'ये समाज दिमाग और आत्मा से मरा हुआ है'-  स्वरा भास्कर का फिल्म ‘छावा’ और महाकुंभ पर तंज, पैदा हुआ विवाद

स्वरा ने लिखा- लोग 500 साल पहले हिंदुओं पर हुए अत्याचारों को काल्पनिक फिल्मों के जरिए देखकर क्रोधित हो रहे हैं, लेकिन महाकुंभ में खराब प्रबंधन से हुई भगदड़ में मारे गए लोगों को लेकर कोई गुस्सा नहीं दिखा रहे.

'ये समाज दिमाग और आत्मा से मरा हुआ है'-  स्वरा भास्कर का फिल्म ‘छावा’ और महाकुंभ पर तंज, पैदा हुआ विवाद
फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर | Photo- Instgram

नई दिल्ली : बॉलीवुड अभिनेत्री स्वरा भास्कर एक बार फिर अपने विवादित बयानों को लेकर चर्चा में हैं. इस बार उन्होंने फिल्म ‘छावा’ और महाकुंभ में हुई भगदड़ की घटना को जोड़ते हुए समाज पर कटाक्ष किया है.

उनकी यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसे लेकर लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं.

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‘छावा’ फिल्म पर स्वरा भास्कर की टिप्पणी

विक्की कौशल और रश्मिका मंदाना अभिनीत फिल्म ‘छावा’ इन दिनों सिनेमाघरों में धूम मचा रही है. यह फिल्म छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन की वीरता को दर्शाती है, जिसके कई दृश्य दर्शकों को भावुक कर रहे हैं. फिल्म को लेकर कई लोग सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं, जिनमें से अधिकतर इसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और हिंदू वीरता पर आधारित होने की सराहना कर रहे हैं.

स्वरा भास्कर ने इसी संदर्भ में सोशल मीडिया पर लिखा

"लोग 500 साल पहले हिंदुओं पर हुए अत्याचारों को काल्पनिक फिल्मों के जरिए देखकर क्रोधित हो रहे हैं, लेकिन महाकुंभ में खराब प्रबंधन से हुई भगदड़ में मारे गए लोगों को लेकर कोई गुस्सा नहीं दिखा रहे. वहां के शवों को बुलडोजर से हटाया गया. यह समाज दिमाग और आत्मा से मर चुका है."

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महाकुंभ की घटना से क्यों जोड़ा विवाद?

स्वरा भास्कर ने अपने पोस्ट में 29 जनवरी को प्रयागराज में हुए महाकुंभ में भगदड़ का जिक्र किया. मौनी अमावस्या के स्नान के दौरान भारी भीड़ के कारण भगदड़ मच गई थी, जिसमें कई लोगों की मौत की खबर आई थी. प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए बुलडोजर और अन्य मशीनों का इस्तेमाल किया, जिसे लेकर सोशल मीडिया पर पहले भी बहस हो चुकी है. स्वरा ने इसी घटना को फिल्म ‘छावा’ के प्रति लोगों की संवेदनशीलता से जोड़ते हुए तंज कसा.

सोशल मीडिया पर बंटा रिएक्शन

स्वरा भास्कर के इस बयान पर सोशल मीडिया दो हिस्सों में बंट गया है.

-समर्थकों का कहना है कि स्वरा ने एक गंभीर मुद्दा उठाया है और यह सच है कि लोग ऐतिहासिक फिल्मों पर भावनाएं व्यक्त करते हैं, लेकिन वास्तविक घटनाओं में चुप रहते हैं.

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