरुआत में इसकी भनक तक नहीं लगी, लेकिन जैसे ही कुछ मोबाइल यूजर्स को संदिग्ध SMS मिलने लगे, जिनमें सरकारी संस्थाओं या प्रतिष्ठानों के नाम का इस्तेमाल किया गया था, MIT सतर्क हो गई. शुरुआती जांच में ये संदेश किसी आम सर्वर से नहीं, बल्कि बेहद विशिष्ट तकनीक से भेजे गए पाए गए — यहीं से खुलासे की शुरुआत हुई.

    CNN Turk की रिपोर्ट के मुताबिक, सातों चीनी नागरिक — झेन्हुआ लियू, वू झियॉन्ग, वू रेंजुन, शिओन्गक्यांग शिआओ, झुओवेई क्यू, मा शियूपिंग और डेयुआन जू — तुर्किए के अलग-अलग शहरों में सक्रिय थे. ये केवल इस्तांबुल तक सीमित नहीं थे, बल्कि इज़मिर, मनिसा, बालिकेसिर और बुरसा जैसे शहरों में भी अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे.

    तीन अलग-अलग ग्रुप में बंटकर काम किया

    जांच में पता चला कि यह जासूसी नेटवर्क अत्याधुनिक तकनीक से लैस था. 'घोस्ट बेस स्टेशन' डिवाइसों को तुर्की में लाने के लिए एक बेहद चालाक तरीका अपनाया गया. उपकरणों को एक साथ लाना मुश्किल था, इसलिए उन्हें पार्ट्स में तस्करी कर लाया गया — जैसे कोई एंटीना लाया, कोई बैटरी, कोई अन्य जरूरी हिस्सा. कुल चार लोगों का इस्तेमाल सिर्फ उपकरणों को चुपचाप देश में दाखिल कराने के लिए किया गया. इसके बाद दो लोग इन टावरों को ऑपरेट करते और एक इनसे प्राप्त डेटा को चीनी सर्वर पर ट्रांसफर करता.

    MIT की टेक्निकल टीम ने जब SMS ट्रेस किए, तो यह बात सामने आई कि जालसाजों ने तीन अलग-अलग ग्रुप में बंटकर काम किया. इन ग्रुप्स ने हजारों मोबाइल यूजर्स के बातचीत के डाटा, लोकेशन और निजी जानकारी इंटरसेप्ट की. यह जानकारी सीधे चीन स्थित सर्वर पर भेजी जा रही थी. इतना ही नहीं, इसके बाद इन यूजर्स को विदेशी ऐप्स के ज़रिए टारगेट किया गया — फर्जी लिंक भेजकर उनके बैंक और कार्ड डिटेल्स निकाले गए और फ्रॉड पेमेंट कराए गए.

    ये भी पढ़ेंः शव के टुकड़े-टुकड़े किए, फिर सब्जी के साथ पकाया... पिज्जा शेफ की इस करतूत ने मचाया हड़कंप, कैसे खुला राज?