Tulbul Navigation Project: जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक बार फिर पुराने मुद्दे ने हलचल मचा दी है. इस बार केंद्र में है. तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट, जिसे लेकर पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के बीच तीखी बहस छिड़ गई है. उमर अब्दुल्ला ने जहां इस रुके हुए प्रोजेक्ट को दोबारा शुरू करने की वकालत की, वहीं महबूबा ने इसे “गैर-जिम्मेदाराना और भड़काऊ” करार देते हुए कड़ा विरोध जताया. लेकिन इस जुबानी जंग से इतर एक बड़ा सवाल यह भी है: क्या तुलबुल प्रोजेक्ट अब भारत की रणनीतिक जरूरत बन चुका है?
क्या है तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट?
तुलबुल प्रोजेक्ट, जिसे वुलर बैराज के नाम से भी जाना जाता है, जम्मू-कश्मीर के बारामूला ज़िले में वुलर झील के मुहाने पर प्रस्तावित एक कंट्रोल स्ट्रक्चर है. इसका मुख्य उद्देश्य झेलम नदी में जल प्रवाह को नियमित करना है, ताकि सर्दियों में भी नाविक यातायात और जल प्रबंधन बना रहे. यह सिर्फ एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि कश्मीर के सामाजिक-आर्थिक विकास से लेकर पर्यावरणीय संतुलन और बाढ़ नियंत्रण तक कई अहम मुद्दों से जुड़ा है.
पाकिस्तान क्यों कर रहा है विरोध?
1987 में जब भारत ने इस परियोजना पर काम शुरू किया, तब पाकिस्तान ने इसे सिंधु जल संधि (IWT) का उल्लंघन बताते हुए रोकने की मांग की थी. उसका दावा है कि यह प्रोजेक्ट झेलम नदी की धारा पर ‘स्टोरेज बैराज’ जैसा काम करता है, जो IWT के प्रावधानों के खिलाफ है. हालांकि भारत ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि यह प्रोजेक्ट 'नॉन-कंजम्पटिव' है – यानी यह पानी का उपभोग नहीं करता, बल्कि सिर्फ प्रवाह को नियंत्रित करता है. विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान आज तक यह साबित नहीं कर पाया है कि इससे उसे कोई वास्तविक नुकसान होता है.
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच असली सवाल
जहां उमर अब्दुल्ला इस परियोजना को कश्मीर के हित में बताते हैं, वहीं महबूबा मुफ्ती इसे भारत-पाक संबंधों के लिए “संवेदनशील मसला” मानती हैं. उमर का आरोप है कि महबूबा सिर्फ “सीमा पार के लोगों को खुश करने के चक्कर” में जम्मू-कश्मीर के विकास की अनदेखी कर रही हैं.
भारत के लिए क्यों अहम है यह प्रोजेक्ट?
स्थानीय विकास: यह प्रोजेक्ट जम्मू-कश्मीर में जल-परिवहन को बढ़ावा देगा, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बल मिलेगा. बाढ़ नियंत्रण: वुलर झील से जल निकासी संतुलित होने से बाढ़ का खतरा घटेगा. पानी की उपलब्धता: झेलम नदी में स्थायी जल प्रवाह बना रहने से जल संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा. रणनीतिक संकेत: सिंधु जल संधि के सस्पेंशन के बाद यह प्रोजेक्ट भारत की आक्रामक जल कूटनीति का प्रतीक बन सकता है.
आगे का रास्ता: क्या अब वक्त है ठोस कार्रवाई का?
अब जब भारत ने आधिकारिक तौर पर IWT को निलंबित कर दिया है, विशेषज्ञों का मानना है कि तुलबुल प्रोजेक्ट को धरातल पर लाने का यह सबसे उपयुक्त समय है. यह कदम न सिर्फ कश्मीर के विकास को बढ़ावा देगा, बल्कि यह भी संकेत देगा कि भारत अब अपने जल संसाधनों को लेकर किसी भी दबाव में नहीं आएगा.
नदी का पानी, अब राजनीति का प्रवाह तय कर रहा है
तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट अब केवल एक इंजीनियरिंग प्लान नहीं है, यह भारत की राजनीतिक इच्छाशक्ति, क्षेत्रीय रणनीति और कूटनीतिक दिशा का प्रतीक बन गया है. आने वाले समय में यह तय करेगा कि झेलम की लहरें किस ओर बहेंगी – विकास की ओर या विवाद की ओर.
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