क्यों 1 जनवरी को ही मनाया जाता है नया साल? क्या है इसके पीछे का इतिहास; कैसे हुई शुरुआत

    Happy New Year 2026: जब भी कैलेंडर पर 1 जनवरी की तारीख आती है, पूरी दुनिया जश्न में डूब जाती है. आतिशबाज़ी, शुभकामनाएं और नई शुरुआत का उत्साह हर तरफ दिखाई देता है.

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    Happy New Year 2026: जब भी कैलेंडर पर 1 जनवरी की तारीख आती है, पूरी दुनिया जश्न में डूब जाती है. आतिशबाज़ी, शुभकामनाएं और नई शुरुआत का उत्साह हर तरफ दिखाई देता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर 1 जनवरी को ही साल की शुरुआत क्यों मानी जाती है? हैरानी की बात यह है कि यह परंपरा हमेशा से नहीं थी, बल्कि इसके पीछे सदियों का इतिहास, सत्ता के फैसले और कैलेंडर में हुए बड़े बदलाव छिपे हैं.

    प्राचीन रोम में साल की शुरुआत आज की तरह जनवरी से नहीं, बल्कि मार्च से होती थी. शुरुआती रोमन कैलेंडर में केवल 10 महीने शामिल थे और मार्च को पहला महीना माना जाता था. उस दौर में खेती, मौसम और युद्ध अभियानों की शुरुआत भी इसी समय से जुड़ी होती थी. इसलिए धार्मिक उत्सव, सरकारी कामकाज और सैन्य गतिविधियां मार्च आधारित कैलेंडर के अनुसार ही तय की जाती थीं.

    जनवरी-फरवरी की हुई एंट्री

    करीब 700 ईसा पूर्व, रोम के राजा नूमा पोम्पिलियस ने कैलेंडर में बड़ा बदलाव किया. उन्होंने जनवरी और फरवरी को जोड़ते हुए साल को 12 महीनों का रूप दिया. इसके कुछ समय बाद, 153 ईसा पूर्व में रोमन सीनेट ने एक अहम फैसला लिया और राजनीतिक वर्ष की शुरुआत 1 जनवरी से कर दी. इसका मकसद यह था कि नए चुने गए अधिकारी समय पर पद संभाल सकें और सैन्य योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू किया जा सके.

    जूलियस सीज़र और कैलेंडर सुधार

    45 ईसा पूर्व में रोमन सम्राट जूलियस सीज़र ने जूलियन कैलेंडर लागू किया, जिसने समय गणना को और ज्यादा वैज्ञानिक बनाया. इस कैलेंडर ने सौर वर्ष के साथ तालमेल बैठाया और 1 जनवरी को आधिकारिक रूप से साल का पहला दिन घोषित कर दिया. यह दिन रोमन देवता ‘जानूस’ को समर्पित था, जिन्हें नए आरंभ और द्वारों का देवता माना जाता है. इसी सुधार के तहत लीप ईयर की अवधारणा भी सामने आई.

    मध्ययुग में बदली परंपरा

    रोमन साम्राज्य के पतन के बाद यूरोप में धार्मिक प्रभाव बढ़ा. मध्ययुगीन ईसाई नेताओं ने 1 जनवरी को एक मूर्तिपूजक परंपरा मानते हुए इसे अपनाने से परहेज किया. कई यूरोपीय क्षेत्रों में लोग 25 दिसंबर या 25 मार्च को नया साल मनाने लगे. इस कारण लंबे समय तक अलग-अलग जगहों पर नए साल की तारीख अलग-अलग रही.

    ग्रेगोरियन कैलेंडर से लौटी 1 जनवरी

    16वीं सदी में कैलेंडर की गड़बड़ियों को सुधारने के लिए पोप ग्रेगरी XIII ने 1582 में ग्रेगोरियन कैलेंडर लागू किया. इस सुधार के साथ 1 जनवरी को फिर से आधिकारिक नए साल के रूप में मान्यता मिली. कैथोलिक देशों ने इसे तुरंत अपनाया, जबकि ब्रिटेन ने 1752 में, रूस ने 1918 में और ग्रीस ने 1923 में इस कैलेंडर को स्वीकार किया.

    आज भी हर जगह एक जैसा नहीं नया साल

    हालांकि आज 1 जनवरी को दुनियाभर में नया साल मनाया जाता है, लेकिन कई संस्कृतियां अब भी अपने पारंपरिक कैलेंडर का पालन करती हैं. चीन में चंद्र कैलेंडर के अनुसार नया साल आता है, भारत में कई जगह चैत्र प्रतिपदा से नववर्ष शुरू होता है, जबकि इस्लामी कैलेंडर में मोहर्रम से नया साल माना जाता है. इस तरह 1 जनवरी को नया साल मनाने की परंपरा किसी एक दिन का फैसला नहीं, बल्कि इतिहास, धर्म और समय-समय पर हुए सुधारों का नतीजा है—जो आज एक वैश्विक उत्सव का रूप ले चुकी है.

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