वाशिंगटनः एक समय था जब अमेरिका और यूरोप, खासकर ब्रिटेन, इजरायल के हर संकट में उसकी ढाल बनकर खड़े होते थे. लेकिन अब वही सहयोगी राष्ट्र धीरे-धीरे कदम पीछे खींचते दिख रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता में वापसी के बाद अमेरिका की विदेश नीति में जो बदलाव आया है, उसने इजरायल के रणनीतिक समीकरणों को उलझा कर रख दिया है. इस बीच यूरोप भी अब इजरायल के सैन्य अभियानों पर सख्त सवाल उठाने लगा है.
अमेरिका की बदली प्राथमिकताएं: ईरान और सीरिया से 'नया समीकरण'
अब तक अमेरिका, इजरायल का सबसे बड़ा और विश्वसनीय साझेदार रहा है — चाहे बात हो सुरक्षा की, अर्थव्यवस्था की या कूटनीतिक समर्थन की. लेकिन ट्रंप प्रशासन के नए रुख से संकेत मिल रहे हैं कि वॉशिंगटन अब खुद को मध्य पूर्व की पारंपरिक राजनीति से अलग तरह से देखना चाहता है.
हाल ही में ट्रंप ने सीरिया के विद्रोही नेता अहमद अल-शरा से मुलाकात की और संकेत दिया कि सीरिया पर लगे प्रतिबंधों में ढील दी जा सकती है. साथ ही, अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते को लेकर भी नए प्रस्तावों पर बातचीत हो रही है. ये दोनों घटनाएं सीधे-सीधे इजरायल की सुरक्षा चिंताओं को प्रभावित करती हैं.
ट्रंप का यह दृष्टिकोण उनके उस बयान को पुष्ट करता है, जिसमें उन्होंने कहा था: "कई बार हमारे सहयोगी ही हमारे दुश्मनों से अधिक नुकसानदायक हो सकते हैं."
ऐसे में सवाल उठता है — क्या अमेरिका अब इजरायल को एक भरोसेमंद साझेदार की बजाय एक कठिन समीकरण के रूप में देखने लगा है?
यूरोप की नाराज़गी: इजरायल को एक और मोर्चे का सामना
ट्रंप प्रशासन की नीतियों के बीच, यूरोपीय देशों की नाराज़गी ने इजरायल के लिए हालात और पेचीदा कर दिए हैं. हाल ही में ब्रिटेन ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के इजरायल के साथ चल रही फ्री ट्रेड डील की बातचीत को अचानक रद्द कर दिया.
ब्रिटिश विदेश सचिव डेविड लैमी द्वारा इजरायली राजदूत को बुलाकर यह सूचना दी गई. माना जा रहा है कि यह फैसला गाजा में इजरायल की सैन्य कार्रवाई के विरोध में लिया गया है.
ब्रिटेन के अलावा फ्रांस और कनाडा भी अब खुलकर इजरायल की नीतियों की आलोचना कर रहे हैं. फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने तो यहां तक मांग कर दी है कि इजरायल को हथियारों की आपूर्ति रोक दी जाए. वहीं कनाडा ने सैन्य कार्रवाई रोकने की कड़ी चेतावनी दी है.
इजरायल के लिए मुश्किल घड़ी
इन कूटनीतिक घटनाओं का प्रभाव केवल राजनीतिक स्तर पर नहीं, बल्कि इजरायल की अंतरराष्ट्रीय छवि, सैन्य रणनीति और आर्थिक स्थिरता पर भी पड़ सकता है. पहले ही मध्य पूर्व में चारों ओर से घिरा इजरायल अब अपने परंपरागत सहयोगियों की नाराजगी से जूझ रहा है.
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गाजा अभियान को "सभ्यता और बर्बरता के बीच की लड़ाई" करार देते हुए इसे जारी रखने का ऐलान किया है. लेकिन जब अमेरिका और यूरोप जैसे पारंपरिक समर्थक देश पीछे हटने लगें, तो यह रणनीति भविष्य में अकेलेपन का संकेत बन सकती है.
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