क्या होता है मॉक ड्रिल और ब्लैकआउट अभ्यास? 1971 में भारत-पाकिस्तान जंग के दौरान आखिरी बार हुआ था

    भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनज़र केंद्र सरकार ने एक असाधारण निर्णय लिया है. 7 मई को देश के 244 जिलों में एक समन्वित मॉक ड्रिल आयोजित की जाएगी.

    What is mock drill and blackout exercise
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- FreePik

    नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनज़र केंद्र सरकार ने एक असाधारण निर्णय लिया है. 7 मई को देश के 244 जिलों में एक समन्वित मॉक ड्रिल आयोजित की जाएगी, जिसका उद्देश्य है— युद्ध जैसी आपात स्थिति में नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और प्रशासनिक तंत्र की तत्परता को परखना.

    इस व्यापक अभ्यास की पृष्ठभूमि में 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला है, जिसमें 26 निर्दोष लोगों की जान गई थी. इसके बाद सुरक्षा एजेंसियों को हाई अलर्ट पर रखा गया है और केंद्र सरकार ने युद्धकालीन नागरिक सुरक्षा उपायों को सक्रिय करना शुरू कर दिया है.

    क्यों है यह मॉक ड्रिल ऐतिहासिक?

    भारत में अंतिम बार इस प्रकार का नागरिक-सुरक्षा अभ्यास 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान हुआ था. उस समय देश ने अपने नागरिकों को संभावित हवाई हमलों से सुरक्षित रखने के लिए रणनीतिक तैयारियां की थीं. अब, लगभग 50 वर्षों के बाद फिर से एक संगठित मॉक ड्रिल की योजना बताती है कि सरकार इस बार किसी भी अप्रत्याशित खतरे को हल्के में नहीं ले रही.

    क्या है मॉक ड्रिल और ब्लैकआउट अभ्यास?

    मॉक ड्रिल: यह एक सिम्युलेटेड (काल्पनिक) आपातकालीन स्थिति होती है, जिसमें नागरिकों, पुलिस, स्वास्थ्य सेवाओं और अन्य एजेंसियों को यह सिखाया जाता है कि यदि हवाई हमला या मिसाइल स्ट्राइक हो, तो कैसे प्रतिक्रिया दी जाए. समय पर आश्रय में जाना, प्राथमिक चिकित्सा देना और सामूहिक सुरक्षा के उपाय अभ्यास में शामिल होते हैं.

    ब्लैकआउट एक्सरसाइज: यह रात के समय की जाती है, जिसमें पूरा इलाका अंधेरे में डुबा दिया जाता है — बिजली की सप्लाई बंद कर दी जाती है ताकि दुश्मन की एयर स्ट्राइक या ड्रोन टारगेटिंग विफल हो जाए. हाल ही में पंजाब के फिरोजपुर छावनी क्षेत्र में इस तरह की एक ट्रायल ब्लैकआउट ड्रिल की गई.

    दुनियाभर में ऐसे अभ्यासों का इतिहास

    भारत अकेला देश नहीं है जिसने नागरिक सुरक्षा की दिशा में मॉक ड्रिल को प्राथमिकता दी हो. कई देशों ने बीते दशकों में ऐसे अभ्यास किए हैं, जिनका मकसद जनता को मानसिक और व्यावहारिक रूप से युद्ध जैसी परिस्थितियों के लिए तैयार करना रहा है:

    अमेरिका (1952) — ‘Duck and Cover’ अभ्यास में स्कूली बच्चों को न्यूक्लियर हमले की स्थिति में सिर ढककर मेज के नीचे छिपने की ट्रेनिंग दी गई.

    कनाडा (1942) — विन्निपेग शहर में ‘If Day’ के नाम से फर्जी नाजी आक्रमण का दृश्य रचा गया. यह न केवल सुरक्षा तैयारी थी, बल्कि जनता को युद्ध के प्रभावों के प्रति संवेदनशील करने की एक कवायद थी.

    ब्रिटेन (1980) — ‘Square Leg’ ड्रिल के तहत यह मान लिया गया कि देश पर 150 परमाणु बम गिरे हैं, और उसी पैमाने पर देशव्यापी प्रतिक्रिया और आपात सेवाओं का मूल्यांकन किया गया.

    भारत का अगला कदम

    भारत में 7 मई को होने वाली यह अभ्यास सिर्फ एक सुरक्षा कवायद नहीं, बल्कि एक संदेश भी है — अपनी सीमाओं की रक्षा और नागरिकों की सुरक्षा के लिए देश पूरी तरह से तैयार है. मौजूदा भू-राजनीतिक माहौल में यह अभ्यास भारत की डिटरेंस नीति (निरोधक रणनीति) का एक भाग माना जा सकता है.

    विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत की यह पहल न केवल प्रशासनिक और सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह नागरिकों को भी सक्रिय भागीदार बनाने की दिशा में बड़ा कदम है.

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