काबुल: दुनिया की राजनीति जितनी जटिल होती जा रही है, उतनी ही तल्ख़ ज़ुबानें और उंगलियां उठ रही हैं. हाल ही में ऐसा ही एक घटनाक्रम सामने आया जब अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पाकिस्तान को खुली चेतावनी दे दी. अफगान तालिबान का कहना है कि पाकिस्तान अपनी हर समस्या का ठीकरा अफगानिस्तान पर फोड़ना बंद करे, नहीं तो इसका अंजाम गंभीर हो सकता है.
इस तीखे बयान के बाद दोनों देशों के बीच तनाव और भी अधिक बढ़ने की आशंका जताई जा रही है. तालिबान ने दो टूक कह दिया है कि अब हम चुप नहीं बैठेंगे, अगर पाकिस्तान ने भड़काऊ भाषा और अफगान सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगाने बंद नहीं किए तो यह रिश्तों के लिए खतरनाक साबित होगा.
तालिबान का गुस्सा क्यों फूटा?
तालिबान सरकार के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने हाल ही में एक इंटरव्यू में पाकिस्तानी सरकार और सेना के रवैये को लेकर नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में जब कोई आतंकी हमला होता है, तो सबसे पहले उंगली अफगानिस्तान की ओर उठा दी जाती है. यह रवैया केवल रिश्तों को खराब करने का काम कर रहा है.
पाकिस्तान का आरोप है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को अफगानिस्तान में पनाह मिल रही है और वहीं से वे पाकिस्तान में हमलों की साजिशें रचते हैं. लेकिन तालिबान ने साफ कर दिया कि उनके देश की जमीन से पाकिस्तान के खिलाफ कोई साजिश नहीं रची जा रही और अगर TTP के खिलाफ कोई सबूत है तो बातचीत के जरिए साझा किया जाना चाहिए.
"युद्धोन्मादी भाषा से कुछ हासिल नहीं होगा"
जबीउल्लाह मुजाहिद का यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान के कई वरिष्ठ नेता तालिबान के खिलाफ कड़ी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं. हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने तालिबान को सीधी चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर अफगान सरकार TTP का समर्थन जारी रखती है तो पाकिस्तान काबुल से अपने रिश्ते खत्म कर सकता है.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए तालिबान ने कहा कि पाकिस्तान को ‘युद्धोन्मादी भाषा’ बंद करनी चाहिए क्योंकि यह न तो शांति लाएगी और न ही आतंकवाद को खत्म करने में मदद करेगी. इसके बजाय, आपसी समन्वय और संवाद की जरूरत है ताकि दोनों देश मिलकर खतरों का सामना कर सकें.
हमें बदनाम करना बंद करो, अपनी जिम्मेदारी निभाओ
तालिबान का कहना है कि पाकिस्तान में उग्रवाद और आतंकवाद कोई नई चीज़ नहीं है. ये घटनाएं कई सालों से होती आ रही हैं और इसके पीछे केवल बाहरी ताकतें नहीं, बल्कि आंतरिक खामियां भी जिम्मेदार हैं. अफगान सरकार ने पाकिस्तान से अपील की कि वह केवल आरोप लगाने के बजाय सुरक्षा व्यवस्था मज़बूत करे और खुफिया जानकारी साझा करे ताकि दोनों देश एक साथ इस खतरे से निपट सकें.
तालिबान का यह भी कहना है कि वे शांति चाहते हैं, लेकिन पाकिस्तान को भी इसमें दिलचस्पी दिखानी होगी. केवल मीडिया में बयानबाज़ी करने से न तो आतंकवाद रुकेगा और न ही सीमा पार सहयोग बढ़ेगा.
अफगानिस्तान या TTP, एक को चुनो: पाकिस्तान
पाकिस्तान की ओर से तालिबान पर लगातार यह दबाव बनाया जा रहा है कि उसे या तो इस्लामाबाद का साथ देना होगा या फिर TTP का. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी साफ शब्दों में कहा था कि तालिबान को तय करना होगा कि वह किसके साथ खड़ा है.
पाकिस्तान का मानना है कि जब से 2021 में तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया है, तब से उसके देश में खासकर खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे संवेदनशील इलाकों में हिंसा और हमले बढ़ गए हैं. इन हमलों का जिम्मेदार पाकिस्तान टीटीपी को मानता है, और उसका दावा है कि TTP की कमान अफगानिस्तान में बैठे नेताओं के पास है.
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