उत्तराखंड के घने जंगलों की सरसराहट अब सिर्फ हवा की आवाज़ नहीं होगी, बल्कि आने वाले खतरे की चेतावनी भी होगी. दरअसल हर साल गर्मियों में प्रदेश के जंगलों में आग लग जाती है. जिससे ना सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, बल्कि जनजीवन भी बुरी तरह प्रभावित हो जाता है. लेकिन अब उत्तराखंड वन विभाग जंगलों को अब ‘स्मार्ट’ बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. बता दें कि वन विभाग ऐसा स्मार्ट मॉडल तैयार कर रहा है जिससे पहले ही खतरे का पता चल सकेगा.
खतरे को पहले ही भांप लेगी ये AI तकनीक
बता दें कि टेक्नोलॉजी की ताकत से लैस एक नया प्रेडिक्शन मॉडल तैयार किया जा रहा है, जो जंगल की आग को पहले ही भांप सकेगा. यह मॉडल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक पर आधारित होगा, जो वर्षों पुराने डाटा और मौसम की जानकारी के साथ मिलकर यह अंदाज़ा लगाएगा कि कब और कहां आग लग सकती है.
कैसे काम करेगा यह AI आधारित प्रेडिक्शन मॉडल?
उत्तराखंड में वन विभाग ने देहरादून में एक इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (ICCC) स्थापित किया है, जिसमें पिछले 10 वर्षों का फॉरेस्ट फायर डाटा संचित है. इस डाटा में दर्ज है कि किन क्षेत्रों में आग बार-बार लगती है. कब-कब घटनाएं होती हैं. आग की तीव्रता क्या होती है और कौन से इलाके अधिक संवेदनशील हैं. AI तकनीक इन आंकड़ों का विश्लेषण कर यह भविष्यवाणी करने में सक्षम होगी कि किसी इलाके में आग लगने की संभावना कितनी है.
क्या होगा इस आधुनिक तकनीक का फायदा?
इस प्रेडिक्शन मॉडल के ज़रिए वन विभाग उन क्षेत्रों को पहले से चिन्हित कर सकेगा जहां खतरा ज्यादा है. जिससे अतिरिक्त संसाधन पहले से भेजे जा सकेंगे. वहां पहले से ही वनकर्मियों की तैनाती की जा सकेगी. खतरे का पता चलने पर पहले ही आधुनिक उपकरण और अलर्ट सिस्टम एक्टिव किए जा सकेंगे. नतीजतन, आग की घटनाओं पर समय रहते काबू पाया जा सकेगा और पर्यावरण को बड़ा नुकसान होने से रोका जा सकेगा.
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