भारत ने आज एक ऐसी महान आत्मा को खो दिया, जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी योग, तप और सेवा को समर्पित कर दी. योग गुरु पद्मश्री शिवानंद बाबा का शनिवार रात उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 128 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. वह अपने पीछे एक ऐसा जीवन छोड़ गए हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को संयम, साधना और आत्मनियंत्रण का पाठ पढ़ाता रहेगा. उनका पार्थिव शरीर देर रात दुर्गाकुंड स्थित आश्रम लाया गया, जहां से आज उनका अंतिम संस्कार हरिश्चन्द्र घाट पर किया जाएगा.
योग ही जीवन बना, संयम ही दर्शन
शिवानंद बाबा का जीवन सचमुच अनोखा था. उन्होंने कभी भरपेट भोजन नहीं किया, और अंतिम सांस तक ब्रह्ममुहूर्त में उठने की आदत नहीं छोड़ी. उनकी जीवनशैली सरल, संयमित और अनुशासित रही. वह तीसरी मंज़िल पर सीढ़ियों से ऊपर-नीचे बिना सहारे के आते-जाते, चटाई पर सोते और उबला हुआ खाना खाते थे. यह सब उन्होंने सिर्फ आत्मानुशासन के लिए नहीं, बल्कि समाज को यह दिखाने के लिए किया कि लंबा और स्वस्थ जीवन जीने के लिए योग और संयम ही सबसे बड़ा आधार है.
पद्मश्री समारोह में दिखा विनम्रता और जीवटता का संगम
जब बाबा शिवानंद 126 साल की उम्र में पद्मश्री पुरस्कार लेने पहुंचे थे, तो उन्होंने ‘नंदी मुद्रा’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का अभिवादन किया. यह दृश्य देशभर के लोगों को भावविभोर कर गया था. प्रधानमंत्री मोदी ने भी उन्हें झुककर प्रणाम किया.
बचपन से संघर्ष, गुरु के मार्गदर्शन में मिला जीवन का उद्देश्य
शिवानंद बाबा का जन्म 8 अगस्त 1896 को अविभाजित बंगाल (अब बांग्लादेश) के श्रीहट्ट जिले के हरिपुर गांव में हुआ था. मात्र चार वर्ष की उम्र में परिवार से बिछुड़ गए, और छह साल की उम्र में ही योग को जीवन का लक्ष्य बना लिया.
उनके माता-पिता और बहन की मृत्यु भूख की वजह से हुई थी, यही कारण था कि उन्होंने आजीवन "आधा पेट भोजन" का संकल्प लिया. उन्होंने अपने गुरु बाबा ओंकारानंद गोस्वामी से योग की शिक्षा पाई और पूरी दुनिया घूमने के बाद अंततः काशी में स्थायी रूप से बस गए, जहां उन्हें आत्मिक शांति मिली.
128 वर्ष की जीवन यात्रा में बने लाखों लोगों के प्रेरणास्त्रोत
शिवानंद बाबा के अनुयायियों में सिर्फ आम लोग ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी से लेकर विदेशी नागरिक तक शामिल हैं. उन्होंने योग के जरिए सिर्फ दीर्घायु जीवन नहीं जिया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि स्वस्थ रहने के लिए दवाओं से ज़्यादा ज़रूरी है अनुशासन.
महाकुंभ से लेकर अपने आश्रम तक, उन्होंने हमेशा लोगों को योग, प्राणायाम और संतुलित जीवन की राह दिखाई. हैरानी की बात यह है कि वह कभी बीमार नहीं पड़े, और वृद्धावस्था में भी प्रतिदिन योगाभ्यास करते थे.
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