दक्षिण एशिया में चीन की रणनीतिक पकड़ लगातार मजबूत होती जा रही है. श्रीलंका और पाकिस्तान के बाद अब बांग्लादेश भी चीन के आर्थिक प्रभाव में आता दिख रहा है. ताजा घटनाक्रम में, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने तीस्ता नदी परियोजना के लिए चीन से 6700 करोड़ टका का कर्ज लेने का फैसला किया है. इस परियोजना को ‘तीस्ता मेगा प्रोजेक्ट’ नाम दिया गया है, जिसमें चीन की भूमिका आने वाले समय में काफी अहम हो सकती है.
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस की हालिया चीन यात्रा के बाद यह प्रोजेक्ट तेजी से आगे बढ़ा है. माना जा रहा है कि वर्ष 2025 के अंत तक दोनों देशों के बीच इस प्रोजेक्ट को लेकर एक औपचारिक वित्तीय समझौता हो सकता है.
चीन के साथ वित्तीय समझौते की तैयारी
तीस्ता नदी परियोजना का मकसद सिर्फ बुनियादी ढांचे का विकास नहीं, बल्कि बाढ़ नियंत्रण, तट संरक्षण और नदी में जल प्रवाह को बेहतर बनाना भी है. नदी का 115 किलोमीटर हिस्सा बांग्लादेश में पड़ता है, जिसमें से करीब 45 किलोमीटर क्षेत्र कटाव की चपेट में है. विशेषकर 20 किलोमीटर लंबा इलाका सबसे अधिक संवेदनशील है.
भारत की अनदेखी के बाद चीन को मौका
इस प्रोजेक्ट में भारत भी दिलचस्पी दिखा चुका है. मई 2024 में भारत के पूर्व विदेश सचिव विनय क्वात्रा की ढाका यात्रा के दौरान भारत ने तीस्ता प्रोजेक्ट में निवेश की इच्छा जताई थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना भी चाहती थीं कि यह प्रोजेक्ट भारत को मिले. लेकिन अगस्त 2024 में बांग्लादेश में हुए भारी विरोध-प्रदर्शनों और राजनीतिक उथल-पुथल के चलते उन्हें देश छोड़ना पड़ा और भारत में शरण लेनी पड़ी. प्रेस कॉन्फ्रेंस में हसीना ने खुलकर कहा था, “चीन तो तैयार है, लेकिन मैं चाहती हूं कि भारत इस प्रोजेक्ट को संभाले.” लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है.
भारत के लिए रणनीतिक चिंता
तीस्ता नदी सिक्किम और पश्चिम बंगाल से होकर बांग्लादेश में प्रवेश करती है. यह एक अंतरराष्ट्रीय नदी है, जिसे दोनों देश साझा करते हैं. भारत के लिए चिंता का विषय यह है कि तीस्ता बेसिन भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के बेहद पास स्थित है. जिसे ‘चिकन नेक’ भी कहा जाता है. यह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को मुख्य भूभाग से जोड़ने वाला एकमात्र जमीनी रास्ता है. ऐसे में इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी सामरिक दृष्टि से भारत के लिए खतरनाक हो सकती है.
तीस्ता जल बंटवारा विवाद: अब भी अधूरा
तीस्ता नदी को लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच लंबे समय से जल बंटवारे का विवाद चला आ रहा है. 1983 में एक अंतरिम समझौते के तहत भारत को 39% और बांग्लादेश को 36% पानी देने की सहमति बनी थी. लेकिन कोई स्थायी समझौता नहीं हो पाया. 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा के दौरान इस पर एक नया समझौता होने की उम्मीद थी, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आपत्तियों के चलते बात अधूरी रह गई. उसके बाद से यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया.
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