आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने हाल ही में एक अहम प्रस्ताव पारित किया, जिसमें बांग्लादेश के हिंदू समाज के प्रति एकजुटता और समर्थन व्यक्त किया गया. इस प्रस्ताव में बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे हमलों को राजनीति के रूप में न देखने का आह्वान किया गया, क्योंकि अधिकांश पीड़ित हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हैं. इस प्रस्ताव में कहा गया कि इन हमलों को मजहबी दृष्टिकोण से न देखना और राजनीति के तहत ही समझना सच से मुंह मोड़ने जैसा है. सभा में यह भी मांग की गई कि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) बांग्लादेश में इन हमलों के खिलाफ हस्तक्षेप करे और हिंदू समाज के साथ एकजुटता दिखाए.
पिछले चार सालों में 500 बच्चों को ऑपरेशन की सुविधा
आरएसएस की इस बैठक में यह भी स्पष्ट किया गया कि सामाजिक समस्याओं को हल करने का तरीका केवल सरकार तक ज्ञापन भेजने का नहीं है. संघ का मानना है कि समाज की शक्ति को आधार बनाकर ही समाज के हर सवाल का समाधान किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर संघ ने मध्य प्रदेश के एक गांव का जिक्र किया, जहां बच्चों के हाथ-पैर जुड़े होने के कारण वे सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे थे. संघ ने यहां डॉक्टर्स के साथ मिलकर इन बच्चों के लिए ऑपरेशन की व्यवस्था की और पिछले चार सालों में 500 बच्चों को सामान्य जीवन जीने के लिए ऑपरेशन की सुविधा मुहैया कराई.
इस बैठक में यह भी कहा गया कि बांग्लादेश में हो रही हिंसा केवल हिंदू विरोधी नहीं, बल्कि भारत विरोधी भी है. सभा में इस बात पर जोर दिया गया कि बांग्लादेश में पाकिस्तान और अन्य अंतर्राष्ट्रीय ताकतें हिंदू और भारत के खिलाफ काम कर रही हैं, जिससे मिस ट्रस्ट और घृणा का माहौल बन रहा है.
32 संगठनों के करीब 1480 प्रतिनिधि
यह तीन दिन तक चलने वाली बैठक 21 मार्च से बेंगलुरु में शुरू हुई, जिसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उद्घाटन किया. इस बैठक में संघ से जुड़े 32 संगठनों के करीब 1480 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं. इस बैठक का प्रमुख फोकस दो मुद्दों पर है: पहला बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और उनके लिए भविष्य के उपायों पर चर्चा, और दूसरा संघ की पिछले 100 वर्षों की यात्रा, शताब्दी वर्ष के दौरान की गतिविधियों और भविष्य की योजनाओं पर आधारित प्रस्ताव.
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