रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत के दौरे पर हैं और इसी बीच एक बार फिर भारत-रूस के बीच दशकों पुरानी दोस्ती चर्चा में है. राजनीतिक रिश्तों से परे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव इतना मजबूत है कि रूस में कई भारतीय चीजें आज भी बेहद पसंद की जाती हैं. सोवियत काल से शुरू हुआ यह लगाव अब नए दौर में और गहरा हो चुका है. फिल्मों से लेकर भारतीय मसालों तक, योग से लेकर दवाइयों तक भारत की कई पहचानें आज रूस की रोजमर्रा की जिंदगी में जगह बना चुकी हैं.
रूस में भारतीय चाय और मसालों की खास जगह
सोवियत दौर में भारत से भेजी जाने वाली चाय ने रूस के दिल में जो जगह बनाई, वह आज भी कायम है. असम और दार्जिलिंग की पत्तियां वहां “इंडियन टी” के नाम से जानी जाती हैं और रूसी घरों में एक खास ब्रांड की तरह सम्मान पाती हैं. मसाला चाय का चलन पिछले दशक में और तेजी से बढ़ा है, क्योंकि रूस में ठंड के मौसम में भारतीय मसालों की गर्माहट वाली चाय पसंद की जाती है.
भारतीय मसाले- इलायची, हल्दी, दालचीनी, गरम मसाला स्थानीय बाजारों में आसानी से मिल जाते हैं. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बाद भारतीय मसालों और दालों की सप्लाई रूस के लिए एक भरोसेमंद विकल्प बन गई है. भारतीय बासमती चावल भी रूसी रसोई में खूब इस्तेमाल होने लगा है.
बॉलीवुड का जादू अब भी बरकरार
भारतीय सिनेमा की लोकप्रियता रूस में नई नहीं है. राज कपूर के दौर से शुरू हुई यह दीवानगी आज OTT प्लेटफॉर्म्स और सिनेमाघरों तक फैली है. कभी “आवारा” और “श्री 420” ने रूस में रिकॉर्ड तोड़े थे, तो आज “3 Idiots”, “दंगल”, “बाहुबली” और शाहरुख खान की फिल्मों को खूब देखा जाता है.
रूसी दर्शक भारतीय फिल्मों की भावनात्मक कहानी, संगीत और नृत्य को खास पहचान मानते हैं. कई रूसी अभी भी भारतीय फिल्मों को “वार्म सिनेमा” कहकर संबोधित करते हैं जो उन्हें पश्चिमी फिल्मों से अलग एक आत्मीय अनुभव देता है.
योग और आयुर्वेद: भारत का बढ़ता सॉफ्ट पावर
पिछले दो दशकों में योग रूस में स्वास्थ्य जगत की एक मुख्य धारा बन चुका है. मॉस्को, सेंट पीटर्सबर्ग और व्लादिवोस्तोक जैसे शहरों में योग स्टूडियो बड़ी संख्या में खुले हैं, जहां भारतीय प्रशिक्षकों की लोकप्रियता सबसे अधिक है. आयुर्वेदिक उपचार, मसाज थेरेपी, हर्बल ऑयल और प्राकृतिक स्किनकेयर उत्पादों की मांग भी steadily बढ़ रही है.
रूसी लोग इसे “नेचुरल हीलिंग” का भरोसेमंद तरीका मानते हैं. भारत-रूस सांस्कृतिक कार्यक्रमों में योग दिवस हर साल बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करता है.
भारतीय फैशन और हस्तशिल्प की बढ़ती मांग
भारतीय वस्त्र और हैंडीक्राफ्ट रूस के फैशन बाजार का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं. साड़ियां, कुर्ते, इंडो-फ्यूजन ट्यूनिक और पारंपरिक ज्वैलरी रूसी महिलाओं में विशेष लोकप्रियता रखते हैं. मॉस्को में आयोजित होने वाले भारतीय हस्तशिल्प मेले हर साल हजारों लोगों को आकर्षित करते हैं.
सिल्क, हाथ से बनी ज्वैलरी, लकड़ी की नक्काशी, और कश्मीरी शॉल को रूस में एक “लक्ज़री आर्ट” माना जाता है.
भारतीय भोजन: रूसी स्वाद का नया आकर्षण
रूस में भारतीय खाना अब केवल प्रवासियों तक सीमित नहीं रहा. मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग में कई भारतीय रेस्तरां बेहद सफल हैं और उनकी ग्राहक सूची में 70–80% स्थानीय रूसी होते हैं.
बटर चिकन, पनीर टिक्का, दाल मखनी, तंदूरी चिकन, नान और बिरयानी वहां के सबसे लोकप्रिय भारतीय व्यंजन हैं. रूस में शाकाहारी भोजन की तेजी से बढ़ती प्रवृत्ति ने भी भारतीय पकवानों की लोकप्रियता को बढ़ावा दिया है, क्योंकि भारतीय रसोई शाकाहारी विकल्पों की बहुलता के लिए जानी जाती है.
रूसी बाजार में भारतीय आईटी विशेषज्ञों का दबदबा
सॉफ्टवेयर, साइबर सिक्योरिटी, डेटा एनालिसिस और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में भारतीय पेशेवरों की विशेष प्रतिष्ठा है. कई भारतीय आईटी कंपनियां रूस में लंबे समय से काम कर रही हैं, और दोनों देशों के बीच तकनीकी सहयोग पिछले वर्षों में और मजबूत हुआ है. रूस में भारतीय इंजीनियरों को “हाई-क्वालिटी स्पेशलिस्ट” के रूप में देखा जाता है.
भारतीय संस्कृति और भाषा का विस्तार
मॉस्को में इस्कॉन कृष्ण मंदिर और अन्य सांस्कृतिक केंद्रों में रूसियों की बड़ी संख्या देखी जाती है. भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य के कार्यक्रमों की रूसी कला मंचों पर अच्छी मांग है. दिलचस्प बात यह है कि रूस में हिंदी सीखने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. यह युवा पीढ़ी में भारत के प्रति बढ़ते आकर्षण को दर्शाता है.
भारतीय दवाइयों और जेनेरिक मेडिसिन की मांग
भारत अब रूस के फार्मा सेक्टर में प्रमुख सप्लायर बन चुका है. जर्मनी समेत कई पश्चिमी देशों को पीछे छोड़ते हुए भारत ने 2023 में रूस को 294 मिलियन पैकेज दवाएं भेजीं.
कैंसर रोधी दवाएं, एंटीबायोटिक्स, जेनेरिक मेडिसिन, वैक्सीन इन सभी में भारत अब रूस का भरोसेमंद साझेदार है. अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के बाद भारतीय कंपनियों पर रूस की निर्भरता और बढ़ गई है. कई भारतीय फार्मा कंपनियां रूस में संयुक्त उत्पादन इकाइयां भी स्थापित कर रही हैं. भारतीय दवाओं को वहां सस्ती, भरोसेमंद और उच्च गुणवत्ता वाला विकल्प माना जाता है.
आज भी रूस में भारत को “खरा दोस्त” माना जाता है. सोवियत काल के स्कूलों में भारत को मित्र राष्ट्र के रूप में पढ़ाया जाता था और उसका असर अभी तक दिखाई देता है. दोनों देशों ने संकट की घड़ी में हमेशा एक-दूसरे का साथ दिया है- चाहे ऊर्जा संबंध हो, रक्षा सहयोग हो या व्यापार.
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