मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं से जुड़े यौन उत्पीड़न के दायरे को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि महिला सहकर्मी के बालों पर टिप्पणी करना या उसके सामने गाना गाना अपने आप में 'सेक्सुअल हैरेसमेंट' की श्रेणी में नहीं आता.
यह फैसला HDFC बैंक के एसोसिएट रीजनल मैनेजर विनोद कछावे के खिलाफ दायर यौन उत्पीड़न के मामले में आया, जिन पर एक महिला सहकर्मी ने आरोप लगाए थे.
क्या था मामला?
साल 2022 में पुणे में HDFC बैंक की एक महिला कर्मचारी ने विनोद कछावे के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.
महिला का आरोप था कि:
बैंक की इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (ICC) ने जांच के बाद कछावे को दोषी माना और उन्हें पदावनत (डिमोट) कर दिया.
कछावे ने इस फैसले को इंडस्ट्रियल कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन जुलाई 2024 में कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और उन्हें POSH (महिलाओं के यौन उत्पीड़न रोकथाम) अधिनियम, 2013 के तहत दोषी ठहराया. इसके बाद कछावे ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया.
हाईकोर्ट का फैसला: यह सेक्सुअल हैरेसमेंट नहीं
बॉम्बे हाईकोर्ट ने इंडस्ट्रियल कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि कछावे के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला नहीं बनता.
जस्टिस संदीप मार्ने की बेंच ने कहा:
POSH एक्ट के तहत आता है या नहीं?
कछावे के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि:
हाईकोर्ट ने इन सभी तर्कों को ध्यान में रखते हुए कहा कि यह मामला POSH अधिनियम के तहत नहीं आता.
सेक्सुअल हैरेसमेंट के मामलों पर हाईकोर्ट की स्पष्टता
इस फैसले के बाद कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा को लेकर एक नया दृष्टिकोण सामने आया है. हाईकोर्ट ने संकेत दिया कि किसी भी सामान्य बातचीत या हल्के-फुल्के कमेंट को सीधे यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता, जब तक कि उसमें स्पष्ट रूप से अनुचित या आपत्तिजनक व्यवहार न हो.
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