क्या ईरान पर हमले के लिए अमेरिका ने पाकिस्तानी एयरस्पेस का किया इस्तेमाल? ट्रंप-मुनीर के लंच का कनेक्शन!

    अमेरिकी हमले से ठीक चार दिन पहले, 18 जून को, वाशिंगटन डीसी में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के बीच एक अहम बैठक हुई.

    America use Pakistani airspace to attack Iran Trump Munir lunch
    डोनाल्ड ट्रंप | Photo: ANI

    पश्चिम एशिया में हालात एक बार फिर गंभीर मोड़ पर आ गए हैं. ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर अमेरिका के हमले के साथ ही यह साफ हो गया कि अब यह संघर्ष एक नए और खतरनाक चरण में प्रवेश कर चुका है. इजराइल और ईरान के बीच लंबे समय से चल रहे तनाव के बीच यह आशंका जताई जा रही थी कि अमेरिका किसी भी वक्त इसमें खुलकर शामिल हो सकता है — और अब वही हुआ.

    लेकिन, इस पूरे घटनाक्रम में एक और दिलचस्प मोड़ तब आया जब अमेरिकी हमले से ठीक चार दिन पहले, 18 जून को, वाशिंगटन डीसी में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के बीच एक अहम बैठक हुई. ट्रंप ने खुद कहा कि इस मुलाकात में ईरान के मसले पर चर्चा हुई थी. पाकिस्तान और ईरान की लगभग 900 किलोमीटर लंबी सीमा को देखते हुए इस बैठक का महत्व और भी बढ़ जाता है.

    क्या अमेरिका ने पाकिस्तान से कोई 'समझौता' किया?

    पेंटागन के पूर्व अधिकारी माइकल रुबिन का मानना है कि ट्रंप और मुनीर की मुलाकात सिर्फ एक सामान्य कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं थी. उन्होंने आशंका जताई कि अमेरिका ने पाकिस्तान से संभावित सैन्य या खुफिया सहयोग को लेकर बात की होगी — चाहे वह ओवरफ्लाइट की अनुमति हो या क्षेत्रीय संकेतों के जरिए ईरान पर दबाव डालना.

    रुबिन ने पुराने उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि 2003 में जब अमेरिका ने इराक पर हमला किया था, तब उसने ईरान से इसी तरह का एक गुप्त समझौता किया था — अमेरिकी विमानों को ईरानी हवाईअड्डों पर उतरने की अनुमति दी गई थी. ठीक इसी तरह, पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों में भी यह देखा गया है कि अमेरिका तब तक पाकिस्तान को महत्व देता है जब तक उसे उससे कोई रणनीतिक लाभ मिल रहा हो.

    अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत क्यों पड़ी?

    ईरान की सीमा से लगे होने के कारण पाकिस्तान अमेरिका के लिए एक रणनीतिक सहयोगी बन सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका अगर ईरान पर हमला करता है, तो उसे सीमा के पास किसी सहयोगी देश की जरूरत होगी जिससे उसे लॉजिस्टिक्स, ड्रोन ऑपरेशन, इंटेलिजेंस और एयरबेस सुविधाएं मिल सकें. पाकिस्तान के क्वेटा और तुरबत जैसे क्षेत्रों में ऐसे बेस बनाए जा सकते हैं जो अमेरिकी मिशनों को ताकत दे सकते हैं.

    डोनाल्ड ट्रंप की सोच में यह भी हो सकता है कि मुस्लिम बहुल देश पाकिस्तान की भागीदारी से इस ऑपरेशन को वैधता मिले और पश्चिम एशियाई दुनिया में अमेरिका की स्थिति मजबूत हो.

    पाकिस्तान की आधिकारिक प्रतिक्रिया

    हालांकि, अमेरिका के इस कदम की पाकिस्तान ने सार्वजनिक रूप से निंदा की है. हमले के ठीक एक दिन बाद पाकिस्तान ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया, लेकिन इसके तुरंत बाद अमेरिकी कार्रवाई की आलोचना करते हुए इस्लामाबाद ने बयान जारी किया कि वह क्षेत्र में तनाव के बढ़ते खतरे को लेकर “गंभीर रूप से चिंतित” है.

    पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि अमेरिका का यह हमला “अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सभी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.” साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि ईरान को आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है.

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