अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50 फीसदी तक का भारी-भरकम टैरिफ लगाए जाने के फैसले से न सिर्फ भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों में खटास आई है, बल्कि खुद अमेरिका के भीतर इस नीति को लेकर विरोध शुरू हो गया है. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने इस फैसले को ‘दबाव की राजनीति’ करार देते हुए चेताया है कि इससे भारत अमेरिका से दूर हो सकता है और चीन की ओर झुकाव तेज़ हो सकता है.
जैक सुलिवन ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में कहा कि कई वैश्विक नेता अब अमेरिका को लेकर पहले जैसा भरोसा नहीं रखते. उनका कहना था, "जहां एक ओर चीन खुद को एक स्थिर और ज़िम्मेदार शक्ति के रूप में प्रस्तुत कर रहा है, वहीं अमेरिका की छवि अब अस्थिर और अविश्वसनीय बनती जा रही है." उन्होंने यह भी जोड़ा कि ट्रंप प्रशासन की नीतियों ने अमेरिका की वैश्विक साख को नुकसान पहुंचाया है, और भारत जैसे साझेदार अब मजबूरी में बीजिंग की ओर रुख करने पर विचार कर रहे हैं.
भारत को झुकने पर मजबूर कर रही है ट्रंप की नीति
भारत-अमेरिका संबंधों पर टिप्पणी करते हुए सुलिवन ने कहा, “भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी बनाने का लंबा इतिहास रहा है. दोनों पक्षों में सहमति थी कि यह रिश्ता भविष्य की दिशा तय करेगा. लेकिन ट्रंप द्वारा लगाए गए असामान्य रूप से ऊंचे टैरिफ ने नई दिल्ली को असमंजस में डाल दिया है. अब भारतीय नेतृत्व को चीन के साथ संतुलन साधने की बात करनी पड़ रही है.”
टैरिफ का असर भारत के प्रमुख सेक्टर्स पर गहरा संकट
27 अगस्त से लागू किए गए इस टैरिफ का असर भारत के वस्त्र, आभूषण और मशीनरी जैसे उद्योगों पर गंभीर रूप से पड़ सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति से न केवल भारत का निर्यात प्रभावित होगा, बल्कि देश के लाखों रोजगार भी संकट में आ सकते हैं.ट्रंप प्रशासन की ओर से दावा किया गया है कि यह कदम रूस से सस्ते तेल की भारत द्वारा जारी खरीदारी के जवाब में लिया गया है. लेकिन यह तर्क व्यापारिक हलकों को संतोषजनक नहीं लग रहा.
व्यक्तिगत नाराज़गी भी बनी वजह?
वित्तीय सेवा कंपनी जेफरीज की हालिया रिपोर्ट ने इस टैरिफ के पीछे की वजहों पर नया सवाल खड़ा कर दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत पर व्यापारिक दंड लगाने के पीछे ट्रंप की "व्यक्तिगत नाराज़गी" भी बड़ी वजह रही है. रिपोर्ट में बताया गया है कि मई महीने में भारत और पाकिस्तान के बीच जब सीमित सैन्य तनाव हुआ था, तब ट्रंप मध्यस्थता करना चाहते थे, लेकिन भारत ने साफ तौर पर मना कर दिया. इसके अलावा, भारत का कृषि क्षेत्र भी व्यापार वार्ता में बड़ी रुकावट बनकर सामने आया है. जेफरीज के अनुसार, कोई भी भारतीय सरकार इस सेक्टर को आयात के लिए नहीं खोलना चाहती क्योंकि इससे करोड़ों किसानों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है.
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