अमेरिका के 'डबल स्टैंडर्ड' की खुली पोल, पूर्व अमेरिकी राजदूत की वायरल VIDEO से ट्रंप के मुंह पर पड़ा तमाचा!

    अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अमेरिका एक बार फिर अपने ही बयानों के जाल में उलझता दिखाई दे रहा है. डोनाल्ड ट्रंप के ताजा बयान ने अमेरिका की कथनी और करनी के फर्क को बेपर्दा कर दिया है. ट्रंप ने भारत को रूसी तेल आयात को लेकर चेतावनी दी है और टैरिफ बढ़ाने की धमकी भी दी है.

    why inida bought oil from america former anvoy told video viral
    Image Source: Social Media

    अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अमेरिका एक बार फिर अपने ही बयानों के जाल में उलझता दिखाई दे रहा है. डोनाल्ड ट्रंप के ताजा बयान ने अमेरिका की कथनी और करनी के फर्क को बेपर्दा कर दिया है. ट्रंप ने भारत को रूसी तेल आयात को लेकर चेतावनी दी है और टैरिफ बढ़ाने की धमकी भी दी है, लेकिन सोशल मीडिया पर सामने आया एक पुराना वीडियो अमेरिका की पूर्व नीति को साफ कर देता है. इसमें उनके ही प्रतिनिधि भारत की इसी नीति की तारीफ करते नजर आ रहे हैं.

    2024 में भारत में अमेरिका के राजदूत रहे एरिक गार्सेटी का एक वीडियो इन दिनों इंटरनेट पर छाया हुआ है. इस वीडियो में गार्सेटी साफ-साफ कहते हैं कि भारत ने रूस से तेल खरीदा क्योंकि अमेरिका ने यही चाहा था – बशर्ते वो तेल तय मूल्य सीमा पर खरीदा जाए. उनका यह बयान उस नीति की झलक देता है जिसे ट्रंप अब खुद खारिज कर रहे हैं.

    पहले सराहना, अब धमकी  किसे माने भारत?

    गार्सेटी ने कहा था, "भारत का रूसी तेल खरीदना न कोई उल्लंघन था, न कोई गड़बड़ी. यह तो अमेरिका की ऊर्जा नीति का हिस्सा था. हम नहीं चाहते थे कि वैश्विक बाजार में तेल के दाम आसमान छूने लगें, और भारत ने इसमें अहम भूमिका निभाई."

    विदेश मंत्रालय की दो टूक  भ्रम फैलाना बंद करे अमेरिका

    ट्रंप की बार-बार दी जा रही धमकियों के बीच भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस बार सीधी प्रतिक्रिया दी है. मंत्रालय के एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा भारत की तेल नीति पर सवाल उठाना पूरी तरह से दोगलापन है. बयान में दो टूक कहा गया कि, "यूक्रेन संकट के बाद जब पारंपरिक तेल आपूर्ति शृंखलाएं बाधित हो गईं, तब भारत ने अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए विकल्प तलाशे. रूस से आयात उसी रणनीति का हिस्सा था. और यह अमेरिका की सहमति से ही हुआ था, जिसने उस वक्त वैश्विक ऊर्जा बाजार की स्थिरता के लिए भारत के फैसले को समर्थन दिया था."

    ट्रंप की धमकियों का असली मकसद क्या?

    विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की हालिया धमकियां चुनावी राजनीति का हिस्सा हो सकती हैं. घरेलू दबाव और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर अमेरिका की गिरती साख ने ट्रंप को ऐसा रवैया अपनाने पर मजबूर किया है. लेकिन भारत अब इन बातों में उलझने वाला नहीं है. नई दिल्ली की नीति स्पष्ट है. देशहित सर्वोपरि. भारत न तो किसी के दबाव में फैसले लेता है और न ही इमोशनल होकर रणनीतिक गठबंधन करता है. यही वजह है कि जब अमेरिका ने F-35 जैसे जेट्स को बेचने का प्रस्ताव रखा, तब भी भारत ने सोच-समझकर फैसला लिया.

    अमेरिका की पुरानी चाल दोहराई जा रही है?


    यह कोई पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने अपने पुराने बयानों से पलटी मारी हो. पहले रूस से तेल खरीद को हरी झंडी दिखाना, और अब उसी नीति को गलत ठहराना – यही अमेरिका की 'डिप्लोमैटिक हाइपोक्रेसी' है. लेकिन आज का भारत पहले से कहीं ज्यादा आत्मनिर्भर, रणनीतिक रूप से सजग और अपने फैसलों में स्पष्ट है. भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए अमेरिका से अनुमति नहीं लेता, और न ही किसी की चेतावनियों से डरता है.

    यह भी पढ़ें: किंजल हाइपरसोनिक मिसाइल, जिसने उड़ा दी जेलेंस्की की रातों की नींदे; जानें ताकत