वाशिंगटनः सोचिए, अगर कल दुनिया खत्म होने वाली हो तो आम लोग कहां होंगे और दुनिया के सबसे अमीर लोग कहां? क्या वे पहले से ही अज्ञात जगहों पर, हाई-टेक बंकरों में महफूज़ बैठकर चाय की चुस्कियां ले रहे होंगे? ये सवाल अब सिर्फ कल्पना नहीं रह गया है, बल्कि अमेरिका की एक पूर्व अधिकारी के हैरान करने वाले दावे ने इसे नई हवा दे दी है.
कैथरीन ऑस्टिन फिट्स, जो कभी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश की प्रशासनिक टीम का हिस्सा रह चुकी हैं, ने दावा किया है कि अमेरिका ने दो दशकों में गुपचुप तरीके से 170 से ज़्यादा भूमिगत और समुद्री बंकर तैयार कर लिए हैं. ये बंकर सिर्फ किसी प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए नहीं, बल्कि एक अज्ञात और शायद बेहद उन्नत ट्रांजिट नेटवर्क से आपस में जुड़े हुए हैं.
कहां से आया इतना पैसा?
फिट्स के मुताबिक, 1998 से 2015 के बीच अमेरिकी सरकार ने करीब 21 ट्रिलियन डॉलर के असमर्थित और रहस्यमय खर्च किए. ये आंकड़े अर्थशास्त्री मार्क स्किडमोर की 2017 की एक रिपोर्ट से निकले थे, जिसमें बताया गया था कि अमेरिकी रक्षा और हाउसिंग विभाग में अरबों डॉलर के ट्रांजैक्शन बिना कोई स्पष्ट रिकॉर्ड के दर्ज किए गए. कैथरीन का मानना है कि यही पैसा उन सीक्रेट बंकरों में लगाया गया है.
सिर्फ अमेरिका नहीं, पूरी दुनिया में 'सेफ हाउस' की होड़
इतना ही नहीं, निजी कंपनियां अब खुलेआम ऐसी जगहें बना रही हैं जिन्हें “कयामत से पहले की जन्नत” कहा जा सकता है. अमेरिका की एक हाई-सेक्योरिटी फर्म SAFE ने हाल ही में एक प्रोजेक्ट लॉन्च किया है – ‘Aerie’. यह एक अंडरग्राउंड रेजिडेंस होगा जो वॉशिंगटन के पास बन रहा है और 2026 तक तैयार हो जाएगा. इसकी कीमत है – 300 मिलियन डॉलर, और इसमें रह पाने का अधिकार सिर्फ 625 अल्ट्रा-अमीर लोगों को मिलेगा.
यह बंकर किसी पांच सितारा रिज़ॉर्ट से कम नहीं होगा. इसमें होगा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस मेडिकल सपोर्ट, वेलनेस सेंटर, बॉलिंग एली, इनडोर पूल, और यहां तक कि IV थेरेपी भी. हां, एक सीट की कीमत है – 20 मिलियन डॉलर.
न्यूजीलैंड, हवाई और अरबपतियों की निजी पनाहगाहें
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में पहले ही यह खुलासा हो चुका है कि टेक्नोलॉजी के कई अरबपति पहले से अपने "डूम्सडे प्लान" पर काम कर रहे हैं. 2018 में कम से कम सात अरबपतियों ने न्यूजीलैंड में बंकर खरीदे थे. वहीं, मार्क जुकरबर्ग हवाई में अपना एक प्राइवेट अंडरग्राउंड किला बनवा रहे हैं, जिसकी जानकारी किसी को न हो इसलिए वहां काम करने वालों से NDA साइन करवाया गया है.
क्या वाकई सबको बराबरी से बचाया जाएगा?
जब पूरी दुनिया संकट के मुहाने पर खड़ी होगी, क्या सिर्फ चंद अमीर ही बचे रहेंगे? क्या ‘कयामत के दिन’ के लिए एक समानांतर व्यवस्था पहले से तैयार हो चुकी है, जिसका आम इंसानों को कोई हिस्सा नहीं?
मीडिया थिंकर्स और विश्लेषक मानते हैं कि यह सब कुछ सिर्फ सुरक्षा नहीं, बल्कि उस असमानता की तस्वीर है, जो दुनिया को धीरे-धीरे बांट रही है – एक तरफ वे जो ‘बचा लिए जाएंगे’ और दूसरी तरफ वो, जो शायद कभी उस सूची में थे ही नहीं.
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