Aravali Hills: अरावली पर्वत श्रृंखला की परिभाषा और उसके संरक्षण से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला लिया है. सोमवार, 29 दिसंबर 2025 को हुई सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने अपने ही पहले के आदेश के अमल पर फिलहाल रोक लगा दी और इस पूरे मुद्दे पर केंद्र सरकार तथा संबंधित राज्यों को नोटिस जारी किया है.
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ, जिसमें जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं, ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि अरावली क्षेत्र में खनन और पारिस्थितिकी से जुड़े कई अहम सवालों पर दोबारा विचार जरूरी है.
500 मीटर के गैप और नियंत्रित खनन पर सवाल
सुनवाई के दौरान सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि यह गंभीरता से तय किया जाना चाहिए कि अरावली पहाड़ियों के बीच मौजूद 500 मीटर तक के अंतराल (गैप) में नियंत्रित खनन की अनुमति दी जा सकती है या नहीं. यदि ऐसा किया जाता है, तो यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इससे पर्यावरणीय और पारिस्थितिक निरंतरता प्रभावित न हो.
उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर खनन की अनुमति दी जाती है, तो इसके लिए सटीक और सख्त संरचनात्मक मानक तय किए जाने चाहिए, ताकि अरावली पर्वत श्रृंखला की मूल प्रकृति और पारिस्थितिकी सुरक्षित रह सके.
पुराने आदेश पर अस्थायी रोक
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसी महीने 20 दिसंबर को अरावली पहाड़ियों और रेंज की एक समान व वैज्ञानिक परिभाषा को मंजूरी दी थी. साथ ही, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैले अरावली क्षेत्र में विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट आने तक नई खनन लीज जारी करने पर रोक लगा दी गई थी.
अब अदालत ने उसी आदेश के क्रियान्वयन पर अस्थायी रूप से रोक लगाते हुए कहा है कि कई तथ्यों और वैज्ञानिक पहलुओं की दोबारा समीक्षा जरूरी है.
100 मीटर ऊंचाई के मानक पर उठे सवाल
सीजेआई सूर्यकांत ने यह भी कहा कि यह जांचना आवश्यक है कि कुल 12,081 पहाड़ियों में से केवल 1,048 पहाड़ियों का 100 मीटर ऊंचाई के मानदंड पर खरा उतरना क्या वास्तव में तथ्यात्मक और वैज्ञानिक रूप से सही है.
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या इस तरह की पहचान के लिए विस्तृत भूवैज्ञानिक अध्ययन और वैज्ञानिक जांच जरूरी नहीं है. अदालत ने संकेत दिया कि केवल ऊंचाई के आधार पर अरावली की सीमा तय करना विवादास्पद हो सकता है.
उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति का प्रस्ताव
इन सभी पहलुओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति के गठन का प्रस्ताव रखा है. यह समिति अरावली क्षेत्र की परिभाषा, भूगोल, पारिस्थितिकी और खनन से जुड़े मुद्दों का समग्र मूल्यांकन करेगी.
सीजेआई ने कहा कि यह भी जरूरी है कि उन क्षेत्रों की स्पष्ट पहचान की जाए, जिन्हें अरावली क्षेत्र से बाहर रखा जा रहा है. साथ ही यह भी जांच होनी चाहिए कि कहीं ऐसा बहिष्करण अरावली पर्वत श्रृंखला की पारिस्थितिक अखंडता को कमजोर तो नहीं कर रहा और इससे क्षरण का खतरा तो नहीं बढ़ रहा.
केंद्र सरकार की दलील
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी भी समिति के गठन से पहले यह तय करना आवश्यक है कि वह किन-किन क्षेत्रों की जांच करेगी और उसका दायरा क्या होगा.
इस पर सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि जब तक समिति का गठन नहीं हो जाता और वह अपनी सिफारिशें नहीं दे देती, तब तक समिति की सिफारिशों और अदालत के पूर्व निर्देशों को स्थगित रखना जरूरी है. अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 21 जनवरी की तारीख तय की है.
एसजी तुषार मेहता ने यह भी जानकारी दी कि संबंधित राज्यों को आगे किसी भी तरह की नई खनन गतिविधि न करने के संबंध में पहले ही सूचित कर दिया गया है.
याचिकाकर्ताओं की आपत्ति
पूर्व वन संरक्षण अधिकारी आर.पी. बलवान ने भी इस मामले में याचिका दायर की है. उनका कहना है कि अरावली पहाड़ियों को परिभाषित करने के लिए 100 मीटर ऊंचाई का पैमाना अपनाना इस प्राचीन और विशाल पर्वत श्रृंखला के संरक्षण को कमजोर कर सकता है.
उन्होंने तर्क दिया कि अरावली पर्वतमाला गुजरात से लेकर दिल्ली तक फैली हुई है और यह थार रेगिस्तान तथा उत्तरी मैदानों के बीच एक प्राकृतिक दीवार के रूप में काम करती है. ऐसे में इसकी सुरक्षा के लिए अधिक व्यापक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है.
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