अचानक एक मित्र भागा हुआ आया, लालू जी तो... आपातकाल में नीतीश कुमार के साथ क्या हुआ था? आंखों देखी कहानी

    भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 25 जून 1975 की तारीख एक ऐसा दिन है जिसे याद करते ही मन में सिहरन दौड़ जाती है.

    What happened to Nitish Kumar during emergency
    नीतीश कुमार | Photo: ANI

    भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 25 जून 1975 की तारीख एक ऐसा दिन है जिसे याद करते ही मन में सिहरन दौड़ जाती है. इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा की गई थी, जिसने देश की आवाज को दबा दिया था. आज इस घटना को 50 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन उस दौर की कहानियां अब भी जीवित हैं – खासकर उन लोगों की यादों में जिन्होंने न सिर्फ उस अन्यायपूर्ण समय का विरोध किया, बल्कि अपनी जान जोखिम में डालकर लोकतंत्र की मशाल को बुझने नहीं दिया.

    बिहार में उस समय छात्र आंदोलन की आग धधक रही थी, जिसकी अगुवाई लोकनायक जयप्रकाश नारायण कर रहे थे. इस आंदोलन में कई नाम आज राजनीति की ऊंचाई पर हैं – नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, रामसुंदर दास, सुशील मोदी और रवि शंकर प्रसाद जैसे नेताओं ने छात्र नेता के रूप में बढ़-चढ़कर भाग लिया था.

    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आमतौर पर अपने अतीत की बातें बहुत कम करते हैं, लेकिन उदयकांत मिश्र की पुस्तक ‘दोस्तों की नजर में नीतीश कुमार’ में एक संस्मरण सामने आया है, जिसमें उन्होंने आपातकाल के अगले दिन का भयावह अनुभव साझा किया है.

    जब नीतीश कुमार को पहली बार पता चला "आपातकाल लग गया है"

    नीतीश कुमार उस समय एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र थे. 26 जून 1975 की सुबह की वह घड़ी उन्हें आज भी याद है – "मैं अपने कमरे में एक मित्र के साथ था, तभी एक और साथी दौड़ते हुए आया और बोला कि इमरजेंसी लग गई है. पहले तो लगा यह मजाक है, लेकिन जब उसने गंभीरता से कहा कि पुलिस मुझे पकड़ने आ रही है, तो जैसे बिजली सी दौड़ गई."

    इसके बाद उन्होंने अपने जैसे कई अन्य छात्रों के साथ मिलकर जेपी के घर के पास इकट्ठा होने की कोशिश की, पर तब तक जेपी को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया था. पटना की सड़कों पर पुलिस तैनात थी, हर कोना निगरानी में था.

    भूमिगत जीवन और डर का माहौल

    नीतीश कुमार बताते हैं कि कैसे वे भूमिगत हो गए, पर्चे छापे और गुप्त तरीके से विरोध दर्ज कराते रहे. “लोग आक्रोशित तो थे, लेकिन डरे हुए भी थे. पुलिसवालों की नजरें भले सख्त थीं, पर बहुत से अधिकारी मन से हमारे साथ थे.” जुलाई में जब बाढ़ आई, तो आंदोलनकारियों ने गांवों में शरण लेनी शुरू कर दी. एक दिन गया में फल्गु नदी के किनारे एक सभा हो रही थी, जिसमें नीतीश, लालू यादव और अन्य कई नेता शामिल थे. तभी पुलिस ने छापा मारा.

    भागमभाग और एक अंगूठी की याद

    सभा से भागते समय नीतीश कुमार, लालू यादव और अन्य कई नेता दीवार फांद कर नदी की ओर भागे. “हममें से कुछ लोग दीवार से कूदे, जिसमें मैं, लालू और रामसुंदर दास जी भी थे. उम्र में हमसे बड़े लोगों को भी जान बचाने के लिए वही करना पड़ा. इस भागदौड़ में मेरी वह मूंगे की अंगूठी जो दादी के झुमके से बनी थी, वह नदी में गिर गई और हमेशा के लिए खो गई.”

    भागते-भागते लालू यादव थककर जमीन पर लोट गए थे. लेकिन पुलिस की पैनी नजर से ज्यादा देर कोई नहीं बच सका. धीरे-धीरे नीतीश कुमार भी गिरफ्तार हो गए और उन्होंने 9 महीने जेल में बिताए.

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