दुनिया जब युद्ध की दहलीज़ पर खड़ी होती है, तो कोई न कोई कूटनीतिक हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है. हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच 7 मई से शुरू हुए तनावपूर्ण संघर्ष को रोकने में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने निर्णायक भूमिका निभाई है. ट्रूथ सोशल पर पोस्ट करते हुए ट्रंप ने खुद इस सीजफायर की पुष्टि की, जो जल्द ही भारत और पाकिस्तान दोनों की ओर से आधिकारिक रूप से घोषित भी कर दिया गया.
लेकिन यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने युद्ध के मुहाने पर खड़े देशों को पीछे हटने पर मजबूर किया हो. वे पहले भी रूस-यूक्रेन, इजरायल-फिलिस्तीन, ईरान-इजरायल और यमन के हुती विद्रोहियों जैसे कई तनावपूर्ण मुद्दों में मध्यस्थता करके 'सुलह कराने वाले वैश्विक नेता' के तौर पर अपनी पहचान बना चुके हैं.
कूटनीतिक बुद्धिमत्ता से टला बड़ा युद्ध
भारत और पाकिस्तान के बीच बीते दिनों सीमा पर जो स्थिति बनी, वह बेहद गंभीर थी. दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थीं और रिहायशी इलाकों तक हमले बढ़ चुके थे. लेकिन इससे पहले कि यह लड़ाई और घातक मोड़ लेती, ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने पर्दे के पीछे से सक्रिय कूटनीति की. सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान ने खुद अमेरिका से संपर्क कर भारत के हमलों को रोकवाने की गुहार लगाई थी. इस पहल के बाद, अमेरिकी अधिकारियों ने युद्धविराम की संभावना पर बातचीत शुरू की, और 4 दिन बाद एक सीजफायर पर सहमति बनी.
रूस-यूक्रेन
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भी बड़ा प्रयास किया. हालांकि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने शुरुआत में कड़ा रुख अपनाया, लेकिन बाद में अमेरिका के साथ बैठकर समझौता किया गया, जिसने आगे बातचीत के रास्ते खोले.
इजरायल-हमास और ईरान-इजरायल में संतुलन की कोशिश
इजरायल और हमास के बीच जब हिंसा चरम पर थी, ट्रंप की पहल से दोनों पक्षों ने अस्थायी युद्धविराम पर सहमति जताई. वहीं ईरान और इजरायल के बीच अप्रैल में जब हालात बिगड़ने लगे थे, तो संभावित युद्ध को रोकने में ट्रंप की मध्यस्थता कारगर साबित हुई.
यमन के हुती विद्रोही
यमन के सशस्त्र हुती विद्रोहियों को लेकर भी ट्रंप ने हाल ही में कहा कि जब दुश्मन लड़ाई छोड़ने के संकेत देता है, तो उसे सुना जाना चाहिए. अमेरिका ने फिलहाल हवाई हमले रोक दिए हैं और यह रुख क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है.
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