चीन बॉर्डर के पास क्यों लैंड करेगा राफेल? जिनपिंग की बढ़ी टेंशन, जानिए क्या है पूरा मामला

    भारत अब एक ऐसा कदम उठा रहा है जो सामरिक तौर पर गेमचेंजर साबित हो सकता है.

    Why Rafale land near China border Jinping
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    चीन को जवाब देने का वक्त अब भारत टाल नहीं रहा. हिमालय की ऊंचाइयों पर, जहां तापमान -20 डिग्री तक चला जाता है और हवा में ऑक्सीजन भी कम पड़ जाती है, वहीं भारत अब एक ऐसा कदम उठा रहा है जो सामरिक तौर पर गेमचेंजर साबित हो सकता है: न्योमा एयरबेस.

    कहानी की शुरुआत

    लद्दाख के उस इलाके में जहां अब तक केवल जवानों के बूटों की आवाज़ और बर्फीली हवाएं सुनाई देती थीं, वहां जल्द ही राफेल और सुखोई की गर्जना गूंजेगी. यह वही इलाका है, जो चीन की नज़र में लंबे समय से खटकता रहा है - लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) से बस 30 किलोमीटर दूर. बीते कुछ वर्षों में चीन ने अपनी सीमाओं पर तेज़ी से सैन्य ढांचा खड़ा किया है - चौड़ी सड़कें, रनवे, बंकर, सैनिकों की तैनाती. लेकिन अब भारत पीछे नहीं रहने वाला.

    न्योमा: सिर्फ एक हवाई पट्टी नहीं, बल्कि रणनीतिक ठिकाना

    न्योमा एयरबेस कोई साधारण प्रोजेक्ट नहीं है. यह समुद्र तल से 13,700 फीट की ऊंचाई पर है, जहां हर ईंट को जमाने में मौसम से जंग लड़नी पड़ती है. लेकिन अब यहां काम अंतिम चरण में है. अक्टूबर 2025 से यह एयरबेस पूरी तरह ऑपरेशनल हो जाएगा.

    यह लद्दाख में वायुसेना का चौथा बड़ा ठिकाना होगा — पहले से मौजूद लेह, कारगिल और थोइस के बाद. इस नए बेस पर न सिर्फ लड़ाकू विमानों की लैंडिंग और टेकऑफ की सुविधा होगी, बल्कि रडार, बैरक और हल्की मरम्मत की व्यवस्था भी होगी.

    5 साल में एक और क्रांति

    सिर्फ न्योमा ही नहीं. आने वाले पांच वर्षों में भारतीय सेना का लक्ष्य है कि LAC के पास कोई भी पोस्ट ऐसी न रहे जहां सड़क से न पहुंचा जा सके. आज भी कई चौकियां ऐसी हैं जहां जवानों को पैदल या हेलिकॉप्टर से ही पहुंचना होता है. लेकिन अब बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (BRO) हर चौकी तक पक्की सड़क पहुंचा रहा है. पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक, हर घाटी, हर मोर्चा अब रोडमैप पर है.

    अरुणाचल में नई सड़कों की बुनियाद

    BRO के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल रघु श्रीनिवासन ने साफ कहा — अरुणाचल प्रदेश की घाटियों को जोड़ने वाले दो बड़े हाईवे निर्माणाधीन हैं. मौसम हो या टेढ़ा-मेढ़ा भूगोल, अब पीछे हटने का सवाल नहीं. साथ ही, शिंकुन ला टनल का निर्माण भी तेज़ी से चल रहा है. यह दुनिया की सबसे ऊंची सड़क सुरंग होगी, जो लद्दाख को पूरे साल हिमाचल से जोड़ेगी. यह सुरंग रणनीतिक लिहाज से उतनी ही अहम होगी, जितनी 1962 में खोई हुई जमीन की याद दिलाती है.

    चीन को जवाब उसी की भाषा में

    असल बात ये है कि चीन ने बीते एक दशक में अपनी सीमाओं पर सड़कों और हवाई पट्टियों का जाल बिछा दिया है. भारत के लिए अब विकल्प एक ही है — मुकाबला उसी स्तर पर करना. न्योमा एयरबेस और सड़कों का ये नेटवर्क भारत को सिर्फ सुरक्षित नहीं करेगा, बल्कि एक कड़ा संदेश भी देगा — अब कोई पीछे हटने वाला नहीं है.

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