तेहरानः यह आम बात नहीं कि दो देश जो एक-दूसरे से इतने दूर हों, इतने बड़े दुश्मन भी बन जाएं. आमतौर पर दुश्मनी उसी पड़ोसी देशों के बीच होती है जिनकी सीमाएं मिलती-जुलती हों, जैसे भारत-पाकिस्तान या उत्तर कोरिया-दक्षिण कोरिया. लेकिन इज़रायल और ईरान की दुश्मनी कुछ अलग ही तरह की है. दोनों के बीच कोई साझा सीमा नहीं है, दोनों अलग-अलग क्षेत्र में हैं, और इनका जमीनी टकराव भी लगभग नामुमकिन है. इस कहानी में दुश्मनी हवा में चलती है, मिसाइलों और हवाई हमलों के जरिए. आइए जानते हैं इज़रायल और ईरान के बीच की दूरी, उनका युद्ध कैसे होता है, और इस संघर्ष के पीछे किन देशों का हाथ है.
इज़रायल और ईरान के बीच की जमीनी दूरी
इज़रायल और ईरान के बीच कोई सीधा सड़क मार्ग नहीं है. इनके बीच लगभग 1,600 से 2,000 किलोमीटर की दूरी है, लेकिन यह दूरी यात्रा के लिहाज से ज्यादा मायने नहीं रखती क्योंकि कोई भी रास्ता सीधे नहीं जाता. इस सफर में आपको जॉर्डन, इराक जैसे कई देशों की सीमाएं पार करनी होंगी. मतलब यह कि दोनों देशों के बीच कोई आसान जमीनी संपर्क नहीं है.
हवाई दूरी और हमलों की रणनीति
हवाई दूरी की बात करें तो तेल अवीव से तेहरान तक लगभग 1,800 से 2,000 किलोमीटर की दूरी है. इज़रायली लड़ाकू विमानों ने इस दूरी को पार करते हुए इज़रायल से उड़ान भरी, ईरान के लक्ष्यों पर हमला किया और वापस लौट आए. कुछ रिपोर्टों के मुताबिक, इस लंबी उड़ान के दौरान हवा में ईंधन भरने वाले टैंकर विमानों का इस्तेमाल भी किया गया ताकि विमान बार-बार हमला कर सकें.
देशों के बीच कोई आमने-सामने संपर्क नहीं
1979 के बाद से इज़रायल और ईरान के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं है. दोनों देशों के नागरिकों के लिए एक-दूसरे के देशों में प्रवेश करना सख्त मना है. इज़रायली पासपोर्टधारकों को ईरान में प्रवेश की अनुमति नहीं है, और ईरानी वीज़ा पर इज़रायली स्टैंप भी स्वीकार नहीं किया जाता.
जमीनी टकराव की संभावना नगण्य
चूंकि दोनों के बीच कोई साझा सीमा नहीं है, इसलिए थल सेना के सीधे मुकाबले की संभावना भी लगभग खत्म हो गई है. ईरान के पास बड़ी संख्या में सैनिक जरूर हैं, लेकिन वे सीधे तौर पर इज़रायल की सेनाओं से जमीनी स्तर पर नहीं टकरा सकते. इसके बजाय, ईरान प्रॉक्सी युद्ध के जरिए—लेबनान, सीरिया और फिलिस्तीन में अपने समर्थित समूहों के जरिए—इज़रायल के खिलाफ लड़ाई करता है.
मोसाद और ड्रोन बेस
रिपोर्टों के अनुसार, इज़रायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान के अंदर एक गुप्त ड्रोन बेस स्थापित किया था, जिससे मिसाइल लॉन्चरों को निशाना बनाया गया. यह दिखाता है कि इज़रायल ने स्थानीय स्तर पर ऑपरेशनल आधार भी तैयार किए हैं.
पड़ोसी देशों और अन्य खिलाड़ियों की भूमिका
कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि कतर और जॉर्डन ने अपने क्षेत्रीय संसाधनों को इज़रायल को हमलों में मदद देने के लिए उपलब्ध कराया. इसके अलावा अमेरिका ने भी डिएगो गार्सिया जैसे ठिकानों पर अपने बॉम्बर तैनात किए थे, जो इज़रायल की मदद कर सकते थे, हालांकि अमेरिका ने सीधी भागीदारी से इनकार किया है.
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