हिंद महासागर के रणनीतिक लिहाज से बेहद अहम माने जाने वाले डिएगो गार्सिया द्वीप पर अमेरिका ने अपने लड़ाकू विमानों की तैनाती बढ़ा दी है. यहां अब F-15E स्ट्राइक ईगल फाइटर जेट्स की संख्या चार से बढ़ाकर छह कर दी गई है. यह कदम अमेरिका की ईरान और यमन के हूती विद्रोहियों के साथ जारी बढ़ते तनाव के बीच उठाया गया है.
क्यों बढ़ाई गई है तैनाती?
अमेरिकी रक्षा सूत्रों के मुताबिक, यह तैनाती भारत के खिलाफ नहीं, बल्कि डिएगो गार्सिया बेस की सुरक्षा और वहां तैनात बी-52 बमवर्षक विमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के मकसद से की गई है. ईरान से उत्पन्न खतरे और यमन में अमेरिकी हवाई हमलों के मद्देनज़र इस द्वीप की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है. गौरतलब है कि इससे पहले इस बेस पर बी-2 स्टील्थ बमवर्षक तैनात थे, जिन्हें अब बी-52 से बदला गया है. इन विमानों के साथ अब F-15E जैसे बहुआयामी लड़ाकू विमान भी मौजूद हैं जो हवाई सुरक्षा से लेकर ग्राउंड अटैक तक में सक्षम हैं.
कहां से आए हैं ये लड़ाकू विमान?
रक्षा मामलों पर नजर रखने वाली वेबसाइट 'द वार जोन' के अनुसार, ये F-15E जेट्स जापान के काडेना एयर बेस से भेजे गए हैं, जो डिएगो गार्सिया से लगभग 7081 किमी दूर है. इन विमानों को वहां भेजने से पहले 336वें फाइटर स्क्वाड्रन को अमेरिका के सेमौर जॉनसन एयर फोर्स बेस, उत्तरी केरोलिना से जापान स्थानांतरित किया गया था.
डिएगो गार्सिया का सामरिक महत्व
भारत के केरल तट से करीब 1800 किमी दूर स्थित डिएगो गार्सिया, अमेरिका के लिए एक सुपर-स्ट्रैटेजिक सैन्य बेस है. यह न केवल वायु सेना बल्कि अमेरिकी नौसेना और स्पेस फोर्स की गतिविधियों का भी केंद्र है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ईरान या उसके समर्थक हूती विद्रोही इस बेस को खतरे में डालने की कोशिश करते हैं, तो अमेरिका की यह तैनाती उन्हें तत्काल जवाब देने में सक्षम होगी.
अभी कितनी सैन्य मौजूदगी है?
फिलहाल डिएगो गार्सिया में 6 F-15E स्ट्राइक ईगल फाइटर जेट्स, 4 बी-52 बमवर्षक विमान, 3 KC-135 ईंधन टैंकर विमान, 1 C-17 मालवाहक विमान
तैनात हैं. इस तरह, यह बेस किसी भी उग्र स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है.
भारत के लिए क्या मायने हैं?
भले ही यह तैनाती सीधे तौर पर भारत के खिलाफ नहीं है, लेकिन भारत के लिए यह घटनाक्रम अहम है क्योंकि डिएगो गार्सिया उसकी समुद्री सीमा के बेहद करीब है. ऐसे में हिंद महासागर में अमेरिका की बढ़ती सैन्य मौजूदगी क्षेत्रीय भू-राजनीति और समुद्री सुरक्षा पर असर डाल सकती है.
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