ट्रंप का F-47 प्रोजेक्ट फंसा? टैरिफ वॉर के बीच चीन ने ऐसा क्या कर दिया; अमेरिका लेगा बदला!

    अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध दिन-ब-दिन और ज्यादा गंभीर होता जा रहा है. न तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप झुकने को तैयार हैं और न ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग.

    Trump F47 project stuck China tariff war America
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध दिन-ब-दिन और ज्यादा गंभीर होता जा रहा है. न तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप झुकने को तैयार हैं और न ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग. दोनों देशों के बीच टकराव अब इस मोड़ पर पहुंच चुका है कि जो झुकेगा, वो अपनी ताकत और दबदबा खो देगा.

    इस बीच, इस विवाद में एक चीज सबसे अहम बनकर उभरी है—दुर्लभ खनिज. ये खनिज आधुनिक टेक्नोलॉजी, रक्षा प्रणालियों और ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट्स के लिए बेहद जरूरी हैं. सबसे ज्यादा दुर्लभ खनिज चीन में पाए जाते हैं. ऐसे में चीन ने अमेरिका को झटका देने के लिए इन खनिजों के निर्यात पर रोक लगाने का फैसला किया है. इसका सीधा असर अमेरिका की रक्षा ताकत और खासकर नेक्स्ट जेनरेशन फाइटर जेट प्रोग्राम पर पड़ रहा है.

    चीन से आते हैं प्रोजेक्ट के लिए जरूरी सात दुर्लभ खनिज

    डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में अमेरिका के नए छठी पीढ़ी के फाइटर जेट F-47 के निर्माण की घोषणा की है, जिसे NGAD (Next Generation Air Dominance) प्रोजेक्ट कहा जा रहा है. लेकिन इस प्रोजेक्ट के लिए जरूरी सात दुर्लभ खनिज चीन से आते हैं—सैमरियम, गैडोलीनियम, टेरबियम, डिस्प्रोसियम, ल्यूटेटियम, स्कैंडियम और यिट्रियम. इनकी मदद से ही फाइटर जेट के कई जरूरी हिस्से जैसे इंजन, मैग्नेट, रडार सिस्टम और थर्मल कोटिंग्स बनाए जाते हैं.

    कोलोराडो स्कूल ऑफ माइंस के प्रोफेसर टॉम ब्रैडी का कहना है कि चीन के पास ये बहुत बड़ा हथियार है. उन्होंने बताया कि डिस्प्रोसियम उन मैग्नेट्स में काम आता है जो बहुत ज्यादा तापमान में भी अपना असर बनाए रखते हैं, और ऐसे ही मैग्नेट जेट इंजन में इस्तेमाल होते हैं. वहीं यिट्रियम इंजन की गर्मी से सुरक्षा के लिए लगाए जाने वाले कोटिंग्स में काम आता है.

    पूरी दुनिया पर पड़ा है असर

    अप्रैल 2025 में चीन पहले ही इन सात खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा चुका है. अब इन खनिजों का निर्यात करने के लिए कंपनियों को लाइसेंस लेना जरूरी है, जिससे सप्लाई में देरी हो रही है और कई कंटेनर बंदरगाहों पर अटके हुए हैं. चीन का मकसद साफ है—अमेरिका पर दबाव बनाना और अपनी पोजिशन मजबूत करना.

    अमेरिका ने इसके जवाब में दूसरे देशों से खनिज पाने की कोशिश शुरू कर दी है. अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के मुताबिक, अमेरिका ने 2024 में सिर्फ 45,000 टन रेयर अर्थ्स का उत्पादन किया था, जबकि चीन ने 270,000 टन. इसलिए अमेरिका अब ग्रीनलैंड और यूक्रेन जैसे देशों में इन खनिजों की खोज और खनन पर काम कर रहा है.

    चीन के इस फैसले का असर सिर्फ अमेरिका पर नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ा है. इससे इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और डिफेंस इंडस्ट्रीज की सप्लाई चेन में दिक्कतें आ रही हैं. अब कई देश चीन पर निर्भरता कम करने के लिए नए विकल्प ढूंढ़ रहे हैं. इससे खनिजों को लेकर एक नई वैश्विक दौड़ शुरू हो गई है.

    हालांकि व्हाइट हाउस ने अभी इन खनिजों को टैरिफ की जंग से बाहर रखा है, लेकिन चीन ने अमेरिका की सबसे कमजोर कड़ी को पकड़ लिया है. 20 मार्च को राष्ट्रपति ट्रंप ने एक आदेश पर साइन किया, जिसमें अमेरिका में खनिज उत्पादन बढ़ाने की बात कही गई है. इस आदेश में बताया गया कि अमेरिका के 70% दुर्लभ खनिज चीन से आते हैं, और यह भी कि ईरान और रूस भी इन संसाधनों को कंट्रोल करते हैं. अब अमेरिका की कोशिश है कि वह इन दुश्मन देशों पर अपनी निर्भरता को कम करे, और इसके लिए रिसर्च और नए स्रोतों की खोज जारी है.

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