20 स्टील्थ फ्रिगेट, 13 युद्धपोत, एकसाथ 300 ब्रह्मोस दागने की क्षमता... 2030 तक ऐसी होगी इंडियन नेवी

    साल 2030 तक भारत की समुद्री शक्ति एक नए युग में प्रवेश करेगी, जिसमें ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइलों से लैस स्टील्थ युद्धपोतों और विध्वंसकों का एक विशाल बेड़ा देश की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा करेगा.

    By 2030 Indian Navy will have 20 stealth frigates 13 destroyers
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    नई दिल्ली: भारतीय नौसेना आने वाले वर्षों में जबरदस्त बदलाव के दौर से गुजरने जा रही है. साल 2030 तक भारत की समुद्री शक्ति एक नए युग में प्रवेश करेगी, जिसमें ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइलों से लैस स्टील्थ युद्धपोतों और विध्वंसकों का एक विशाल बेड़ा देश की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा करेगा. रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यह रणनीतिक बदलाव भारत को एक ब्लू वॉटर नेवी यानी वैश्विक समुद्री ताकत के रूप में स्थापित कर सकता है.

    वर्तमान में, नौसेना अपनी आक्रामक और रक्षात्मक क्षमताओं को अद्यतन करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है. इसकी केंद्र में है- ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, जो अपनी तेज़ रफ्तार, सटीकता और मारक क्षमता के कारण दुनिया की सबसे घातक हथियार प्रणालियों में से एक मानी जाती है.

    ब्रह्मोस: भारतीय नौसेना की रीढ़ बनी यह मिसाइल

    ब्रह्मोस मिसाइल एक संयुक्त भारत-रूस परियोजना है, जिसे जमीन, समुद्र, वायु और पनडुब्बी से लॉन्च किया जा सकता है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता है- 2.8 मैक की रफ्तार (यानी आवाज की गति से लगभग तीन गुना अधिक) और 300-450 किलोमीटर तक मारक क्षमता.

    सिर्फ गति ही नहीं, ब्रह्मोस मिसाइल की 'हिट एंड डिस्ट्रॉय' क्षमता, यानी लक्ष्य को टालने का कोई मौका ना देना, इसे खास बनाती है. यह दुश्मन के रडार में आने से पहले ही लक्ष्य पर हमला करने में सक्षम है.

    स्टील्थ फ्रिगेट्स में हो रहा ब्रह्मोस का इस्तेमाल

    भारतीय नौसेना के पास पहले से ही कई उन्नत स्टील्थ युद्धपोत हैं, जिनमें ब्रह्मोस मिसाइलों को एकीकृत किया जा चुका है. हाल ही में लॉन्च किए गए दो अत्याधुनिक फ्रिगेट- आईएनएस उदयगिरी और आईएनएस हिमगिरी इन सुपरसोनिक मिसाइलों से लैस हैं.

    वर्तमान स्थिति:

    • अब तक 14 गाइडेड मिसाइल स्टील्थ फ्रिगेट भारतीय नौसेना में शामिल हो चुके हैं.
    • प्रत्येक फ्रिगेट में 8 वर्टिकल लॉन्च ब्रह्मोस मिसाइलें तैनात हैं, जो युद्ध की स्थिति में तेजी से हमले के लिए तैयार रहती हैं.

    भविष्य की योजना:

    • 2030 तक 20 ब्रह्मोस-सुसज्जित स्टील्थ फ्रिगेट्स सेवा में होंगे.
    • इनमें 7 नीलगिरी क्लास, 3 शिवालिक क्लास, और 10 तलवार क्लास युद्धपोत शामिल हैं.

    इन सभी फ्रिगेट्स को विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है ताकि वे रडार से बचते हुए, समुद्र की सतह से मिसाइलें लॉन्च कर सकें.

    13 विध्वंसक युद्धपोतों की घातक क्षमता

    भारतीय नौसेना के पास वर्तमान में 13 विध्वंसक (Destroyers) हैं, जिनकी आक्रामक क्षमता भी अब ब्रह्मोस मिसाइलों से बढ़ाई जा रही है.

    श्रेणियों के अनुसार विभाजन:

    • 4 विशाखापत्तनम क्लास – हर एक में 16 ब्रह्मोस मिसाइलों की क्षमता
    • 3 कोलकाता क्लास – उन्नत सेंसर और हथियार प्रणालियों से लैस
    • 3 दिल्ली क्लास – ब्रह्मोस से अपग्रेड हो रहे हैं
    • 3 राजपूत क्लास – पुराने लेकिन अब भी प्रभावशाली

    इन विध्वंसकों में से नए पोतों में 16 मिसाइलें तैनात की जा सकती हैं, जबकि पुराने प्लेटफॉर्म 8 मिसाइलें ले जाने में सक्षम हैं.

    2030 तक 300 ब्रह्मोस की मारक क्षमता

    यदि नौसेना के सभी स्टील्थ फ्रिगेट्स और विध्वंसकों की मिसाइल क्षमता को जोड़ा जाए, तो भारत के पास 2030 तक एक समय में 300 से ज्यादा ब्रह्मोस मिसाइलें तैनात करने की शक्ति होगी.

    इस सामूहिक क्षमता का महत्व:

    • एक साथ इतने बड़े पैमाने पर मिसाइल प्रहार का अर्थ है किसी भी समुद्री युद्ध में निर्णायक बढ़त.
    • यह क्षमता केवल रक्षात्मक नहीं, बल्कि पूर्व-खतरों को नष्ट करने वाली आक्रामक रणनीति को भी संभव बनाती है.
    • चीन और पाकिस्तान जैसे रणनीतिक विरोधियों को भारत की यह क्षमता गहरे स्तर पर प्रभावित कर सकती है.

    तकनीकी और सामरिक लाभ

    ब्रह्मोस की सुपरसोनिक गति उसे इंटरसेप्ट करना बेहद मुश्किल बनाती है. इसके अलावा:

    • कम ऊंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता के चलते यह रडार से बचकर लक्ष्य तक पहुंचती है.
    • यह वर्टिकल लॉन्च सिस्टम (VLS) से दागी जाती है, जिससे कई मिसाइलें एक साथ छोड़ी जा सकती हैं.
    • सेमी-एक्टिव रडार और टर्मिनल फेज में एक्टिव होमिंग के कारण यह आखिरी क्षण तक अपने लक्ष्य का पीछा करती है.

    ऑपरेशन सिंदूर ने साबित की विश्वसनीयता

    इसी साल 'ऑपरेशन सिंदूर' में ब्रह्मोस ने सटीकता, प्रभाव और विश्वसनीयता का प्रदर्शन किया है. यही कारण है कि अब इसे थल सेना, वायु सेना और नौसेना तीनों अंगों में व्यापक रूप से शामिल किया जा रहा है.

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