वॉशिंगटन/नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ तीखा बयान देकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. ट्रंप ने आरोप लगाया है कि भारत, रूस से कच्चा तेल खरीदकर उसे रिफाइन कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुनाफे के साथ बेच रहा है और इस तरह से वह रूस की 'वॉर मशीन' को अप्रत्यक्ष समर्थन दे रहा है. ट्रंप ने चेतावनी दी है कि अमेरिका भारत पर नए और भारी टैरिफ लगाने की तैयारी कर रहा है.
ट्रंप ने कहा, "भारत न केवल भारी मात्रा में रूसी तेल खरीद रहा है, बल्कि खरीदे गए अधिकांश तेल को खुले बाजार में भारी मुनाफे पर बेच भी रहा है. उसे इस बात की कोई परवाह नहीं है कि रूसी वॉर मशीन से यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं. इस वजह से मैं भारत पर और टैरिफ लगाऊंगा."
ट्रंप का यह बयान ऐसे वक्त पर आया है जब अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों में संवेदनशीलता बढ़ रही है, और वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों में भारत एक अहम कड़ी बन चुका है. उनकी टिप्पणी ने सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अमेरिका भारत को रूस से उसके ऊर्जा संबंधों के चलते दंडित करने के लिए कड़े कदम उठाएगा? और क्या इससे भारत की वैश्विक रणनीतिक स्थिति पर असर पड़ेगा?
भारत, रूस और ऊर्जा की कूटनीति
रूस और यूक्रेन के बीच फरवरी 2022 से जारी युद्ध के बीच रूस पर पश्चिमी देशों ने अभूतपूर्व आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. खासकर यूरोप ने रूसी तेल और गैस की खरीद में भारी कटौती की है. लेकिन इसी दौरान भारत ने रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल आयात करना शुरू किया जो कई मायनों में भारत की ऊर्जा जरूरतों के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से लाभकारी रहा.
भारत रूस से छूट दरों पर कच्चा तेल खरीदता है, उसे अपने रिफाइनरियों में प्रोसेस करता है, और फिर डीजल, पेट्रोल और दूसरे रिफाइंड प्रोडक्ट्स को वैश्विक बाजार में बेचता है, जिसमें यूरोप और अमेरिका भी शामिल हैं. यही मॉडल अब अमेरिका की नजर में “रिशेलिंग” (reselling) के रूप में देखा जा रहा है. ट्रंप का आरोप है कि भारत इस पूरी प्रक्रिया से रूस को अप्रत्यक्ष रूप से फंडिंग कर रहा है, जिससे उसकी युद्ध क्षमता बनी हुई है.
केवल व्यापार नहीं, बल्कि नैतिकता का सवाल
Truth Social पर दिए गए अपने हालिया पोस्ट में ट्रंप ने कहा, "भारत न सिर्फ रूसी तेल को सस्ते में खरीद रहा है, बल्कि उसे खुले बाज़ार में ऊंचे दामों पर बेचकर मोटा मुनाफा भी कमा रहा है. क्या उन्हें परवाह है कि यूक्रेन में कितने लोग मर रहे हैं? नहीं. यही वजह है कि मैं भारत पर और टैरिफ लगाने जा रहा हूं."
यह पहली बार है जब ट्रंप ने भारत की रूस-नीति को सीधे यूक्रेन युद्ध में हो रही हानि और मानवाधिकार उल्लंघनों से जोड़ दिया है. इससे यह साफ हो गया है कि अमेरिका भारत के ऊर्जा कारोबार को केवल व्यापारिक लेन-देन नहीं बल्कि एक नैतिक और रणनीतिक मुद्दा मान रहा है.
क्या अमेरिका से रिश्ता तनाव में जाएगा?
अमेरिका भारत के लिए एक अहम निर्यात बाजार है. भारत अमेरिका को टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स, फार्मास्युटिकल्स, स्टील और आईटी सेवाएं जैसे कई उत्पादों का निर्यात करता है. ट्रंप द्वारा टैरिफ बढ़ाने की धमकी के बाद इन सेक्टरों पर असर पड़ सकता है. इससे भारतीय उद्योगों को झटका लग सकता है और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं की रफ्तार भी धीमी हो सकती है.
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की स्थिति जटिल है एक तरफ वह सामरिक साझेदार के रूप में अमेरिका के करीब रहना चाहता है, और दूसरी ओर उसका रूस से दशकों पुराना रक्षा, ऊर्जा और कूटनीतिक संबंध है. इस द्वैध नीति को संतुलित करना भारत की विदेश नीति की सबसे बड़ी चुनौती बन गई है.
भारत का नजरिया: राष्ट्रीय हित सर्वोपरि
भारत ने बार-बार स्पष्ट किया है कि उसकी ऊर्जा नीति भारत की घरेलू जरूरतों और आर्थिक हितों पर आधारित है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पहले भी कहा है, "हम कहां से तेल खरीदते हैं, यह एक संप्रभु निर्णय है. हम अपने नागरिकों को सबसे सस्ती और स्थिर ऊर्जा देने के लिए काम कर रहे हैं, और इसमें हम अपनी स्थिति स्पष्ट रखते हैं."
भारत यह भी तर्क देता रहा है कि उसका रूस से ऊर्जा आयात पश्चिमी प्रतिबंधों के कानूनी दायरे में है, और वह किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध का उल्लंघन नहीं कर रहा. भारत ने कभी भी रूस की यूक्रेन पर आक्रमण को सीधे समर्थन नहीं दिया है और वह युद्धविराम की पहल को भी समर्थन देता रहा है.
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