गोपालगंज में छिड़ा युद्ध! शेख हसीना के गढ़ में क्यों भड़की हिंसा? सेना ने भी चलाईं गोलियां

    एनसीपी नेताओं ने गोपालगंज में एक रैली का ऐलान किया था. जैसे ही रैली शुरू हुई, लाठियों और डंडों से लैस करीब 200-300 स्थानीय अवामी लीग समर्थक मौके पर पहुंच गए.

    War broke out in Gopalganj violence Sheikh Hasina
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    बांग्लादेश की राजनीति में बुधवार को एक ऐसा दिन दर्ज हो गया जो आने वाले वक्त में कई राजनीतिक समीकरण बदल सकता है. जिस गोपालगंज को शेख हसीना की राजनीतिक ज़मीन और उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान की विरासत का प्रतीक माना जाता है, वहीं अब उनकी सत्ता को खुली चुनौती मिलती दिखी. हालात इतने बिगड़े कि वहां सेना को गोलियां चलानी पड़ीं, चार लोगों की मौत हो गई, और आखिर में पूरे शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा. ये सब कुछ उस वक्त हुआ जब विपक्षी नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) ने वहां रैली निकालने की कोशिश की.

    कैसे भड़की हिंसा?

    बात दोपहर करीब डेढ़ बजे की है. एनसीपी नेताओं ने गोपालगंज में एक रैली का ऐलान किया था. जैसे ही रैली शुरू हुई, लाठियों और डंडों से लैस करीब 200-300 स्थानीय अवामी लीग समर्थक मौके पर पहुंच गए. देखते ही देखते रैली हिंसक झड़प में बदल गई. स्थानीय चश्मदीदों के मुताबिक, भीड़ ने एनसीपी कार्यकर्ताओं को घेरकर हमला कर दिया, कई को बेरहमी से पीटा गया, और पुलिस के वाहनों को भी ब्लॉक कर दिया गया.

    सेना की फायरिंग और चार मौतें

    स्थिति काबू से बाहर होती देख सेना और बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (BGB) को मैदान में उतारा गया. लेकिन हालात इतने तनावपूर्ण थे कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सीधी गोलीबारी की गई.
    गोपालगंज जनरल अस्पताल के अधीक्षक जिबितेश बिस्वास ने पुष्टि की कि चार लोगों को गोली लगने के बाद अस्पताल लाया गया, लेकिन उनकी मौत हो चुकी थी.

    पुलिस मौन, हमलावर सक्रिय

    रैली स्थल पर मौजूद पुलिसकर्मियों पर भी सवाल उठ रहे हैं. प्रत्यक्षदर्शियों ने दावा किया कि जब झड़प शुरू हुई, तो ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी मौके से हटकर पास के कोर्ट परिसर में चले गए. एनसीपी कार्यकर्ता और नेता भी जान बचाकर वहां से भागे.

    विरोधी एकजुट, हसीना की सत्ता पर हमला?

    सिर्फ अवामी लीग ही नहीं, रिपोर्टों के मुताबिक पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बीएनपी और कुछ आम नागरिकों ने भी एनसीपी को रोकने के लिए अवामी लीग के साथ मिलकर मोर्चा संभाला.
    हालात इतने संगीन थे कि देश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस को बयान देना पड़ा. उन्होंने सीधे तौर पर हिंसा के लिए अवामी लीग को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि दोषियों को किसी भी हालत में छोड़ा नहीं जाएगा.

    गोपालगंज में कर्फ्यू, शहर ठप

    घटनाओं के बाद गोपालगंज में रात 8 बजे से 22 घंटे का कर्फ्यू लगा दिया गया. पूरे शहर को सुरक्षा बलों के हवाले कर दिया गया है. रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) की यूनिट्स भी शहर में तैनात कर दी गई हैं. लोगों को घरों में रहने की चेतावनी दी गई है, और हिंसा फैलाने वालों को कड़ी सज़ा की चेतावनी दी गई है.

    एनसीपी की खुली चेतावनी

    हिंसा के बाद भी एनसीपी पीछे नहीं हटी. रैली स्थल पर दोबारा पहुंचकर नाहिद इस्लाम और हसनत अब्दुल्लाह जैसे प्रमुख नेताओं ने भाषण दिए. इस्लाम ने साफ कहा कि अगर उनकी रैली पर हुए हमले का न्याय नहीं हुआ, तो एनसीपी खुद गोपालगंज को ‘मुजीबवाद से मुक्त’ कराने के लिए लौटेगी.

    कुछ रिपोर्टों के अनुसार, एनसीपी नेता टैंकों के अंदर बैठकर रैली स्थल तक पहुंचे थे, ताकि संभावित हमले से खुद को बचा सकें. यह प्रतीकात्मक और वास्तविक दोनों ही रूपों में अवामी लीग के लिए एक बड़ा राजनीतिक संदेश है.

    इस पूरी घटना का मतलब क्या है?

    गोपालगंज कोई आम शहर नहीं है. ये बांग्लादेश की राजनीति में ‘पवित्र स्थल’ की तरह देखा जाता है क्योंकि यहीं से शेख मुजीबुर रहमान ने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था, और यहीं से शेख हसीना की ताकत की नींव रखी गई. अब उसी जगह पर विरोधी पार्टियां रैली निकाल रही हैं, पुलिस मौन है, और सत्ता के विरोध में नारे लग रहे हैं.

    ये हिंसा सिर्फ एक झड़प नहीं है. ये एक चेतावनी है कि बांग्लादेश की राजनीति अब बदल रही है. हसीना सरकार को पहली बार गोपालगंज में खुले तौर पर चुनौती दी गई है. एनसीपी जैसे छोटे दल अब ताकतवर हो रहे हैं, और अगर अवामी लीग ने इसे सिर्फ 'स्थानीय असंतोष' समझकर नजरअंदाज किया, तो वो बहुत बड़ी भूल होगी.

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