What is Ghazwa e hind: हर बार जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है, कुछ कट्टरपंथी तत्व ‘गजवा-ए-हिंद’ का नारा बुलंद करते हैं. हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद एक बार फिर इस शब्द का जिक्र सुर्खियों में है. लेकिन बहुत कम लोग इस शब्द की वास्तविकता, इसका इतिहास और इसके दुरुपयोग को समझते हैं. यह लेख इसी भ्रम को दूर करने का प्रयास है.
क्या है 'गजवा-ए-हिंद'?
‘गजवा-ए-हिंद’ एक अरबी मूल का शब्द है, जिसमें ‘गजवा’ का मतलब होता है 'पवित्र युद्ध' या 'धार्मिक युद्ध'. यह शब्द कुछ हदीसों से लिया गया है, लेकिन यह संदर्भित घटनाएं ऐतिहासिक हैं और आधुनिक काल में इनका प्रयोग विवादास्पद माना जाता है. कुछ आतंकी संगठन और पाकिस्तान के चरमपंथी समूह इस शब्द का उपयोग भारत के खिलाफ धार्मिक युद्ध का माहौल बनाने के लिए करते हैं.
इतिहास और विकृति
ऐतिहासिक रूप से यह शब्द कुछ सीमित घटनाओं से जुड़ा रहा है, लेकिन आधुनिक समय में इसे आतंकवाद फैलाने और उकसावे के एक हथियार की तरह प्रयोग किया गया है. पाकिस्तान में कई चरमपंथी समूह जैसे कि लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, और अल-कायदा इन द इंडियन सबकॉन्टिनेंट इस शब्द का इस्तेमाल भारत के खिलाफ जिहाद को उचित ठहराने के लिए करते हैं.
कौन दे रहा है यह नारा?
पाकिस्तान में इस शब्द को प्रचारित करने वालों में जैद हमीद जैसे कट्टरपंथी 'विश्लेषक' शामिल हैं, जो इसे कश्मीर संघर्ष से जोड़ते हैं. अंसार गजवत-उल-हिंद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों ने 'गजवा-ए-हिंद' को एक धार्मिक भविष्यवाणी के रूप में पेश कर भारत में आतंक फैलाने की कोशिश की है.
क्या कहते हैं इस्लामी विद्वान?
भारत के जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठनों और कई प्रमुख मुस्लिम विद्वानों ने इस अवधारणा को सिरे से खारिज किया है. मौलाना मुफ्ती सलमान मंसूरपुरी जैसे विद्वान स्पष्ट कर चुके हैं कि यह एक ऐतिहासिक सन्दर्भ मात्र है, जिसका वर्तमान समय में कोई स्थान नहीं है. उनका मानना है कि इसका उपयोग केवल आतंकवाद को धार्मिक रूप देने की कोशिश है, जिसकी इस्लाम में कोई अनुमति नहीं है.
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