तेल अवीव: ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के बीच एक सवाल ने दुनिया भर की सुरक्षा एजेंसियों को हैरानी में डाल दिया है, आखिर इजरायल ने सैकड़ों किलोमीटर दूर ईरान के संवेदनशील इलाकों में इतनी सटीकता के साथ हमले कैसे किए? कैसे इजरायल ने एक खास कमरे में मौजूद व्यक्ति को निशाना बनाया, जबकि पूरी इमारत को कोई नुकसान नहीं पहुंचा?
इसका जवाब छिपा है इजरायल की अत्याधुनिक मोबाइल फोन ट्रैकिंग टेक्नोलॉजी में, जिसे इजरायली खुफिया एजेंसी ‘मोसाद’ बेहद कुशलता से इस्तेमाल कर रही है.
मोबाइल फोन बना मौत का संकेत
ईरानी समाचार एजेंसी Fars News Agency के मुताबिक, इजरायल ने मोबाइल फोन सिग्नल की ट्रैकिंग के जरिए ईरान के भीतर कई सटीक ऑपरेशन को अंजाम दिया. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों और शीर्ष सैन्य अधिकारियों की हत्या भी इसी तकनीक की मदद से की गई.
विशेषज्ञों का कहना है कि मोबाइल फोन भले ही आम लोगों के लिए एक संचार का जरिया हो, लेकिन युद्ध और जासूसी के क्षेत्र में यह 'डिजिटल ट्रैकिंग डिवाइस' बन चुका है, जो आपकी हर लोकेशन को साझा करता है.
इस टेक्नोलॉजी के दो बड़े तरीके
सिग्नल इंटरसेप्शन:
इस तकनीक में मोबाइल फोन से निकलने वाले रेडियो सिग्नल को दुश्मन द्वारा इंटरसेप्ट किया जाता है. इससे किसी व्यक्ति की सटीक लोकेशन का पता लगाया जाता है और उस आधार पर हमले की योजना बनाई जाती है.
आईएमएसआई कैचर:
यह एक पोर्टेबल डिवाइस होता है जो नकली मोबाइल टॉवर की तरह काम करता है. जैसे ही किसी टारगेट का फोन इसके दायरे में आता है, उसकी कॉल, डेटा और लोकेशन की जानकारी रियल टाइम में मिलनी शुरू हो जाती है.
कैसे किया इजरायल ने उपयोग?
दुनिया में कहां-कहां हो रहा इस्तेमाल?
अमेरिका: अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में इसी तकनीक का इस्तेमाल कर आतंकियों पर सटीक ड्रोन हमले किए गए.
चीन: उइगर मुसलमानों और हांगकांग के प्रदर्शनकारियों की निगरानी में मोबाइल ट्रैकिंग तकनीक का बड़े पैमाने पर उपयोग.
रूस: यूक्रेन युद्ध में रूसी सेना ने यूक्रेनी सैनिकों के फोन ट्रैक कर मिसाइल हमलों की योजना बनाई.
भारत: सुरक्षा एजेंसियां सीमित स्तर पर इस तकनीक का प्रयोग आतंकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए करती हैं.
क्या है खतरा?
विशेषज्ञों के अनुसार, मोबाइल ट्रैकिंग तकनीक जहां सुरक्षा अभियानों में कारगर साबित हो रही है, वहीं यह साइबर गोपनीयता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए भी एक बड़ा खतरा बन सकती है. किसी देश की सेना या खुफिया एजेंसी अगर इस तकनीक का दुरुपयोग करे तो किसी भी व्यक्ति की निजता खतरे में पड़ सकती है.
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