भारत, रूस, चीन... क्या ट्रंप को टक्कर दे पाएगी यह तिकड़ी? अमेरिका के मुकाबले कितने मजबूत हैं ये देश?

    चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का दो दिवसीय शिखर सम्मेलन शुरू हो चुका है.

    Will the trio of India Russia and China be able to compete with Trump
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    नई दिल्ली: चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का दो दिवसीय शिखर सम्मेलन शुरू हो चुका है. इस मंच पर भारत, रूस और चीन के नेता एक साथ मौजूद हैं, और यह मुलाकात ऐसे समय हो रही है जब अमेरिका ने भारत के उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाकर आर्थिक दबाव बढ़ा दिया है.

    इस पृष्ठभूमि में यह सवाल उठता है कि क्या भारत, चीन और रूस की यह तिकड़ी मिलकर अमेरिका की आर्थिक नीतियों का प्रभावी जवाब दे सकती है? और अगर हां, तो क्या इससे वैश्विक आर्थिक शक्ति संतुलन में कोई बड़ा बदलाव आ सकता है?

    तीनों देशों की एकता क्यों बनी सुर्खियां?

    इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात ने काफी ध्यान खींचा. वहीं, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी सम्मेलन में शामिल होने के लिए चीन पहुंच गए हैं. तीनों राष्ट्राध्यक्षों की यह एकजुटता ऐसे समय में सामने आई है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% तक के टैरिफ लागू कर दिए हैं.

    विशेषज्ञों का मानना है कि यह सम्मेलन केवल एक राजनीतिक आयोजन नहीं, बल्कि ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों के खिलाफ एक रणनीतिक प्रतिक्रिया भी है.

    भारत को क्या मिलेगा इस एकता से?

    भारत के लिए यह सम्मेलन एक नए प्रकार के अंतरराष्ट्रीय समीकरण को समझने और उसमें अपनी भूमिका तय करने का अवसर है. जहां एक ओर अमेरिका भारत के लिए अब भी सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, वहीं दूसरी ओर चीन और रूस जैसे पड़ोसी देशों के साथ गहरे व्यापारिक रिश्ते भारत को अधिक लचीलापन दे सकते हैं.

    क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में कदम

    विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब ऐसी रणनीति अपना रहा है जिसमें वह अमेरिका जैसी ताकतों पर अपनी आर्थिक निर्भरता को कम करना चाहता है. इसके बजाय वह अपने क्षेत्रीय सहयोगियों विशेषकर चीन और रूस के साथ मिलकर ऊर्जा, बुनियादी ढांचे, तकनीक और भुगतान प्रणालियों में सहयोग बढ़ाना चाहता है.

    क्या यह अमेरिका का विकल्प बन सकता है?

    भारत अभी भी अमेरिकी बाजार पर गहराई से निर्भर है. लेकिन चीन और रूस के साथ मिलकर भारत बाजार विविधीकरण, ऊर्जा सुरक्षा और भुगतान प्रणाली में डॉलर से हटकर विकल्प खोजने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है.

    तीनों देशों की आर्थिक ताकत कितनी है?

    अगर भारत, चीन और रूस अपनी आर्थिक शक्ति को मिलाएं, तो इनकी सामूहिक ताकत अमेरिका से कम नहीं है.

    कुछ प्रमुख आंकड़े (PPP के अनुसार):

    • कुल GDP: $53.9 ट्रिलियन (दुनिया का लगभग एक-तिहाई उत्पादन)
    • निर्यात: $5 ट्रिलियन से अधिक
    • विदेशी मुद्रा भंडार: $4.7 ट्रिलियन (वैश्विक भंडार का 38%)
    • संयुक्त जनसंख्या: 3.1 अरब (दुनिया की 38% आबादी)
    • सैन्य खर्च: $549 अरब (दुनिया के कुल सैन्य खर्च का 20%)
    • ऊर्जा खपत: वैश्विक कुल का 35%

    विशिष्ट शक्तियां:

    चीन: मैन्युफैक्चरिंग का वैश्विक केंद्र

    रूस: ऊर्जा निर्यात में महारथी

    भारत: तेज़ी से बढ़ती सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था

    यह आंकड़े दिखाते हैं कि ये देश यदि सहयोग करें, तो दुनिया की एकध्रुवीय शक्ति-संरचना को चुनौती दे सकते हैं.

    ट्रंप के टैरिफ का असर: भारत के लिए खतरा या मौका?

    डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ से भारत को बड़ा झटका लगा है. खासतौर पर कृषि, टेक्सटाइल, केमिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों पर असर पड़ा है.

    2024 के व्यापार संबंध (USTR डेटा के अनुसार):

    • भारत का अमेरिका को निर्यात: $77.5 अरब
    • भारत-अमेरिका कुल व्यापार: $212.3 अरब (2023 से 8.3% ज्यादा)

    यानी अमेरिका भारत के लिए अब भी सबसे बड़ा और अहम व्यापारिक साझेदार बना हुआ है. लेकिन चीन और रूस के साथ बढ़ते रिश्ते भारत को भविष्य के लिए मजबूत विकल्प दे सकते हैं.

    साझेदारी के फायदे और सीमाएं

    फायदे:

    • भू-राजनीतिक संतुलन: अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रभाव को संतुलित करने की शक्ति.
    • डॉलर की निर्भरता में कमी: वैकल्पिक भुगतान प्रणाली का प्रयोग.
    • ऊर्जा सुरक्षा: रूस से सस्ती दरों पर ऊर्जा.
    • मैन्युफैक्चरिंग और निवेश: चीन से औद्योगिक सहयोग.

    सीमाएं:

    • चीन के साथ भरोसे की कमी: सीमा विवाद और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता.
    • रूस का अनिश्चित आर्थिक भविष्य: प्रतिबंधों और यूक्रेन युद्ध के चलते अस्थिरता.
    • अमेरिकी बाजार की अपरिहार्यता: भारत के लिए निर्यात का सबसे बड़ा स्रोत.

    क्या यह तिकड़ी अमेरिका को चुनौती दे सकती है?

    अगर भारत, रूस और चीन एक संगठित रणनीति के साथ आगे बढ़ते हैं तो वे बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर दुनिया को मोड़ सकते हैं. इससे पश्चिमी देशों द्वारा नियंत्रित मौद्रिक नीतियों और व्यापार मॉडल को चुनौती मिल सकती है.

    यानी डॉलर का प्रभुत्व, तकनीकी नियंत्रण और वैश्विक नियमों का निर्धारण अब केवल अमेरिका और यूरोप के हाथ में नहीं रहेगा.

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