ताइवान की जंग में अमेरिका अकेला! ऑस्ट्रेलिया ने किया साथ देने से इनकार, क्या चीन का सामना कर पाएंगे ट्रंप?

    चीन की आक्रामकता दिन-ब-दिन तेज हो रही है, दूसरी तरफ अमेरिका को अपने सबसे करीबी सहयोगियों से भी ठोस समर्थन नहीं मिल रहा.

    America against Taiwan Australia refuses to support Trump China
    ट्रंप-जिनपिंग | Photo: AI

    चीन की आक्रामकता दिन-ब-दिन तेज हो रही है, दूसरी तरफ अमेरिका को अपने सबसे करीबी सहयोगियों से भी ठोस समर्थन नहीं मिल रहा. ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच संभावित जंग के बीच अब ऑस्ट्रेलिया ने वॉशिंगटन का साथ देने से हाथ खींच लिया है. ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री पैट कोनरोय ने साफ शब्दों में कह दिया कि ताइवान को लेकर चीन से युद्ध छिड़ा तो ऑस्ट्रेलिया अपनी सेना भेजने का कोई वादा अभी नहीं कर सकता.

    यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच AUKUS डील को लेकर पहले से ही तनाव चल रहा है. AUKUS, यानी ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका के बीच वो रक्षा समझौता, जिसमें अमेरिका को ऑस्ट्रेलिया को न्यूक्लियर पनडुब्बी तकनीक देनी थी. लेकिन इस डील पर न तो कोई ठोस डिलीवरी हुई है और न ही कोई भरोसेमंद टाइमलाइन. उल्टा अमेरिका खुद इस डील को खींचता नजर आ रहा है और अब ऑस्ट्रेलिया ने भी साफ कर दिया है कि वो अमेरिकी रणनीति का "शरीक भर" नहीं बनेगा.

    ऑस्ट्रेलिया युद्ध के पक्ष में नहीं

    दिलचस्प बात यह है कि ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ इस समय चीन के दौरे पर हैं. वहीं से उन्होंने संकेत दिया कि अमेरिका का बार-बार गारंटी मांगना और सैन्य गठजोड़ों में ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीद करना कोई स्थायी रणनीति नहीं हो सकती. उन्होंने न तो चीन के खिलाफ कोई तीखा रुख अपनाया और न ही अमेरिका को किसी मदद का भरोसा दिया. उल्टा उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया इस पूरे क्षेत्र में "शांति और स्थिरता" चाहता है — यानी साफ इशारा कि ऑस्ट्रेलिया युद्ध के पक्ष में नहीं है.

    वाशिंगटन पोस्ट और फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट्स बताती हैं कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया के अलावा जापान से भी सुरक्षा की गारंटी मांग रहा है. पेंटागन के अधिकारियों ने यह प्रस्ताव रखा है कि अगर ताइवान पर चीन हमला करता है, तो अमेरिका के साथ खड़े होने की प्रतिबद्धता जताई जाए. लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने फिलहाल इससे दूरी बना ली है और यह साफ कर दिया है कि कोई भी फैसला तब की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा.

    अमेरिका के साथ खड़े होने से हिचक रहा ऑस्ट्रेलिया

    यह घटना सिर्फ अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के रिश्तों पर असर नहीं डालती, बल्कि पूरे क्वॉड (QUAD) समूह पर सवाल खड़े कर देती है. QUAD — यानी अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया का वह सैन्य-सामरिक गठजोड़ जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तारवाद को रोकने के लिए बना था. अगर ऑस्ट्रेलिया अब युद्ध की स्थिति में अमेरिका के साथ खड़े होने से हिचक रहा है, तो यह क्वॉड की सामूहिक ताकत और उसकी रणनीतिक धार को कमजोर करता है.

    दरअसल, ऑस्ट्रेलिया खुद भी एक भू-राजनीतिक दुविधा में फंसा है. एक तरफ अमेरिका है जो ट्रंप के नेतृत्व में अब ट्रेड टैरिफ और एकतरफा फैसलों से अपने ही सहयोगियों को असहज कर रहा है. दूसरी तरफ चीन है — आर्थिक रूप से ताकतवर, सैन्य रूप से आक्रामक और ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर भी. ऐसे में ऑस्ट्रेलियाई पीएम अल्बनीज़ की चीन यात्रा को संतुलन साधने की कोशिश माना जा रहा है, जिसमें वो चीन को नाराज़ भी नहीं करना चाहते और अमेरिका से पूरी तरह दूरी भी नहीं बनाना चाहते.

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