पाकिस्तान का डंकी बिजनेस, गधों के भरोसे चल रहा शहबाज का देश, चीन क्यों देता है मुंहमांगी कीमत? जानें वजह

    पाकिस्तान में गधों की आबादी साल दर साल बढ़ रही है. 2023-24 में यह संख्या बढ़कर 5.9 मिलियन (59 लाख) हो गई है, जो पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 1.72% अधिक है. ये वृद्धि सिर्फ एक पशु गणना नहीं, बल्कि इस बात का संकेत है कि गधों की उपयोगिता लगातार बढ़ रही है.

    Why does China buy donkeys from Pakistan know the reason
    Meta AI

    जब बात किसी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने की होती है, तो शायद ही किसी के दिमाग में "गधा" सबसे पहले आए. लेकिन पाकिस्तान की मौजूदा आर्थिक हकीकत में गधे सिर्फ एक पशु नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के साइलेंट हीरो बन चुके हैं. हैरान करने वाली बात यह है कि ये दावा केवल प्रतीकों या मज़ाक तक सीमित नहीं है बल्कि पुख़्ता आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं.

    पाकिस्तान में गधों की आबादी साल दर साल बढ़ रही है. 2023-24 में यह संख्या बढ़कर 5.9 मिलियन (59 लाख) हो गई है, जो पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 1.72% अधिक है. ये वृद्धि सिर्फ एक पशु गणना नहीं, बल्कि इस बात का संकेत है कि गधों की उपयोगिता लगातार बढ़ रही है.

    अर्थव्यवस्था में गधों की भूमिका

    ग्रामीण पाकिस्तान में गधे अब भी सामान और लोगों को ढोने का एक प्रमुख साधन हैं. ऊबड़-खाबड़ रास्तों और परिवहन सुविधाओं की कमी वाले इलाकों में गधे एकमात्र भरोसेमंद साधन बन चुके हैं. यही नहीं, इन पशुओं के ज़रिए हजारों परिवार अपनी आजीविका चलाते हैं.

    गधों की ताक़त, धैर्य और विषम परिस्थितियों में काम करने की क्षमता के कारण उन्हें ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधारभूत हिस्सा माना जाता है. पाकिस्तान सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि गधों की बढ़ती आबादी आर्थिक दृष्टि से उनके महत्व को दर्शाती है.

    चीन में बढ़ती मांग: बड़ा निर्यात बाज़ार

    पाकिस्तान में गधों की बढ़ती संख्या का एक अंतरराष्ट्रीय पहलू भी है—चीन में इनकी भारी मांग. चीन में गधे का मांस एक लोकप्रिय स्ट्रीट फूड है, वहीं गधे की खाल पारंपरिक दवाओं और सौंदर्य उत्पादों में उपयोग की जाती है.

    इस बढ़ती डिमांड को देखते हुए पाकिस्तान ने गधों के निर्यात को एक संभावित राजस्व स्रोत के रूप में विकसित करना शुरू किया है. चीन जैसे बड़े उपभोक्ता बाजार को देखते हुए गधों का पालन अब केवल पारंपरिक नहीं, बल्कि रणनीतिक आर्थिक गतिविधि बनती जा रही है.

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