इज़रायल की सैन्य सोच सीधी और बेजोड़ है—जो कल खतरा बन सकता है, उसे आज ही खत्म कर दो. यही वजह है कि बीते चार दशकों में इज़रायल ने बार-बार दुनिया को दिखा दिया है कि वह किसी भी देश को परमाणु ताकत बनने की छूट नहीं देगा, अगर उसे शक भी हुआ कि उसके वजूद को खतरा है.
फिर चाहे बात हो इराक के ओसिराक रिएक्टर की, सीरिया के अल-किबार ठिकाने की या फिर ईरान की रहस्यमयी परमाणु प्रयोगशालाओं की—इज़रायल ने वक्त से पहले कार्रवाई करके हर बार यह साफ कर दिया है कि वो सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं करता, बल्कि पहले ही खतरे को खत्म कर देता है.
ऑपरेशन ओपेरा (इराक, 1981): जब 14 जेट्स ने रिएक्टर को माटी बना दिया
7 जून 1981 की शाम, इज़रायल के एत्ज़ियॉन एयरबेस से 14 फाइटर जेट्स बिना शोर-शराबे के उड़ान भरते हैं. इनका लक्ष्य था इराक के पास बगदाद के पास स्थित ओसिराक न्यूक्लियर रिएक्टर.
इस रिएक्टर को फ्रांस की मदद से बनाया जा रहा था, और इज़रायल को पूरा शक था कि सद्दाम हुसैन इसे परमाणु बम बनाने के लिए इस्तेमाल करेगा. इसीलिए इज़रायली रणनीतिकारों ने तय किया—"अब नहीं तो कभी नहीं".
ऑपरेशन ऑर्चर्ड (सीरिया, 2007): जब हमला हुआ और दुश्मन को पता भी न चला
6 सितंबर 2007, रात का सन्नाटा और सीरिया के अल-किबार इलाके में एक गुप्त रिएक्टर. इज़रायल को शक था कि उत्तर कोरिया की मदद से सीरिया गुपचुप परमाणु रिएक्टर बना रहा है.
खेल शुरू होता है मोसाद की चाल से—वियना में सीरियन एटॉमिक एजेंसी के प्रमुख के घर से मिलीं वो फोटोज़, जिनसे सब कुछ साफ हो गया. अब बारी थी ‘सर्जिकल सटीकता’ की.
टारगेट: यूफ्रेट्स नदी के पास सीक्रेट न्यूक्लियर प्लांट
मोसाद वायुसेना = ‘जीरो वार्निंग, फुल एक्शन’ पॉलिसी
इन दोनों मिशनों ने साफ कर दिया कि इज़रायल अपनी सुरक्षा के मामले में कोई समझौता नहीं करता. वह यह मानता है कि युद्ध का इंतज़ार नहीं किया जाता—उससे पहले दुश्मन को अंधेरे में घेरकर खत्म किया जाता है.
इज़रायल की यह “Preemptive Strike” रणनीति महज़ सैन्य नीति नहीं, बल्कि अस्तित्व की अनिवार्यता है. मोसाद की गुप्त निगरानी और वायुसेना की सर्जिकल स्टाइल—दोनों मिलकर ऐसा हथियार बनते हैं जिससे दुश्मन को संभलने का मौका ही नहीं मिलता.
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