Indian Rice Imports: अमेरिका द्वारा भारतीय चावल पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की संभावित घोषणा ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में हलचल जरूर पैदा की है, लेकिन भारतीय निर्यातकों का मानना है कि इसका वास्तविक प्रभाव भारत पर नहीं पड़ेगा. भारतीय राइस एक्सपोर्ट फेडरेशन (IREF) के वाइस प्रेसिडेंट देव गर्ग ने स्पष्ट किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ चेतावनी के बावजूद अमेरिका में भारतीय चावल की लोकप्रियता बनी हुई है और मांग लगातार बढ़ रही है.
देव गर्ग का कहना है कि अमेरिका में भारतीय और दक्षिण एशियाई व्यंजनों की मांग तेज़ी से बढ़ी है, जिसकी वजह से भारतीय किस्मों, खासकर बासमती और लंबी दानों वाले चावलों की खपत बढ़ रही है. उन्होंने बताया कि भारतीय चावल का स्वाद, सुगंध, बनावट और दानों का रंग अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए विशिष्ट विकल्प बन चुके हैं.
#WATCH | Delhi | On US President Donald Trump's statement on Indian Rice export, Vice President of the Indian Rice Exporters Federation, Dev Garg says, "... All the exports of the US market are demand-driven... We have seen that there has been an increasing trend in Indian rice… pic.twitter.com/MdbNN1XI2Z
— ANI (@ANI) December 9, 2025
उनके अनुसार, अमेरिका में उगाया जाने वाला चावल भारतीय किस्मों की पूरी तरह बराबरी नहीं करता, इसलिए अमेरिकी बाजार में भारतीय चावल की जगह कोई वैकल्पिक उत्पाद नहीं बन पाया है. यही वजह है कि आयात शुल्क की चर्चाओं के बावजूद इसकी मांग घटने के बजाय स्थिर बनी हुई है.
टैरिफ लागू होने पर नुक़सान किसे?
देव गर्ग ने कहा कि अमेरिका में पहले से लागू टैरिफ का भारतीय निर्यातकों पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा. न भारतीय किसानों की आय प्रभावित हुई और न ही भारत की तरफ से भेजे जाने वाले चावल की मात्रा में कोई स्पष्ट गिरावट दर्ज हुई.
इसके उलट, उन्होंने बताया कि टैरिफ का असली बोझ अमेरिकी उपभोक्ताओं को झेलना पड़ा. आयात शुल्क बढ़ने से अमेरिकी बाजार में भारतीय चावल महंगा हुआ, जिसके परिणामस्वरूप वहां खाद्य मुद्रास्फीति और बढ़ गई.
गर्ग के शब्दों में, “यह कोई एहसान नहीं है, जो अमेरिकी उपभोक्ता भारत के लिए कर रहे हैं. यह उनकी आवश्यकता है, क्योंकि बाजार में भारतीय चावल का कोई विकल्प मौजूद नहीं है.”
ट्रंप की घोषणा को विशेषज्ञों ने बताया राजनीतिक बयान
अमेरिका में कृषि सब्सिडी पर हुई चर्चा के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय चावल पर नया टैरिफ लगाने का संकेत दिया था. हालाँकि व्यापार विश्लेषकों का मानना है कि इस बयान का स्वरूप राजनीतिक अधिक और नीतिगत कम है.
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने भी कहा कि ट्रंप का बयान चुनावी राजनीति से प्रेरित लगता है और इसे किसी बड़े व्यापारिक फैसले का संकेत मानना जल्दबाज़ी होगा. व्यापार विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि अमेरिका टैरिफ बढ़ाता भी है, तो इसका सीधा प्रभाव अमेरिकी खरीदारों पर पड़ेगा, न कि भारतीय निर्यात पर. भारतीय व्यापार पहले की तरह ही स्थिर रहने की उम्मीद है.
अमेरिकी खरीदार चौथे सबसे बड़े ग्राहक के रूप में उभरे
वित्त वर्ष 2024–25 में भारत ने अमेरिका को बड़ी मात्रा में चावल निर्यात किया. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत ने अमेरिका को:
इन संख्याओं के आधार पर अमेरिका भारत के चावल निर्यात का चौथा सबसे बड़ा बाज़ार बन गया है.
टैरिफ चर्चा के बावजूद भारत का चावल व्यापार सुरक्षित
भारतीय निर्यातकों और विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी राजनीति में होने वाली चर्चाएँ भारतीय चावल के बाजार को प्रभावित नहीं करने वाली हैं. अमेरिका में भारतीय चावल की स्थायी मांग और वैकल्पिक विकल्पों की कमी इसे एक मजबूत बाज़ार बनाए रखती है. इसलिए विशेषज्ञों के मुताबिक, किसी भी अतिरिक्त शुल्क का भार भारतीय किसानों या व्यापारियों पर नहीं, बल्कि अमेरिकी उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा.
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