अफगानिस्तान का जहाज पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट क्यों पहुंचा? चीन के दबाव का असर या कुछ और

    अफगानिस्तान का एक और मालवाहक जहाज पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर आकर रुका. इस जहाज में 20,000 टन डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) उर्वरक लदा हुआ था.

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    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ता आर्थिक सहयोग अब ज़मीनी हकीकत बनता जा रहा है. हाल ही में अफगानिस्तान का एक और मालवाहक जहाज पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर आकर रुका. इस जहाज में 20,000 टन डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) उर्वरक लदा हुआ था, जिसे आगे समुद्री रास्ते से निर्यात किया जाएगा. यह घटनाक्रम इस ओर इशारा करता है कि ग्वादर पोर्ट अब अफगानिस्तान के लिए एक वैकल्पिक और रणनीतिक व्यापारिक मार्ग बनता जा रहा है.

    चीन की मध्यस्थता से बदले समीकरण

    बीते कुछ महीनों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संबंधों में तल्खी देखने को मिली थी. पाकिस्तानी आरोप थे कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार आतंकी संगठनों को पनाह दे रही है जो पाकिस्तान में हमले कर रहे हैं. अफगानिस्तान ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी थी.

    इसी तनाव के बीच तालिबान का रुझान भारत की ओर बढ़ने लगा, जिससे बीजिंग को चिंता हुई. इस तनाव को कम करने के लिए चीन ने मई में एक कूटनीतिक पहल करते हुए पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों को बीजिंग बुलाया. वहां हुई बातचीत में चीन ने दोनों देशों से रिश्ते सुधारने का दबाव बनाया, और उसी का परिणाम अब दिखने लगा है.

    अफगानिस्तान के लिए ग्वादर

    पाकिस्तान के समुद्री मामलों के मंत्री मोहम्मद जुनैद अनवर चौधरी ने इस घटनाक्रम को "दोनों देशों के आर्थिक संबंधों के लिए बड़ी सफलता" करार दिया है. उन्होंने कहा कि ग्वादर को अफगानिस्तान के लिए एक "रणनीतिक वाणिज्यिक एंट्री गेट" के रूप में विकसित किया जा रहा है. इससे न सिर्फ अफगानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुंच मिलेगी, बल्कि पाकिस्तान को भी ट्रांजिट व्यापार से आर्थिक लाभ होगा.

    CPEC और चीन की भूमिका

    ग्वादर पोर्ट चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का अहम हिस्सा है. अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए, ग्वादर उसके लिए समुद्री व्यापार का सबसे निकटतम और व्यावहारिक रास्ता बन सकता है. विश्लेषकों का मानना है कि अगर अफगानिस्तान ग्वादर पोर्ट का नियमित उपयोग करता है, तो यह न केवल उसकी अर्थव्यवस्था को गति देगा, बल्कि पाकिस्तान की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और कूटनीतिक ताकत भी बढ़ेगी.

    राजनीतिक से रणनीतिक बदलाव की ओर

    जहां पहले पाकिस्तान-तालिबान संबंध सुरक्षा मुद्दों और आपसी अविश्वास से ग्रस्त थे, वहीं अब दोनों देश आर्थिक लाभ के साझा मंच पर एक साथ आते दिखाई दे रहे हैं. इसमें चीन की भूमिका एक शांतिदूत और रणनीतिक साझेदार के रूप में रही है, जो भारत की क्षेत्रीय भूमिका को सीमित करने की कोशिशों का हिस्सा भी मानी जा रही है.

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