क्या तुर्की फिर से उड़ाएगा F-35? एर्दोआन ने दी नई उम्मीद, अमेरिका से खरीदने पर कर रहे विचार

    तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि उनका देश अमेरिकी F-35 स्टील्थ लड़ाकू विमानों को लेकर अब भी उम्मीद लगाए बैठा है.

    Will Türkiye fly F-35 again Erdogan new hope America
    F-35 | Photo: X

    तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि उनका देश अमेरिकी F-35 स्टील्थ लड़ाकू विमानों को लेकर अब भी उम्मीद लगाए बैठा है. यह बयान उन्होंने नाटो शिखर सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात के बाद दिया, और इसके साथ ही उन्होंने एक बार फिर दुनिया को ये संकेत दिया कि तुर्की F-35 प्रोग्राम में वापसी चाहता है.

    "हमने F-35 को नहीं छोड़ा है" — एर्दोआन का बड़ा बयान

    नाटो समिट से लौटते हुए एर्दोआन ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "हमने F-35 को छोड़ने का इरादा नहीं किया है. हमने ट्रंप से इस मुद्दे पर चर्चा की है और तकनीकी स्तर पर बातचीत शुरू हो चुकी है. ईश्वर की इच्छा से इसमें प्रगति होगी."

    तुर्की का कहना है कि वह अब भी इस बहु-प्रतीक्षित कार्यक्रम का हिस्सा बनने का इच्छुक है. अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद तुर्की को उम्मीद है कि वह अपने पुराने सहयोगी से इस मुद्दे पर सहमति बनाने में सफल हो पाएगा.

    पुराना विवाद: S-400 बनाम F-35

    F-35 प्रोग्राम से तुर्की को बाहर करने का मूल कारण उसका रूस से खरीदा गया S-400 एयर डिफेंस सिस्टम था. अमेरिका ने इसे नाटो के लिए सुरक्षा खतरा बताया था और 2019 में तुर्की को F-35 प्रोग्राम से बाहर कर दिया गया था.

    इतना ही नहीं, अमेरिका ने CAATSA (Countering America's Adversaries Through Sanctions Act) के तहत तुर्की के रक्षा क्षेत्र पर प्रतिबंध भी लगा दिए थे. जबकि तुर्की उस वक्त न केवल F-35 का ऑर्डर दे चुका था, बल्कि वह इसके 900 से अधिक पुर्जों का उत्पादन भी कर रहा था.

    ट्रंप से बातचीत के बाद बढ़ी उम्मीद

    अब जब एर्दोआन ने ट्रंप से मुलाकात की है, तो अंकारा को उम्मीद है कि पुराना रिश्ता फिर से बहाल हो सकता है. अमेरिकी राजदूत टॉम बैरक ने भी इशारा दिया है कि साल के अंत तक प्रतिबंधों में ढील संभव है.

    भारत की रणनीतिक चिंता: दोस्त देशों पर असर?

    अगर तुर्की को F-35 विमान मिलते हैं, तो भारत के लिए स्थिति थोड़ी जटिल हो सकती है. कारण यह है कि भारत के चार करीबी साझेदार—इजरायल, ग्रीस, आर्मेनिया और साइप्रस—तुरंत असहज हो सकते हैं.

    • इजरायल को डर है कि तुर्की F-35 की मदद से मध्य पूर्व में उसका सामरिक संतुलन बिगाड़ सकता है.
    • ग्रीस और तुर्की के बीच लंबे समय से द्वीपों और समुद्री सीमाओं को लेकर विवाद चल रहा है.
    • आर्मेनिया पहले से ही अजरबैजान के साथ संघर्ष में उलझा है, जिसमें तुर्की की भूमिका हमेशा पक्षपाती रही है.
    • साइप्रस का एक हिस्सा तुर्की के कब्ज़े में है, और वहां तनाव कभी भी भड़क सकता है.

    इन चारों देशों के साथ भारत के मजबूत रक्षा और कूटनीतिक संबंध हैं. ऐसे में भारत को यह देखना होगा कि तुर्की की F-35 तक दोबारा पहुंच कैसे इसके रणनीतिक हितों को प्रभावित कर सकती है.

    भारत के लिए भी खुला है दरवाज़ा?

    दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका ने हाल ही में भारत को भी अनौपचारिक रूप से F-35 की पेशकश की है, जबकि भारत भी S-400 सिस्टम का उपयोग करता है. इसका मतलब है कि शायद अमेरिका अब F-35 और S-400 की संयुक्त मौजूदगी को लेकर उतना सख्त नहीं रहा.

    कुछ रिपोर्टों में तो यह भी सामने आया है कि अगर तुर्की S-400 को निष्क्रिय कर देता है, तो उसे F-35 बेचे जाने पर विचार हो सकता है. यह सिस्टम या तो अलग किया जा सकता है या अमेरिकी बेस में स्थानांतरित किया जा सकता है.

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