तुर्की ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी रक्षा तकनीक, विशेष रूप से ड्रोन टेक्नोलॉजी को वैश्विक बाजार में एक उभरते ब्रांड के रूप में पेश किया है. बायरकतार TB2 ड्रोन को लेकर एक प्रभावशाली प्रचार अभियान चलाया गया, जिसमें इसे 'गेमचेंजर' करार दिया गया — चाहे वह यूक्रेन युद्ध हो या नागोर्नो-कराबाख संघर्ष. लेकिन हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सैन्य झड़प ने तुर्की की इस प्रतिष्ठा को गहरे संदेह के घेरे में ला दिया है.
ड्रोन जो 'गेमचेंजर' नहीं बन सके
भारत के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा तुर्की के बायकर YIHA III कामिकेज़ ड्रोन का इस्तेमाल किया गया, लेकिन भारतीय रक्षा प्रणाली ने इन सभी ड्रोन को आसानी से बेअसर कर दिया — न तो ये टारगेट तक पहुंच पाए, न ही कोई बड़ा नुकसान पहुंचा सके. विशेषज्ञों का मानना है कि ये विफलता सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है.
भारत ने जिस तरह तुर्की के ड्रोन को जमीनी और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों से निष्क्रिय किया, उसने इस्लामिक देशों के साथ-साथ अफ्रीकी और मध्य एशियाई बाजारों में तुर्की की डिफेंस डिप्लोमेसी को झटका दिया है.
तुर्की के ड्रोन: प्रचार बनाम प्रदर्शन
डिफेंस एनालिस्ट माइकल रूबिन ने इस मुद्दे पर लिखा है कि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने अपने दामाद की कंपनी Baykar में निवेश कर इस उद्योग को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया. बायकर का ड्रोन Bayraktar TB2 उस समय चर्चा में आया जब अजरबैजान ने इसे इजरायली तकनीक के साथ मिलाकर आर्मेनिया के खिलाफ इस्तेमाल किया. उस विजय को तुर्की ने अपनी सैन्य ताकत का सबूत बताया और बड़ी संख्या में देशों ने इन ड्रोन को खरीदने में रुचि दिखाई — इनमें मालदीव, यूक्रेन और कुछ अफ्रीकी देश शामिल हैं.
लेकिन, इन ड्रोन का मुकाबला अब तक केवल अपेक्षाकृत कमजोर सैन्य ताकतों से हुआ था. पहली बार जब भारत जैसे सशक्त सैन्य बल से इनका सामना हुआ, तो इनकी सीमाएं उजागर हो गईं.
प्रचार के प्रभाव और हकीकत की टक्कर
भविष्य पर पड़ने वाला असर
तुर्की की ड्रोन इंडस्ट्री को लेकर अब अंतरराष्ट्रीय खरीदारों में संशय पैदा हो गया है. विशेषज्ञों का मानना है कि:
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